3
“तुम देख लेना, तुम्हें
रस्सी से बांधकर जेल ले जाएँगे!” सोफ्या अन्द्रेयेव्ना उसे डराती.
“मुझे
यही तो चाहिए,”
टॉल्स्टॉय शांति से जवाब
देता. वाकई में,
वह अपने विश्वासों के
लिए दुख उठाना चाहता था. वह बड़ी धृष्ठता से बर्ताव करता. बातचीत में वह अपने
विचारों को नहीं छुपाता. शासन, चर्च,
हिंसा, सम्पत्ति पर उसके आवेशपूर्ण हमले विदेशों में रूसी और
विदेशी भाषाओं में प्रकाशित होते थे. रूस में हज़ारों की संख्या में इन पैम्फ्लेट्स
की प्रतियाँ अवैध रूप से वितरित होती थीं. समय समय पर टॉल्स्टॉय त्सारों को भी
पत्र लिखता. उनमें से एक (सन् 1902 में,
निकोलाय II को) बिना किसी अलंकारिक भाषा के रूस की कठिन आंतरिक
स्थिति और आम गुस्से को प्रकट कर रहा था. ऐसे उद्गारों से, जैसे रूस-जापान युद्ध के दौरान “होश में आओ!” और
स्तलीपिन के हत्या-सत्र के दौरान “ख़ामोश नहीं रह सकता!” नौकरशाही मंडलियों में नाराज़गी
फैल गई.
मगर
शासन ने टॉल्स्टॉय को छुआ तक नहीं.
इंग्लैण्ड
में प्रकाशित भुखमरी से संबंधित उसके लेखों के कारण चरम दक्षिणपंथी समाचार पत्रों
ने सन् 1891 में ही उसके ख़िलाफ़ ज़ोर शोर से अभियान चलाया था.
उच्च
शासनाधिकारियों ने परिस्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश की. पबेदानोस्त्सेव ने रूसी
चर्च की स्थिति से संबंधित हर रिपोर्ट में
लगातार त्सार को प्रेरित किया,
कि “नये ‘विधर्म के संस्थापक’ के
ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करना ज़रूरी है”.
मगर
इस सवाल पर प्रतिक्रियावादी अलेक्सान्द्र III किसी
के प्रभाव में नहीं आया. प्रतिक्रियावादियों के परेशान करने पर उसने दृढ़ता से
उत्तर दिया:
“विनती
करता हूँ, कि ल्येव टॉल्स्टॉय को हाथ न लगाया जाए, मैं किसी हालत में उसे पीड़ित बनाना और अपनी ओर पूरे
रूस की नाराज़गी मोल लेना नहीं चाहता. अगर वह दोषी है, तो ये
उसके लिए ज़्यादा बुरा है”.
इसी
नीति का पालन निकोलाय II
ने भी किया.
टॉल्स्टॉय
बिल्कुल अजीब हालात से घिर गया. वह
जासूसों से घिरा था – जो स्वेच्छा से या पैसे लेकर काम करते थे. शासन उसके हर कदम
के बारे में जानना चाहता था. सैन्य-सेवा से इनकार, शासन
विरोधी और चर्च विरोधी साहित्य का प्रसार – सब कुछ यास्नाया पल्याना की खोज की ओर
इशारा कर रहा था. और टॉल्स्टॉय के सभी प्रवचनों की अभिव्यक्ति और उन लोगों पर नज़र
रखने के लिए,
जो इसके प्रचार में
सहायक थे चुपचाप एक व्यवस्था का गठन किया गया. जेल, शासकीय निर्वासन, सीटों
से वंचित करना,
अनुशासित बटालियन्स – ये
सब प्रचुर मात्रा में टॉल्स्टॉय के अनुयायियों पर और उसके अत्यंत घनिष्ठ लोगों पर
टूट पड़े.
ख़ुद
टॉल्स्टॉय हमेशा सत्ता की पहुँच की सीमा से बाहर ही रहा.
नब्बे
के दशक के अंत में उसने कानून और आंतरिक मामलों के मंत्रियों को पत्र लिखे. उसने
मंत्रियों को सूचित किया कि
“टॉल्स्टॉयवादी” विचारों के प्रसार का वह अकेला ही दोषी है और उसने “पूर्वघोषणा कर
दी, कि अपनी मृत्यु तक, बिना
रुके वही करता रहेगा जिसे शासन बुरा समझता है, और वह
ख़ुदा के सामने अपना पवित्र कर्तव्य समझता है”. उसने मंत्रियों से आग्रह किया, कि उसके ख़िलाफ़ अत्यंत निर्णायक कदम उठाएँ – उसे जेल
में बंद कर दें,
निर्वासित कर दें या
इससे भी ज़्यादा कठोरता से पेश आएँ. उसने गारंटी दी, कि
“ज़्यादातर लोग इस तरह की कार्रवाई का पूरी तरह समर्थन करेंगे और कहेंगे, कि ये काफ़ी पहले ही करना चाहिए था”.
इन
याचिकाओं और मिन्नतों का कोई फ़ायदा नहीं हुआ. और उसके अनुयायियों के नए उत्पीडनों
से उसके मन में उनके सम्मुख अपराध की,
कृतज्ञता, कोमलता की भावना बढ़ती रही. उनकी
पीडाओं को उसने अपने प्यार और मित्रतापूर्ण सहायता से चुकाने की कोशिश की.
टॉल्स्टॉय
को व्लादीमिर ग्रिगोरेविच चेर्त्कोव की तरफ़ आकर्षित करने वाले कारणों में, बेशक,
अपराध और कृतज्ञता की इन
भावनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सन् 1896 के अंत में चेर्त्कोव, बिर्यूकव और त्रेगूबव ने कॉकेशस में अधिकारियों द्वारा
उत्पीड़ित किए जा रहे दुखोबोरों की मदद करने के बारे में एक अपील जारी की. टॉल्स्टॉय
इस अपील से जुड़ गया. टाइपराइटर पर इसकी कई कॉपियाँ निकाली गईं और उन्हें सरकार के
प्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भेज दिया गया. अपील में खुल्लम खुल्ला
सरकार की निंदा की गई थी. टॉल्स्टॉय को इस बार भी इत्मीनान से रहने दिया गया. अपील
पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य लोगों की तलाशी ली गई और उन्हें प्रशासनिक निष्कासन
दे दिया गया. चेर्त्कोव को विदेश जाने की अनुमति दी गई. लन्दन में बसने के बाद
उसने “फ्री वर्ड” नामक पुस्तक प्रकाशन गृह की स्थापना की. इसका उद्देश्य था
टॉल्स्टॉय के उपदेशों का प्रचार करना. प्रकाशन का एक बड़ा हिस्सा समर्पित था (करीब
एक तिहाई) टॉल्स्टॉय की उन रचनाओं को,
जिन्हें सेन्सर ने पारित
नहीं किया था. बाकी सब चेर्त्कोव और उसके मित्रों की रचनाओं को समर्पित था. काम
काफ़ी सन्देहास्पद था. किताबों और पत्रिकाओं को तस्करी करके रूस ले जाने के लिए
काफ़ी धन की ज़रूरत थी. इसका एक अंश टॉल्स्टॉय की मार्फ़त भेजे गए चंदे से प्राप्त
होता था. कुछ भाग ख़ुद चेर्त्कोव खाते में जमा करता था. मगर प्रकाशित सामग्री में
सिर्फ टॉल्स्टॉय की रचनाएँ ही गंभीर स्वरूप की थीं. ये सारा व्यवसाय, बेशक,
सिर्फ वैचारिक
उद्देश्यों के अंतर्गत किया जा रहा था. मगर साथ ही इसने चेर्त्कोव को टॉल्स्टॉय के
एकमेव प्रतिनिधि,
मित्र और उसकी रचनाओं के
मैनेजर के रूप में दुनिया भर में मशहूर कर दिया.
टॉल्स्टॉय
की रचनाओं के संकलन,
संग्रह और प्रकाशन की
दिशा में चेर्त्कोव का काम उनकी दृष्टि में निःस्वार्थ भाव से किया जा रहा था.
इसके साथ ही उस व्यक्ति के प्रति कोमल भावनाएँ भी जुड़ गई थीं, जिस पर खुलेआम टॉल्स्टॉय के विचारों को स्वीकार करने
के कारण अत्याचार किए गए थे.
चेर्त्कोव
टॉल्स्टॉय का पहला प्रमुख अनुयायी था. उसने अपने शिक्षक की “समानधर्मियों” को साथ
रखने की इच्छा को पूरा किया. टॉल्स्टॉय के निरंतर तनावपूर्ण आध्यात्मिक कार्य, उसके सभी टेढ़े मेढ़े रास्तों और अप्रत्याशितताओं को
देखते हुए ये अत्यंत आवश्यक था,
कि पास में कोई ऐसा
व्यक्ति हो, जिसकी “क्रिश्चियन शिक्षा की पवित्रता में” ज़रा भी
संदेह न हो. टॉल्स्टॉय को, जैसा कि वह कहता था, “माउथपीस
खा जाने” और “अपनी बेवकूफ़ियों पर” ज़ोर देने की अपनी योग्यता का ज्ञान था. ये सब निष्कर्ष के रूप में एक अत्यंत
परिशुद्ध और समर्पित अनुयायी के सामने प्रस्तुत करना बहुत महत्वपूर्ण था. ऊपर से
चेर्त्कोव में ये योग्यता थी,
कि तरह-तरह के प्रश्न
पूछकर टॉल्स्टॉय को अपने विचारों को प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित करता था. उसके
साथ, उदाहरण के लिए, त्सार
हिरोद के प्रति प्यार के प्रश्न का देर तक और हर तरफ़ से विवेचन किया जा सकता था.
चेर्त्कोव की इन सभी योग्यताओं ने,
और साथ ही टॉल्स्टॉय के
प्रति समर्पण की भावना और,
इच्छा होने पर, अच्छा लगने की योग्यता ने, उसके
लिए एक विशिष्ठ जगह बना दी थी : टॉल्स्टॉय के शब्दों में, वह “सबसे ज़्यादा ज़रूरी आदमी” था.
अस्सी
के दशक के अंत में ही चेर्त्कोव,
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना के
शब्दों में, “संग्रहकर्ता” बन गया था : उसने व्यवस्थित
रूप से टॉल्स्टॉय की उन सभी रचनाओं के प्रारूप हथिया लिए, जो टॉल्स्टॉय ने “उपयोग” और “संरक्षण” के लिए लिखी
थीं. जल्दी ही ये एक निर्विवाद आदेश बन गया, और
टॉल्स्टॉय का हर शब्द,
उसकी प्रतिलिपि बनाने के
बाद, किसी न किसी तरह चेर्त्कोव के पास पहुँच जाता. बाद में
उसके पास कर्मचारियों का एक छोटा सा स्टाफ़ बन गया, जो इस
सामग्री का अध्यन करते,
उसका वर्गीकरण करते और
उसमें निहित विचारों को संग्रह के लिए निकालते.
साहित्यिक
संपत्ति से इनकार करने के बाद (सन्1891 में) टॉल्स्टॉय के हाथ में प्रथम आवृत्ति
पर अधिकार तो था ही,
जिससे, बेशक,
काफ़ी आय हो सकती थी.
चेर्त्कोव “मीडिएटर” नामक प्रकाशन गृह का प्रमुख था, जिसे
“अपने विस्तार के लिए धन की आवश्यकता थी”. ये धन उसने, अन्य
स्त्रोतों के अलावा,
“अपनी मर्ज़ी से”
टॉल्स्टॉय की पाण्डुलिपियों के प्रकाशन से प्राप्त किये. इस तरह, धीरे धीरे चेर्त्कोव पूरी तरह टॉल्स्टॉय की नई रचनाओं
का मालिक बन बैठा.
आरंभ
में तो सोफ्या अन्द्रेयेव्ना का उसके प्रति रवैया काफ़ी सहानुभूतिपूर्ण था. ये सच
है, कि पति को लेकर उससे ईर्ष्या होती थी. कभी कभी उसे ऐसा
लगता, कि चेर्त्कोव टॉल्स्टॉय को उससे “तोड़ रहा है”. मगर समय
के साथ वह टॉल्स्टॉय के सभी गुणों के इस नमूने को भी बर्दाश्त करना सीख गई. पति के
धार्मिक-दार्शनिक ग्रंथों के भविष्य के बारे में वह उदासीन थी. मगर जब टॉल्स्टॉय
साहित्यिक रचनाओं की ओर लौट रहा था,
तो उसने देखा, कि प्रथम आवृत्ति से कितनी बड़ी धनराशि प्राप्त करना
संभव था. इस धनराशि को परिवार के लिए सुरक्षित रखने की इच्छा ने उसे सतर्क रहने पर
मजबूर कर दिया. उसने पति पर दबाव डालकर साहित्यिक रचनाओं के प्रथम संस्करण
चेर्त्कोव के हाथ से वापस लेने की कोशिश की. अप्रियताऑं को टालने की दृष्टि से
टॉल्स्टॉय ने जीवन के अंतिम वर्षों में कोई भी साहित्यिक रचना प्रकाशित न करने का
निर्णय लिया,
और उसकी कई सशक्त रचनाएँ
पाण्डुलिपियों के ही रूप में रह गईं.
टॉल्स्टॉय
की मृत्यु के बाद उसकी रचनाओं के भविष्य के बारे में सवाल लम्बे समय तक तीव्रता से
नहीं उठाया गया.
सन्
1895 में टॉल्स्टॉय ने अपनी डायरी में वसीयत लिखी. इस बीच उसने वारिसों को सलाह दी
कि उसकी रचनाओं के ‘कॉपीराइट(सर्वाधिकार)” से इनकार कर दें. उसने इस बारे
में केवल विनती की थी,
मगर “कोई वसीयत नहीं की
थी”.
“ऐसा
करोगे,” उसने लिखा,
“तो अच्छा होगा. अच्छा ये
तुम्हारे लिए भी होगा;
नहीं करोगे – तो ये
तुम्हारी मर्ज़ी. मतलब,
आप ये करने के लिए तैयार
नहीं हैं. ये बात,
कि पिछले दस सालों में
मेरी रचनाएँ बिकती रहीं,
- मेरे लिए ज़िंदगी का सबसे
मुश्किल काम था”.
ये
निर्देश डायरी से निकाले गए,
उन पर टॉल्स्टॉय द्वारा हस्ताक्षर
किए गए और उसकी बेटी मारिया ल्वोव्ना के पास सुरक्षित रख दिए गए.
सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना को इस बारे में सन् 1902 में संयोगवश पता चला, तो उसने पति को मनाया कि ये दस्तावेज़ सुरक्षित रखने के
लिए उसके हाथों में दे दे. दस्तावेज़ मिलने के बाद, उसने न
सिर्फ फ़ौरन उसे नष्ट कर दिया,
बल्कि अपनी बेटी के
क्रोध पर आश्चर्यचकित भी हुई.
10
अक्टूबर 1902 को सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना ने अपनी डायरी में लिखा : “ ल्येव
निकोलायेविच की रचनाओं को आम सम्पत्ति के लिए देना मेरी नज़र में बेवकूफ़ी है और
निरर्थक है. मैं अपने परिवार से प्यार करती हूँ और उसके लिए बेहतर कल्याण की कामना
करती हूँ, और रचनाएँ सार्जनिक क्षेत्र को देकर हम उन्हें अमीर
प्रकाशन गृहों,
जैसे मार्क्स, त्सेत्लिन (यहूदियों का) इत्यादि को ही पुरस्कारस्वरूप
दे देते. मैंने ल्येव निकोलायेविच से कहा, कि यदि
वह मुझसे पहले मरता है,
तो मैं उसकी इच्छा पूरी
नहीं करूंगी और उसकी रचनाओं के सर्वाधिकार से इनकार नहीं करूंगी, और अगर मैं इसे अच्छा और न्यायसंगत समझती, तो मैं उसके जीवन काल में ही उसे सर्वाधिकारों से
इनकार करने की ख़ुशी प्रदान कर देती,
और मरने के बाद तो इसका
कोई मतलब ही नहीं रह जाता...”
अगर
ये घोषणाएँ इतनी खुल्लम खुल्ला और निश्चित स्वरूप में की भी गईं थीं, तो टॉल्स्टॉय ने उन पर ख़ास ध्यान नहीं दिया था.
मगर
वसीयत के निर्देश में – टॉल्स्टॉय के कागज़ात को छांटने का काम चेर्त्कोव को ही
सौंपा गया था. ज़ाहिर है,
कि उसीकी पहल पर, वसीयत का सवाल सन् 1904 में फिर से उठाया गया. ल्येव
निकोलायेविच ने 1904 के मई में इंग्लैण्ड में अपने मित्र को बेहद ईमानदारी से, मगर अर्धशासकीय पत्र लिखा, जिसमें
उसने अपनी इच्छा को दुहराया था,
कि चेर्त्कोव और सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना मिलकर भविष्य में टॉल्स्टॉय के कागज़ात का पुनरावलोकन करें और मिलकर
जैसा उचित समझें,
फ़ैसला करें. साथ ही
टॉल्स्टॉय ने यह भी लिखा,
कि वह ये समझता है, कि “इन कागज़ात का किसी भी तरह से उपयोग उसके लिए कोई
मायने नहीं रखता”.
थोड़े
समय के लिए इस प्रश्न को छोड़ दिया गया.
सन्
1906 की शरद ऋतु में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना गंभीर रूप से बीमार हो गई. भयानक दर्द
उसे निरंतर चीखने पर मजबूर करते. बच्चे आ गए. मॉस्को से आए हुए प्रोफेसर स्निगिरेव
ने आंतरिक ट्यूमर के फूटने का निदान किया. ऑपरेशन के ख़िलाफ़ कई कारण थे. मगर वो घड़ी
आ गई, जब प्रोफेसर ने घोषणा कर दी : “अगर फ़ौरन ऑपरेशन नहीं
किया गया, तो मरीज़ मर जायेगी”. टॉल्स्टॉय ऑपरेशन के द्वारा
“मृत्यु के महान कार्य की शान और गंभीरता में” बाधा पहुँचाने के सख़्त ख़िलाफ़ था.
मगर वह अपने फ़ैसले से दूर हट गया. ख़ुद मरीज़ और उसके बच्चे ऑपरेशन करवाने पर सहमत
थे.
फिर
भी प्रोफेसर स्निगिरेव को,
जिनसे टॉल्स्टॉय अत्यंत
गंभीरता से पेश आते थे,
ल्येव टॉल्स्टॉय के
बीमार पत्नी के प्रति दिल को छू लेने वाले संबंधों की याद है...
“उसने
एक दिन बीमार काउन्टेस से कहा:
ये
तुम लेटी हो और चलती-फिरती नहीं हो,
और मैं कमरों में
तुम्हारे पाँवों की आहट नहीं सुनता हूँ, और पता
है, उसे सुने बिना, मेरा
पढ़ने और लिखने में मन नहीं लगता”.
“और
उन पलों में,
जब ऑपरेशन के बाद वह
उससे मिलने आया,
तो उसकी नज़र में, उसकी आवाज़ में, जिसमें
आम तौर से मज़ाकिया अंदाज़ होता था,
कितनी शांत मार्मिकता
थी!”
इसी
साल (1906 में) टॉल्स्टॉय को एक नई,
बदतर परीक्षा से गुज़रना पड़ा.
नवम्बर के अंत में यास्नाया पल्याना में उसकी बेटी, राजकुमारी
मारिया ल्वोव्ना अबलेन्स्काया की टाइफ़ॉयड से मृत्यु हो गई.
इस
क्षति के एक महीने बाद टॉल्स्टॉय ने अपनी डायरी में लिखा : “जी रहा हूँ, और अक्सर माशा के अंतिम क्षणों को याद करता हूँ (उसे
माशा कहने को जी नहीं चाहता,
ये सीधा-सादा नाम उस
प्राणि को शोभा नहीं देता,
जो हमसे दूर चला गया
है). वह बैठी है,
तकियों से घिरी हुई, मैं उसके दुबले, प्यारे
हाथ को पकड़े हुए हूँ और महसूस कर रहा हूँ, कि जान
कैसे जा रही है,
कैसे वह जा रही है. ये
पंद्रह मिनट – मेरी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण, अर्थपूर्ण
कालखण्डों में से एक है”.
28
अगस्त 1908 को टॉल्स्टॉय अस्सी वर्ष के हो गए. जनता ने उनकी जयंती के उत्सव के लिए
काफ़ी पहले से तैयारी शुरू कर दी थी. बड़े बड़े शहरों में इसके लिए कमेटियाँ बनाई
गईं. बूढ़े लेखक ने इन सभी तैयारियों के ख़िलाफ़ मुखर विरोध प्रकट करते हुए उन्हें
रोक दिया: उसने मित्रों से विनती की,
कि उसे इस अप्रियता से
बचाएँ. सारी तैयारियाँ रुक गईं. फिर भी जन्मदिवस की तारीख़ के बाद के दो हफ़्तों में
यास्नाया पल्याना में पूरी दुनिया से निरंतर शुभकामनाओं का तांता लग गया.
सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना ने इस मौके का फ़ायदा उठाते हुए टॉल्स्टॉय की रचनाओं के नए, 20 खण्डों के संकलन को प्रकाशित करने का फ़ैसला किया. अपने
संपर्कों का उपयोग करते हुए,
उसे उम्मीद थी कि इस
आवृत्ति में काफ़ी कुछ,
पूर्व में सेन्सर द्वारा
प्रतिबंधित सामग्री को शामिल करना संभव होगा.
प्रकाशन
के लिए 50 से 70 हज़ार रूबल्स की आवश्यकता थी.
इस
बीच परिवार को ये ज्ञात हुआ,
कि टॉल्स्टॉय की सभी
रचनाओं के प्रकाशन के एकाधिकार के लिए कुछ प्रकाशन गृह दस लाख स्वर्ण रुबल्स तक
देने का प्रस्ताव दे रहे थे.
वकीलों
से मशविरा करने के बाद सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना को ज्ञात हुआ, कि उसके हाथ में जो पॉवर ऑफ एटॉर्नी थी, उसके अनुसार, वह
टॉल्स्टॉय की रचनाओं को बेच नहीं सकती थी. साथ ही ये भी पता चला, कि सन् 1881 के बाद लिखी गईं रचनाओं पर सर्वाधिकार से
ल्येव टॉल्स्टॉय का इनकार उनकी,
मृत्यु के बाद प्रभावहीन
हो जायेगा, अगर उनकी इस इच्छा को कानूनी प्रावधानों के अनुसार
बनाई गई वसीयत में दर्शाया न गया हो.
इस
तरह, काउन्टेस को ये ख़ुद ही प्रकाशित करना था, मगर उसके सामने बड़ा काम था : अपने प्रकाशन को
टॉल्स्टॉय की मृत्यु की स्थिति में हर तरह की अप्रत्याशितताओं से सुरक्षित रखना.
नये
संघर्षों का एक सिलसिला शुरू हो गया. चेर्त्कोव की उपस्थिति में कई विस्फोटक दृश्य
हुए. ये स्पष्ट था,
कि सोफ्या अन्द्रेयेव्ना
के लिए टॉल्स्टॉय की इच्छा का बहुत कम महत्व था. उसने इस बात को नहीं छुपाया कि
महान लेखक की मृत्यु के बाद सन् 1881 के बाद प्रकाशित हुई उसकी रचनाएँ सामान्य उपयोग
के लिए उपलब्ध नहीं रहेंगी. चेर्त्कोव की ज़िंदगी का उद्देश्य समाप्त हो रहा था.
बड़ी भारी मेहनत करके उसने स्वयम् को टॉल्स्टॉय द्वारा सन् 1881 के बाद लिखी गई
रचनाओं के स्वामी और वितरक के रूप में प्रस्थापित किया था. महान लेखक की मृत्यु
होते ही उत्तराधिकारी अधिकारों में शामिल हो जाएँगे. “टॉल्स्टॉय की इच्छा” को पूरा
करना, मतलब,
चेर्त्कोव की स्थिति को
मज़बूत करना, सिर्फ कानूनी वसीयत द्वारा ही संभव था. बेशक, अधिकारियों से अपील और शासन द्वारा बलपूर्वक हस्तक्षेप
– ये क्रिश्चियन विचारों के बिल्कुल विपरीत था, जैसा
टॉल्स्टॉयवादी समझते थे. मगर चेर्त्कोव यहीं पर नहीं रुका, हालाँकि टॉल्स्टॉय “ क्रिश्चियन शिक्षा की पवित्रता
में उससे बेहतर किसी अन्य को नहीं जानता था”. देर करना उचित नहीं था. आने वाला हर
दिन ऐसी अप्रत्याशित स्थिति ला सकता था, जिसे
सुधारना संभव न होगा.
चेर्त्कोव
सोच-समझ कर और एक प्लान के तहत काम कर रहा था. सन् 1909 के सितम्बर में टॉल्स्टॉय
दम्पत्ति क्रेक्शिनो स्थित उसकी जागीर में आये. अकेले में उसने टॉल्स्टॉय को बताया, कि उसके बच्चे सामान्य उपयोग के लिए दी गईं उसकी
रचनाओं को हड़प करना चाहते हैं. टॉल्स्टॉय ने डायरी में लिखा : “यकीन करने को जी
नहीं चाहता”. मगर,
दूसरे दिन उसने ‘वसीयत’ नामक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये. चेर्त्कोव के तीन
मेहमान इस कार्य के गवाह थे. इसमें टॉल्स्टॉय ने अपनी इच्छा की पुष्टि की थी, कि सन् 1881 के बाद लिखी हुई उसकी रचनाएँ उसकी मृत्यु
के बाद भी सामान्य उपयोग के लिए ही उपलब्ध हों. “मेरी इच्छा है,” वसीयत में आगे लिखा है, “कि
सारी पाण्डुलिपियाँ और कागज़ात,
जो मेरे बाद बचेंगी, व्लादीमिर ग्रिगोरेविच चेर्त्कोव को दे दिए जाएँ, इस उद्देश्य से, कि वह
मेरी मृत्यु के बाद भी उनकी वैसी ही व्यवस्था करे, जैसी
अभी कर रहा है...”
ये
दस्तावेज़ एक अनुभवी एडवोकेट को दिखाया गया, जिसने
उसे कानूनी दृष्टि से अपर्याप्त बताया.
चेर्त्कोव
और उसके मित्रों की कई मीटिंग्स हुईं. उसी एडवोकेट के साथ मिलकर उन्होंने वसीयत का
नया प्रारूप तैयार किया.
साथ
ही चेर्त्कोव ने कानूनी उत्तराधिकारी के पद से बचने का फ़ैसला किया और भावी
संघर्षों का सारा बोझ टॉल्स्टॉय की छोटी बेटी – काउन्टेस अलेक्सान्द्रा ल्वोव्ना
पर डाल दिया. बेशक,
इस आधिकारिक
उत्तराधिकारी का काम सिर्फ इतना था,
कि जैसा चेर्त्कोव लिखता
है, “ल्येव निकोलायेविच द्वारा मुझे दिए गए निर्देशों के
अनुसार, उनकी साहित्यिक धरोहर की बिना किसी रुकावट के व्यवस्था
करने का मौका प्रदान करना.” इस अंतिम शर्त को बाद में एक विशेष स्पष्टीकरण नोट में
सही ढंग से समझाकर ‘वसीयत’ के साथ नत्थी कर दिया गया, जिसका
प्रारूप चेर्त्कोव ने तैयार किया था और जिस पर टॉल्स्टॉय ने हस्ताक्षर किये थे.
चेर्त्कोव
और उसके मित्रों की एडवोकेट के साथ मीटिंग्स में औपचारिक ‘वसीयत’
का मसौदा तैयार किया गया, जिसे टॉल्स्टॉय के सामने प्रस्तुत किया गया, - बेशक,
सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना से
छुपाकर.
दस्तावेज़
पर हस्ताक्षर करने के बाद टॉल्स्टॉय ने कहा : “ये सब काम मेरे लिए बहुत कष्टदायक
है. और इसकी ज़रूरत भी नहीं है – विभिन्न उपायों की सहायता से अपने विचारों का
प्रसार करना. जैसे क्राइस्ट,
हाँलाकि ये अजीब है, कि मैं अपनी तुलना उससे कर रहा हूँ, - इस बात के बारे में परेशान नहीं था, कि किसी ने अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति में उसके विचारों
को शामिल किया या नहीं,
और अपने विचार उसने ख़ुद
नहीं लिखे, बल्कि उन्हें निर्भीकता से कहा और उनकी ख़ातिर सलीब पर
चढ़ गया. और ये विचार कहीं खो नहीं गए. हाँ, और
कोई शब्द यदि सत्य को प्रकट करता हो,
और इस शब्द को कहने वाले
व्यक्ति का उसकी सच्चाई में पूरा
विश्वास हो, तो वह शब्द बिना कोई निशान छोड़े खो नहीं जाता. इन
सब बाहरी उपायों की ज़रूरत सिर्फ अपने कथन पर हमारे अविश्वास के कारण पड़ती
है”.
चेर्त्कोव
के दूत ने प्रतिवाद किया.
“मैं
आपसे छुपाऊँगा नहीं,”
उसने बातों बातों में
कहा, “कि हम मित्रों को ये ताने सुनकर कितना दुख हुआ होगा, जिनका तात्पर्य ये था, कि
अपनी समस्त अचल सम्पत्ति को त्यागने के बाद भी, आपने
अपनी जागीर पत्नी और बच्चों के नाम पर हस्तांतरित कर दी. उसी तरह ये सुनने में भी
तकलीफ़ होगी, कि जैसे,
बावजूद इसके, कि टॉल्स्टॉय, शायद
जानता था, कि उसकी सन् 1891 की घोषणा कानूनी दृष्टि से सशक्त
नहीं है, फिर भी उसने अपनी इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए कुछ
नहीं किया, और इस तरह फिर से जानबूझ कर अपनी साहित्यिक सम्पत्ति
को अपने परिवार के सदस्यों को सौंपने का मार्ग सुलभ कर दिया. मैं बता नहीं सकता, कि आपके मित्रों को यह सुनकर कितना दुख होगा...”
ये
तीर ठीक निशाने पर पड़ा. टॉल्स्टॉय कब से ये कह रहा था और लिख भी रहा था, कि परिवार को सम्पत्ति सौंपकर वह पछता रहा है: उसके
निरीक्षण के अनुसार,
परिवार के कुछेक सदस्यों
को धन के कारण बड़ा नुक्सान पहुँचा है.
सैर
करते हुए स्त्राखोव की टिप्पणियों पर विचार करने के बाद टॉल्स्टॉय ने
अलेक्सान्द्रा ल्वोव्ना को वसीयत में (मतलब चेर्त्कोन के पूर्ण नियंत्रण में) अपनी
सभी रचनाएँ देने का फ़ैसला किया – वे भी, जो सन्
1881 के पहले लिखी गई थीं और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना द्वारा पारिवारिक लाभ के लिए
प्रकाशित की जा रही थीं.
ये
तो चेर्त्कोव की अपेक्षा से भी ज़्यादा था. टॉल्स्टॉय के इस निर्णायक कदम की सराहना
करते हुए, उसने फिर भी टॉल्स्टॉय को चेतावनी दी, कि ल्येव निकोलायेविच के बर्ताव से उसके परिवार के
लोगों को ये समझने का मौका मिल गया है,
कि सन् 1881 से पूर्व
लिखी गईं रचनाएँ - उनकी अपनी सम्पत्ति है.
टॉल्स्टॉय
ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया. और कुछेक असफ़ल प्रयत्नों के बाद, 22 जून 1901 को उसने फिर से अपनी अंतिम औपचारिक वसीयत लिख
कर उस पर हस्ताक्षर कर दिए. ये काम अत्यंत गुप्त रूप से, जंगल की घनी झाडियों में किया गया. गवाह थे :
चेर्त्कोव का मित्र – पियानो वादक गोल्डनस्वेज़र और चेर्त्कोव के दो कर्मचारी.
सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना के चेर्त्कोव से संबंध अक्सर कटु होने लगे. ल्येव निकोलायेविच ये
कहने से नहीं थकता था,
कि ये – “उसके लिए
अत्यंत आवश्यक,
अत्यंत घनिष्ठ व्यक्ति
है”. पति के दोस्तों को नापसंद करना कई बीबियों के लिए आम बात होती है. सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना हमेशा ईर्ष्या करने पर उतारू हो जाती थी. उसे अपना ऐतिहासिक कर्तव्य
इस बात में दिखाई देता था,
कि सचमुच में (और ख़ासकर
समकालीनों और भावी पीढ़ियों की नज़र में) एक दयालु परी बने, जो अपने विद्वान पति की योग्यता और स्वास्थ्य की रक्षा
करती है. “अत्यंत आवश्यक व्यक्ति” के प्रकट होने से ये सपने नष्ट हो गए. समय के
साथ साथ उसका स्वभाव चिड़चिड़ा,
निरंकुश, अनियंत्रित होता जा रहा था. कभी कभी उसे ऐसा लगता, कि पति की आत्मा तक पहुँचने का उसका रास्ता चेर्त्कोव
ने रोक रखा है,
जो बड़ी चालाकी से उसके
पारिवारिक जीवन में घुस गया था. ऐसा लगता था, कि
उसने पति को उससे छीन लिया है. मगर ईर्ष्या के दौरे गुज़र जाते, और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना प्रयास पूर्वक छुपी हुई कटुता
को प्रकट न होने देती. साल बीतते रहे. आठ साल के लिए चेर्त्कोव के इंग्लैण्ड में
निष्कासन ने काउन्टेस की ईर्ष्या को कम कर दिया. और सन् 1908 में पारिवारिक
सालगिरह के समारोह में उसने चेर्त्कोव की सेहत का जाम भी पिया, ये कहते हुए, कि उसे
“परिवार का सबसे अच्छा दोस्त समझती है”. सन् 1909 में वह पति के साथ चेर्त्कोव की
जागीर क्रेक्शिनो गई.
मगर
कुछ समय से उसे महसूस हो रहा था,
कि उसके चारों ओर कोई
षड़यंत्र चल रहा है. ल्येव टॉल्स्टॉय के कुछ रहस्य उत्पन्न हो गए. छोटी बेटी
(काउन्टेस अलेक्सान्द्रा ल्वोव्ना) स्वतंत्र वयस्क व्यक्ति बन गई. वह पिता को
पूजती थी. बड़ी बहनों के ही समान,
वह उसके अध्ययन कार्य
में सहायता करती थी और इसके लिए उसने स्टेनोग्राफ़ी भी सीखी. बचपन से ही
अलेक्सान्द्रा ल्वोव्ना बहुत ऊर्जावान,
आत्मबल से परिपूर्ण थी, मगर स्वभाव से थोड़ी मनमौजी किस्म की थी. पिता के हितों
की रक्षा करते हुए,
माँ के प्रति उसका
बर्ताव पूरी तरह दोस्ताना नहीं रहा. अपनी सहेली के साथ, जो
यास्नाया पल्याना में टाइपिस्ट का काम करती थी, काउन्टेस
अलेक्सान्द्रा ल्वोव्ना ने जैसे “टॉल्स्टॉय पार्टी” बना ली थी. उनके पीछे नेपथ्य
में खड़े थे चेर्त्कोव,
संगीत-विद्यालय के प्रोफेसर
गोल्डेनवैज़र और ल्येव निकोलायेविच के अन्य घनिष्ठ मित्र. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना
अकेली रह गई. ये सही है,
कि छोटे बेटों में से दो, जो टॉल्स्टॉय के विचारों के प्रति उसके निषेधात्मक
रवैये, विरासत के प्रति दिलचस्पी और चेर्त्कोव के प्रति नफ़रत
से सहमत थे, उसका बड़े जोश से समर्थन करते थे. मगर वे यास्नाया
पल्याना कभी-कभार ही आते थे.
बेहद
जर्जर और अत्यंत शांतिप्रिय टॉल्स्टॉय के इर्दगिर्द दो संघर्षरत गुट बन गए, जो उसके टुकड़े कर रहे थे.
सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना यकीन के साथ कहती थी,
कि पिछले कुछ दिनों में
उससे सब कुछ छुपाया जा रहा था : उसकी बेटी साशा और चेर्त्कोव के विभिन्न
सेक्रेटरियों के बीच बातचीत,
मुलाकातें, पत्र,
कुछ दस्तावेज़ों का गुप्त
रूप से लेन-देन,
जैसा उसके लम्बे विवाहित
जीवन में पहले कभी नहीं हुआ था. अगर इतने प्रयास पूर्वक उससे कुछ छुपाया जा रहा था, तो इसका मतलब ये था, कि
छुपाने जैसा कुछ है. अपने चारों ओर की हर चीज़ काउन्टेस के मन में भय और शक पैदा कर
रही थी.
बेशक, आर्थिक संसाधनों से संबंधित प्रश्नों की भी इन मानसिक
परेशानियों में महत्वपूर्ण भूमिका थी. परिवार में, जिसे
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार करती थी, अब (पोते-पोतियों समेत) 28 व्यक्ति थे. इस परिवार की
भलाई काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करती थी, कि वह
ल्येव टॉल्स्टॉय की अनचाही वसीयत से उत्पन्न ख़तरे को दूर कर पायेगी या नहीं. दस
लाख रूबल्स एक बाल से लटके हुए थे. नये, हाल ही
में शुरू किए गए 20 खण्डों के संकलन के प्रकाशन का भविष्य भी लगातार परेशान कर रहा
था.
वो
घड़ी भी आई, जब काउन्टेस का स्वास्थ्य इन सब परेशानियों का मुकाबला
नहीं कर पाया. 22 जून को टॉल्स्टॉय को, जो चेर्त्कोव के पास रुका हुआ था, पत्नी का चिंतित करने वाला टेलिग्राम मिला और वह
यास्नाया लौट आया. उसने पत्नी को भीषण परिस्थिति में पाया. बेशक, वह मानसिक रूप से बीमार थी. चेर्त्कोव किसी बीमारी से
इनकार ही कर रहा था. मगर इसके लिए कोई आधार नहीं था. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना को
छियासठवां साल चल रहा था. वह झेल चुकी थी विवाहित जीवन के (असाधारण रूप से मानसिक
घबराहट और परिश्रम से भरपूर) 48साल और तेरह प्रसूतियाँ. वैसे, सन् 1906 में ही काउन्टेस की ‘जर्जर’
मानसिक स्थिति के चलते, स्नेगिरेव ऑपरेशन करने का फ़ैसला नहीं कर सके थे.
आख़िरकार, सन् 1910 के जून में यास्नाया पल्याना में बुलाए गए दो
डॉक्टरों – मनोरोग चिकित्सक प्रोफेसर रस्सोलिमो और बढ़िया डॉक्टर निकितीन ने, जो काफ़ी पहले से सोफ्या अन्द्रेयेव्ना को जानते थे, दो दिनों के अवलोकन और परीक्षणों के बाद, ये निदान किया कि “दुहरा अपक्षयी संयोजन : मानसिक
उन्माद और वातोन्माद,
जिनमें पहला ज़्यादा
प्रबल है”. प्रस्तुत घडी में वे “प्रासंगिक उत्तेजना की अवस्था में हैं”.
स्थिति
की नाटकीयता इस बात से बढ़ गई,
कि बीमारी के अत्यंत
स्पष्ट लक्षणों में ईर्ष्या,
घृणा और आर्थिक पहलू भी
गुंथ गए थे. चेर्त्कोव और उसके मित्र सिर्फ दुर्भावनापूर्ण बहाना देखना चाह रहे थे
और टॉल्स्टॉय से निर्णायकता और दृढ़ता की मांग कर रहे थे. मगर ल्येव निकोलायेविच
कुछ और ही सोच रहा था.
“जानता
हूँ”, उसने डायरी में लिखा (14 अगस्त 1910), “कि ये हाल ही की, ख़ास
तौर से बीमारी की हालत बहाना भी हो सकती है, जिसे
जानबूझकर पैदा किया गया है (अंशतः ऐसा ही है), मगर
इसमें मुख्य बात फिर भी बीमारी है,
पूरी तरह स्पष्ट बीमारी, जो उसे इच्छा शक्ति से, अपने
आप पर नियंत्रण से वंचित कर रही है. अगर कहें तो, इस
बेलगाम इच्छा में,
स्वार्थपूर्ण व्यवहार
में, जो काफ़ी पहले ही शुरू हो चुके थे, वह ख़ुद ही दोषी है, तो ये दोष
पहले का, पुराना है;
अब तो वह पूरी तरह
मानसिक संतुलन खो बैठी है,
और उसके प्रति दया के
अलावा कोई और भावना रखना ही नहीं चाहिए, और, उसका विरोध करना और उसकी तकलीफ़ को बढ़ाना, ये असंभव है, मेरे
लिए, कम से कम मेरे लिए. इस बात में, कि मेरे निर्णयों पर, जो
उसकी इच्छा के विरुद्ध हैं,
दृढता से अडे रहना, उसके लिए फ़ायदेमन्द हो सकता है, मैं विश्वास नहीं करता, और अगर
करता भी, तो भी ऐसा नहीं कर सकता था...”
वह
दोनों विरोधी पक्षों को समझाता है,
“बात का बतंगड” न बनाने
की विनती करता है,
चेर्त्कोव को लिखता है :
“उसके ऊपर भीषण दया आती है. जब सोचते हो, कि रात
को अकेले में उसे कैसा लगता होगा,
जिसका आधा हिस्सा वह
बिना सोए काटती है,
अस्पष्ट, मगर बीमार चेतना के साथ, कि वह
सबके लिए अप्रिय और बोझ है,
बच्चों को छोड़कर...दया आ
ही जाती है”.
“कुछ
लोग, जैसे साशा,”
उसने कहा, “हर चीज़ को लालच की पृष्ठभूमि से समझाना चाहते हैं. मगर
यहाँ मामला अत्यंत उलझा हुआ है! सहजीवन के ये चालीस साल...फिर आदत भी है, और मिथ्याभिमान भी, और
ईर्ष्या भी, और बीमारी भी...अपनी इस हालत में वह भयानक रूप से
दयनीय हो जाती है!...”
पहला
बड़ा झगड़ा हुआ टॉल्स्टॉय की डायरियों के कारण, जिनका
कुछ हिस्सा चेर्त्कोव के पास मिला. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने तैश भरा ख़त लिखकर
चेर्त्कोव से डायरियाँ लौटाने को कहा;
उसने इनकार कर दिया. इस
बात को लेकर शुरू हुए उन्मादपूर्ण दौरों के समय चेर्त्कोव ने अत्यंत अशिष्ठता का
व्यवहार किया. सोफ्या अन्नद्रेयेव्ना ने मांग की, कि
चेर्त्कोव कभी उनके घर न आए. जुलाई के मध्य में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने अंदाज़ लगा
लिया, कि कोई वसीयत विद्यमान है.
और
टॉल्स्टॉय के घर में,
सुखी और प्रसन्न
यास्नाया पल्याना में नर्क की शुरुआत हो गई. अभागी औरत ने अपने आप पर से पूरा
नियंत्रण खो दिया. वह छिप कर बातें सुनती, ताक-झांक
करती, कोशिश करती कि पति एक भी पल के लिए नज़रों से ओझल न हो, उसके कागज़ात खंगालती, वसीयत
ढूँढ़ती, अपने बारे में या चेर्त्कोव के बारे में कोई रेकॉर्ड्स
ढूँढ़ती. वह आसपास के लोगों से अच्छा व्यवहार करने की योग्यता खो बैठी. समय समय पर
पति के पैरों पर गिर जाती,
ये बताने की विनती करती, कि क्या कोई वसीयत है. वह उन्माद में गडगड लोटती, गोली चलाती, अफीम
का डिब्बा लेकर भागती,
हर पल धमकी देती, कि अगर उसकी कोई ज़िद फ़ौरन पूरी न हुई, तो वह लटक जाएगी...
बयासी
साल के टॉल्स्टॉय की ज़िंदगी में ज़हर घुल गया था. उसकी आत्मा पर गुप्त वसीयत का बोझ
था. पूरे समय वह अपनी बीबी के,
जो पूरी तरह सामान्य
नहीं थी और उसके विरोधियों के बीच होता था, जो
बीमार औरत को हर संभव अपराध का दोष देने पर तुले हुए थे.
आत्महत्या
की उसकी धमकियों के कारण,
जो लगभग रोज़मर्रा की
घटना बन चुकी थीं,
वह हमेशा भयानक तनाव से
ग्रस्त रहता था.
“ज़रा
सोचिये,” उसने कहा,
“ये आत्महत्या की धमकियाँ
– कभी खोखली,
मगर कभी – कौन कह सकता
है? – सोचिये,
कि ये हो सकता है! अगर
ये मेरी अंतरात्मा पर बोझ बन कर रह जाये, तो
क्या होगा?”
प्यार
और सत्य के दूत के इर्द गिर्द का संघर्ष पैनेपन और नफ़रत की किस हद तक पहुँच गया, ये 27 जुलाई 1910 को चेर्त्कोव द्वारा टॉल्स्टॉय को
लिखे गए पत्र से स्पष्ट है:
“प्रिय
मित्र, मैं अभी अलेक्सान्द्रा ल्वोव्ना से मिला, जिसने मुझे बताया कि आपके चारों ओर क्या हो रहा है.
उसे हमारे मुकाबले कहीं ज़्यादा दिखाई देता है, क्योंकि
उसके सामने कोई हिचकिचाता नहीं है,
और वह अपनी ओर से ‘वो’
देखती है, जो हमें दिखाया नहीं जाता...
कठोर
सत्य, जिसे आपको सूचित करना ज़रूरी है, ये है कि पिछले कुछ हफ़्तों में हुए सभी नाटक, ल्येव ल्वोविच का आगमन और अन्द्रेइ ल्वोविच का … इन सब
का एक ही विशिष्ठ,
व्यावहारिक उद्देश्य है.
और अगर ऐसा करते हुए सचमुच में बीमारी कुछ प्रसंग प्रकट हुए हों, क्योंकि इतने लम्बे, तनावपूर्ण
और थका देने वाले नाटक के चलते ये तो हो ही नहीं सकता था, कि वे प्रकट न हों, तो इन
बीमारी के प्रसंगों का भी कुशलता से इस्तेमाल किया गया, सिर्फ
उसी एक उद्देश्य के लिए.
उद्देश्य
ये था, कि मुझको आपसे दूर करके, और, यदि संभव हो, तो
साशा को भी, निरंतर सामूहिक दबाव डालकर आपसे ये निकलवाया जाए, कि कहीं आपने कोई वसीयत तो नहीं लिखी है, जो आपके परिवारिक सदस्यों को आपकी साहित्यिक धरोहर से
वंचित करती हो;
अगर नहीं लिखी हो, तो आपकी मृत्यु तक आप पर लगातार नज़र रखते हुए आपको ऐसा
करने से रोकना,
और अगर लिखी है, तो आपको कहीं जाने न दिया जाए, जब तक कि
‘ब्लैक हण्ड्रेड’ (अति-राष्ट्रवादी संघटना से संबंधित – अनु.) डॉक्टरों को नहीं बुला लिया जाता, जो ये घोषित कर दें, कि
आपको वृद्धावस्था के कारण स्मृतिभ्रंश हो गया है, इस
उद्देश्य से कि आपकी वसीयत की कोई अहमियत नब रहे...”
टॉल्स्टॉय
एक अतीव घृणास्पद संघर्ष में लिप्त हो गया था, जो
उसके चारों तरफ़ और उसीके लिए, उसके निकटतम लोगों के बीच हो रहा था. वह थक गया था और
हाँफ रहा था. आख़िरकार,
3 अक्टूबर को उसे एक भयानक
दौरा पड़ा. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना घबराई नहीं. उसने मरणासन्न पति के चारों ओर मौजूद
बच्चों और डॉक्टर की मदद की. फिर वह घुटनों के बल बैठ गई, उसके पैरों का आलिंगन किया, पैरों
पर अपना सिर रखा और देर तक उसी अवस्था में रही.
वह
बेहद दयनीय प्रतीत हो रही थी. मरीज़ के बिस्तर के पास और अकेले में, भागकर दूसरे कमरों में जाते हुए, वह आँखें ऊपर को उठा लेती, जल्दी-जल्दी
छोटे-छोटे सलीब बनाती और फुसफुसाती : “ख़ुदा! बस, इस बार नहीं, सिर्फ
इस बार नहीं!...”
अलेक्सान्द्रा
ल्वोव्ना से उसने कहा :
“मैं
तुमसे ज़्यादा कष्ट उठा रही हूँ : तुम अपने पिता को खो रही हो, मगर मैं पति को खो रही हूँ, जिसकी
मृत्यु के लिए मैं दोषी हूँ!...”
निष्पक्ष
लोगों की गवाही के अनुसार,
ये ख़ौफ़ और शोक पूरी तरह
सच्चे थे.
मगर
फिर भी...इन्सान के दिल की थाह कौन पा सका है? अपनी
परेशानी के बावजूद,
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने
पति की लिखने की मेज़ से कागज़ातों की अटैची ले ही ली.
बड़ी
बेटी ने उसे रोका:
“मम्मा, आप अटैची क्यों ले रही हैं?”
“इसलिए, कि चेर्त्कोव न ले ले...”
टॉल्स्टॉय
अच्छा हो गया. मगर वह बेहद कमज़ोर हो गया था, उसे
निकट आती मृत्यु का एहसास हो रहा था और वह अधिकाधिक दृढ़ता से इस “पागलों के घर” से
भाग जाने का इरादा कर रहा था,
जो नफ़रत और लड़ाई-झगड़ों
से संक्रमित है. उसे किसी शांत वातावरण में प्राण त्यागने की इच्छा होने लगी, लोगों से दूर, जो
“उसे रूबल्स में बदलना चाहते थे”.
अक्टूबर
के अंत में उसने किसान नोविकोव से,
जिसे वह काफ़ी पहले से
जानता था, कहा:
“इस
घर में मैं नर्क की तरह उबल रहा हूँ. हाँ, हाँ, यकीन करो,
मैं आपसे साफ़-साफ़ कह रहा
हूँ, कि मैं इस घर में नहीं मरूँगा. मैंने किसी अनजान जगह
पर जाने का फ़ैसला कर लिया है,
जहाँ कोई मुझे न जानता
हो. और, हो सकता कि मैं सीधा मरने ही के लिए तुम्हारी झोंपडी
में आऊँ...ये मैंने सिर्फ अपने लिए नहीं किया, नहीं
कर सका, मगर अब देख रहा हूँ, कि
परिवार वालों के लिए भी ये बेहतर होगा,
मेरे कारण क्लेष, पाप कम होंगे...”
24
अक्टूबर को ल्येव निकोलायेविच ने इस किसान को लिखा, कि अगर
वह यास्नाया से भाग जाने का निर्णय कर ले, तो उसे
फ़ौरन बताए, कि क्या उसके आसपास कोई छोटी सी, गरम झोंपडी किराए पर मिल सकती है.”
मगर
टॉल्स्टॉय देर कर रहा था और दुविधा में था. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने पहले ही पति
को दृढ़तापूर्वक और निर्णयात्मक ढंग से कह दिया था, कि
जैसे ही वह घर से जायेगा,
वो आत्महत्या कर लेगी.