रविवार, 17 जून 2018

Tolstoy and His Wife - 10.1




अध्याय - 10


अस्त


1
                                          

              
        नब्बे के दशक के मध्य में एक बार काउन्टेस सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना छोटे बेटों के शिक्षक से बातें कर रही थी. बात हो रही थी “कैज़र्स सनाटा” की, और मर्द और औरत के बीच रिश्तों की. टॉल्स्टॉय भीतर आया.

“ये आप किन सवालों पर अटके हुए हैं!” उसने कहा. “मगर मेरी राय में वे, जो उपन्यासों में शादी से समाप्त करते हैं, जैसे कि ये इतना अच्छा है, कि आगे कुछ और लिखने की ज़रूरत ही नहीं है, - वे सब बकवास करते हैं. अगर तुलना ही करनी है, तो शादी की अंतिम संस्कार से तुलना करें, ना कि नामकरण वाले दिन से. आदमी अकेला जा रहा था – उसके कंधों पर पाँच पाउण्ड का वज़न बाँध दिया, और वो ख़ुश है. इसमें कहना ही क्या है, कि अगर मैं अकेला जा रहा हूँ, तो मुझे आज़ादी का एहसास होता है, मगर यदि मेरा पैर औरत के पैर से बांध दिया जाये, वह मेरे पीछे-पीछे घिसटती रहेगी और मुझे परेशान करेगी.
“तुमने शादी ही क्यों की?” काउन्टेस ने पूछा.
“तब मैं ये नहीं जानता था.”
“मतलब, तुम हमेशा अपनी राय बदलते रहते हो.”
“हर इन्सान को सम्पूर्णता प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए. व्यक्तिगत रूप से मैं पारिवारिक जीवन की शिकायत नहीं कर सकता. बल्कि, मेरा पारिवारिक जीवन सुखी रहा है. मैं कई लोगों को जानता हूँ, जिनकी एक दूसरे से बहुत अच्छी तरह पटती है और वे अच्छी तरह रहते हैं. मगर फिर भी शादी – कोई त्यौहार नहीं है. दो इन्सान मिलते हैं, ताकि एक दूसरे को परेशान करें”.
“और मेरी राय में, वे इसलिए मिलते हैं, ताकि एक दूसरे की मदद कर सकें.”
“कहाँ की मदद? दो अजनबी इन्सान एक साथ आते हैं, और वो पूरी ज़िंदगी अजनबी ही बने रहते हैं. पति और पत्नी की दो समानांतर रेखाओं से तुलना करते हैं. कैसी समानांतर रेखाएँ! मैं हमेशा कहता था, कि अनगिनत छेदती हुई रेखाओं के बीच जितना मुश्किल, बल्कि नामुमकिन है दो समानांतर रेखाएँ ढ़ूँढ़ना, इतना ही मुश्किल है दो समान प्रकृति के व्यक्तियों से मिलना. शादी दो रेखाओं का छेदन है : जैसे ही वे एक दूसरे को छेदती हैं, फ़ौरन विभिन्न दिशाओं में चली जाती हैं.

बेशक, जिसे शादी करना हो, कर सकता है. हो सकता है, उसके लिए अपनी ज़िंदगी अच्छी बनाना मुमकिन हो. मगर वह इस कदम की ओर वह सिर्फ इस तरह देखे, जैसे उसका पतन हो रहा हो, और पूरी ज़िंदगी सिर्फ यही देखने में लगा दे, कि अपना सहजीवन यथासंभव सुखी बनाए.”

सन् 1899 के अंत में टॉल्स्टॉय ने अपनी डायरी में लिखा : “ पारिवारिक दुर्भाग्य का मुख्य कारण ये है, कि लोग ये विचार लिये बड़े होते हैं, कि शादी सुख देती है. शादी की ओर ललचाता है लैंगिक आकर्षण, जो सुख के वादे का, उम्मीद का स्वरूप लेता है, जिसका समर्थन सामाजिक राय और साहित्य करते हैं : मगर शादी न सिर्फ दुख है, बल्कि पीड़ा है, जो लैंगिक इच्छा को संतुष्ट करने के लिए इन्सान चुकाता है. पीड़ा – बंधन, दासता, परितृप्ति, घृणा; जीवनसाथी के हर तरह आध्यात्मिक और शारीरिक दोषों के रूप में, जिन्हें बर्दाश्त करना पड़ा है : दुष्टता, बेवकूफ़ी, झूठ, शराबीपन, आलस, कंजूसी, लालच और व्यभिचार, - सारे दोष, जिन्हें बर्दाश्त करना ख़ास तौर से मुश्किल है अपने भीतर नहीं, बल्कि दूसरे के भीतर और उनसे दुख पाना, जैसे वो तुम्हारे हों; और ऐसे शारीरिक दोष : कुरूपता, गंदगी, दुर्गंध, घाव, पागलपन वगैरह, जिन्हें झेलना और भी मुश्किल है, जब तुम्हारे भीतर न हों. ये सब या इसमें से कुछ तो हमेशा होगा, और हरेक को इस बोझ को झेलना ही पड़ता है. फिर, जिसका मूल्य चुकाना चाहिये : फिक्र, संतुष्टि, मदद – ये सब सहज मान लिया जाता है; सारे दोष – अनावश्यक समझ लिए जाते हैं, और जितनी ज़्यादा शादी से सुख की उम्मीद थी, उतना ही ज़्यादा उनसे दुख उठाना पड़ता है. इन कष्टों का मुख्य कारण ये है, कि उसकी उम्मीद करते हैं, जो होता नहीं है, और उसकी उम्मीद नहीं करते, जो हमेशा होता है. और इसलिए इन कष्टों से मुक्ति पाने का उपाय सिर्फ यही है, कि ख़ुशियों का इंतज़ार न करो, बल्कि बुरे का इंतज़ार करो, उसे झेलने की तैयारी करते हुए. अगर उस सबकी उम्मीद करोगे, जो “एक हज़ार एक रातें” के आरंभ में लिखा है : अगर शराबीपन, दुर्गंध, घृणित बीमारियों की उम्मीद रखते हो – तो ज़िद्दीपन, झूठ, शराबीपन को न सिर्फ माफ़ किया जा सकता है, बल्कि उससे पीड़ा नहीं होगी और ख़ुशी होगी, कि वो नहीं है, जो हो सकता था, जो “एक हज़ार एक रातें” में लिखा है” : पागलपन, कैन्सर वगैरह नहीं है. और तब हर अच्छाई की कद्र होगी”.

उम्र के साथ-साथ टॉल्स्टॉय औरतों के बारे में अधिकाधिक अपने विचार प्रगट करता है. ये विचार भयानक हैं. औरतों पर अपने मित्रों और विद्यार्थियों के सामने – कभी कभी औरतों की उपस्थिति में भी वह खुले आम दोषारोपण करता है. वह इससे भी आगे बढ़ता है, और अक्सर ये संकेत देता है, कि उसके विचार – अपनी पत्नी और बेटियों के निरीक्षण का नतीजा है.

“अगर मर्द,” वह कहता, “सारी औरतों को उसी तरह जानते होते, जैसे पति अपनी पत्नियों को जानते हैं, तो वे उनसे कभी भी, किसी भी गंभीर विषय पर बात न करते...”                            
वह अपनी डायरी में लिखता है (16 जून 1901) : “औरतें अपने पतियों को सिर्फ तब जान पाती हैं (जब देर हो चुकी होती है). सिर्फ पति उन्हें परदे के पीछे से भी देख लेते हैं. इसीलिए लेसिंग ने कहा था, कि सारे पति कहते हैं : एक बेवकूफ़ औरत थी और वो थी मेरी बीबी. दूसरों के सामने वे इतनी कुशलता से नाटक करती हैं, कि कोई समझ ही नहीं पाता, कि वे असल में कैसी हैं, ख़ासकर तब, जब वे जवान हैं”.

और, ऐसा लगता था, कि कम से कम अपनी बेटियों के निरीक्षणों से टॉल्स्टॉय के औरतों के प्रति विचार सुधर जाने चाहिए थे. टॉल्स्टॉय की तीनों बेटियाँ पिता के प्रति अपरिवर्तनीय रूप से समर्पित थीं. वे सब किसी न किसी हद तक पिता के अधिकार के, उसकी योग्यता के आगे नतमस्तक थीं, ख़ुशी से उसके आध्यात्मिक जीवन के विवरणों में प्रवेश करती थीं, सक्रिय रूप से उसके विस्तृत पत्राचार में मदद करती थीं.

इसके विपरीत, महान लेखक के पाँचो बेटे उसकी शिक्षा से अलग-थलग ही रहे. दोनों बड़े ( सिर्गेइ और इल्या ल्वोविच), जो पहले वाले टॉल्स्टॉय के सम्मोहन में बड़े हुए थे, उससे जुड़े हुए थे. बाकी के तीनों उसके कम करीब थे. वे दर्दनाक पारिवारिक जटिलताओं के कालखण्ड में बड़े हुए थे, और उनकी सहानुभूति माँ की ओर थी.

धीरे-धीरे परिवार छोटा होता गया. औरर्तों के बारे में टॉल्स्टॉय के विचारों ने उसके बेटों के जल्दी शादी करने में कोई बाधा नहीं डाली; उनमें से सबसे छोटे की शादी सन् 1901 में हुई. शादी के बाद वे अपने कारोबार में लग गए, और सिर्फ कभी-कभार ही यास्नाया पल्याना आते.

मगर टॉल्स्टॉय की बेटियों की भी, जो उसके विचार साझा करती थीं, समय आने पर शादियाँ हो गईं – मारिया ल्वोव्ना की सन् 1897 में राजकुमार अबलेन्स्की से, और तात्याना ल्वोव्ना की सन् 1899 में ज़मींदार मिखाइल सिर्गेयेविच सुखातीन से..      

टॉल्स्टॉय के परिवार में सिर्फ तीन लोग रह गए – पत्नी, ख़ुद टॉल्स्टॉय और छोटी बेटी.

1900 के दशक में बूढ़ा हो चुका टॉल्स्टॉय अक्सर और गंभीर बीमारियों से जूझता रहा. सन् 1901 में उसकी तबियत इतनी बिगड़ गई, कि पारिवारिक कौन्सिल में, डॉक्टरों की ज़िद पर उसे सर्दियों में क्रीमिया के दक्षिणी तट पर ले जाने का फ़ैसला किया गया. इस बारे में जानकर काउन्टेस पानिना ने हेस्प्रा में अपना शानदार बंगला टॉल्स्टॉय परिवार के लिए खोल दिया. यहाँ टॉल्स्टॉय ने लगातार एक के बाद एक तीन गंभीर बीमारियों को बर्दाश्त किया. कभी कभी ऐसा प्रतीत होता कि अंतिम घड़ी आ पहुँची है. डॉक्टर उम्मीद छोड़ रहे थे. मगर मरीज़ का असाधारण रूप से ताकतवर शारीरिक गठन, चारों ओर से आये हुए डॉक्टरों द्वारा अत्यंत एकाग्रता से किया गया इलाज और बेहतरीन देखभाल ने टॉल्स्टॉय को बचा लिया. इस कठिन सर्दियों के मौसम में टॉल्स्टॉय अपने परिवार की नाज़ुक, भावपूर्ण देखभाल और प्यार में सुरक्षित था. सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना रातों को सोती नहीं थी और उसके बिस्तर से लगभग कभी भी दूर नहीं हटती थी. बेटे, बेटियाँ, मित्र हेस्प्रा आते, लम्बे समय तक रहते और मरीज़ के बिस्तर के पास बारी-बारी से मौजूद रहते.

सामान्य राय के मुताबिक, ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा टॉल्स्टॉय चारों ओर के लोगों के प्रति अत्यंत सहनशील, दयालु और स्नेहपूर्ण था.

यास्नाया पल्याना में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने अपनी डायरी में लिखा :

“कल सुबह मैं उसे गर्मी देने वाला कम्प्रेस बांध रही थी, उसने अचानक मेरी तरफ़ एकटक देखा, रोने लगा और बोला : “शुक्रिया, सोन्या. तुम ऐसा न सोचना कि मैं तुम्हारा एहसानमन्द नहीं हूँ और तुमसे प्यार नहीं करता...”  और आँसुओं की वजह से उसकी आवाज़ टूट गई, और मैंने उसके प्यारे, मेरे लिए इतने परिचित हाथों को चूम लिया और उससे कहा, कि उसका अनुसरण करना मेरा सौभाग्य है, कि मैं उसके सामने अपने आप को अपराधी महसूस करती हूँ, अगर मैं उसे पर्याप्त सुख नहीं दे पाई, तो वह मुझे इसके लिए माफ़ कर दे, जो मैं उसे न दे सकी, और हम दोनों, आँसुओं में डूबे, एक दूसरे के आलिंगन में समा गए, और फिर वो हुआ, जिसकी मेरी रूह को कब से ख़्वाहिश थी – ये थी हमारे 39साल के वैवाहिक सहजीवन के घनिष्ठ संबंधों की गंभीर, गहरी स्वीकृति....हर चीज़ जिसने समय समय पर उसमें बाधा डाली थी, वो कोई बाहरी भुलावा था और उसने कभी भी हमारे मज़बूत, सबसे बेहतरीन प्यार के अंतरंग संबंधों को कभी भी नहीं बदला...”      

क्रीमिया की बीमारी के बाद परिवार पूरे साल भर यास्नाया पल्याना में ही रहा. बच्चों की शिक्षा को एक तरफ़ कर दिया गया. सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना कभी-कभार ही काम के सिलसिले में मॉस्को जाती थी.
मगर पति-पत्नी के बीच के मतभेद ख़त्म नहीं हुए. दिन प्रतिदिन के व्यवहार में टॉल्स्टॉय के सोफ्या अन्द्रेयेव्ना से पहले जैसे – गर्माहट भरे, मानवतापूर्ण रिश्ते नहीं दिखाई देते. वह जान बूझकर अपने आप को असाधारण बंधनों से मुक्त रखने की कोशिश करता – ये उसके सिद्धांत के अंतर्गत था. उसके आदर्श के अनुसार – सभी लोगों के प्रति परोपकार की एक जैसी भावना रखना, और ख़ासकर दुश्मनों के प्रति. घनिष्ठ लोगों से असाधारण लगाव – पाप है और इसे दूर हटाना चाहिए. बेशक, ये सभी – सिद्धांत ही हैं. वास्तविकता में, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वह इन्सान ही बना रहा और, बीबी के प्रति पहले जैसे प्यार को खोकर, उससे हमेशा ही क्रिश्चियन धर्म” के अनुसार बर्ताव करने में असफ़ल रहा. अक्सर वह परेशान हो जाता, चिड़चिड़ाता, मज़ाक उड़ाता.

इसके विपरीत, सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना, उसके प्रति बचे-खुचे व्यक्तिगत आकर्षण को संभाले रही. वह उसकी सेवा-सूश्रुषा करती, हर तरह से उसके शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखती, उसके द्वारा थोड़ा भी ध्यान दिये जाने पर परेशान हो जाती, उसके मुख पर लाली छा जाती. मगर टॉल्स्टॉय की शिक्षा से वह अपनी पूरी आत्मा से नफ़रत करती थी : इस बात को तो छोड़ ही दीजिए, कि ये शिक्षा परिवार के, जीवन की भौतिक परिस्थितियों के विरोध में थी, उसने, इस शिक्षा ने, उसके प्रिय व्यक्ति की रूह को उससे छीन लिया था और उन दोनों के बीच रुकावट खड़ी कर दी थी. टॉल्स्टॉय के प्रशंसकों की भीड़ में अलग-थलग पड़कर, वह कठोर हो गई और टॉल्स्टॉय के विचारों के प्रति थोड़ा सा इशारा करते ही विरोध करना ज़रूरी समझती. टॉल्स्टॉय के ताने, उसके विरोध, परिवार के, शादी के और औरतों के बारे में उसकी टिप्पणियाँ उसे उकसातीं और अपनी ओर से, किसी की भी उपस्थिति से हिचकिचाए बिना, टॉल्स्टॉय के विचारो के विरोधाभासों को सिद्ध करने और उन पर हँसने को मजबूर करतीं. ऐसा करते हुए उसका आत्म विश्वास, जिसके बारे में शादी के आरंभिक वर्षों में ही टॉल्स्टॉय को शिकायत थी अविश्वसनीय सीमा तक बढ़ जाता. “महान” लेखक के विचारों के प्रति सम्पूर्ण अनादर का भाव उसके अनुयायियों को आघात पहुँचाता और ख़ुद उस पर भी इसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता. वह चुप हो जाता, अपने आप में सिमट जाता, कभी कभी फट पड़ता और तमाशे करता.

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