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“क्रैज़र
सनाटा” का आरंभ हुआ था सन् 1887 में. ये शीर्षक आरंभिक मूलपाठ के लिए उचित न होता, क्योंकि उसमें पज़्नीशेव की बीबी को फुसलाने वाला
संगीतकार नहीं,
बल्कि कलाकार था. पति ने
उन्हें रंगे हाथ पकड़ा था. यह दृश्य,
जो सोफ्या अन्द्रेयेव्ना
की राय में, ज़ोल्या की शैली में लिखा गया था –
उसे बिल्कुल अच्छा नहीं
लगा. उसने टॉल्स्टॉय को यकीन दिलाया,
कि ये “घिनौना” है, कि ऐसे दृश्य की कोई आवश्यकता नहीं है, कि पति का प्रतिशोध तो दिलचस्प है, मगर उसके पीछे छिपे कारण का कोई औचित्य नहीं है.
ल्येव
निकोलायेविच ने नाराज़गी से इन टिप्पणियों को सुना और त्योरी चढ़ा ली. ऐसा लगा, कि अपने काम में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा.
शायद, इसीलिए उसने शुरू किए गए लघु उपन्यास को बीच ही में
छोड़ दिया और इस विषय पर दो वर्ष बाद ही लौटा. टॉल्स्टॉय परिवार में पार्टी थी.
मेहमानों के बीच सुप्रसिद्ध कलाकार रेपिन और मशहूर कथा-वाचक और सूत्रधार कलाकार
अन्द्रेयेव-बुर्लाक था. टॉल्स्टॉय के बड़े बेटे – काउन्ट सिर्गइ ल्वोविच ने, जो अच्छा संगीतकार था – वॉयलिनवादक लसातो के साथ
“कैज़र्स सनाटा’
बजाया. हमेशा की तरह
उसने ल्येव निकोलायेविच को बहुत प्रभावित लिया.
“चलो, क्रैज़र सनाटा” पेश करते हैं,” उसने रेपिन से कहा. “मैं कहानी लिखूँगा, अन्द्रेयेव-बुर्लाक उसे दर्शकों के सामने पढ़ेगा, और आप इस विषय पर चित्र बनाएँगे, जो,
जब अन्द्रेयेव-बुर्लाक
मेरा लघु नाटक पढ़ रहे होंगे,
स्टेज पर रखा रहेगा.
रेपिन
ने कभी भी इस काम को करने की कोशिश नहीं की. अन्द्रेयेव-बुर्लाक की शीघ्र ही मृत्यु
हो गई. और टॉल्स्टॉय सन् 1887 की रूपरेखा की ओर मुड़ा, मगर
बीबी को फुसलाने वाला व्यक्ति अब कलाकार नहीं, बल्कि
संगीतकार बन गया था.
अगस्त
1889 के अंत में लेखक ने यास्नाया पल्याना में अपने मेहमानों के सामने “क्रैज़र
सनाटा” पढ़ा. मगर उसमें सुधार जारी
रहे.
इस
कहानी के साथ भी वही हुआ,
जो पिछले कुछ समय से
टॉल्स्टॉय की अन्य रचनाओं के साथ हो रहा था: सेन्सर ने प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा
दिया, इस बीच कहानी की अनगिनत प्रतियाँ वितरित होती रहीं –
लिथोग्राफ़, हेक्टोग्राफ़ और हस्तलिखित आवृतियों में. पीटरबुर्ग और
मॉस्को के निजी घरों में मेहमान ख़ास तौर से इस कहानी को सुनने के लिए एकत्रित होते
थे, जिसने इतना तूफ़ान खड़ा किया था.
“आप, बेशक,
जानते हैं,” आलोचक स्त्राखव ने लेखक को लिखा, “कि पूरी सर्दियाँ इसी के बारे में बात करते रहे और ये, कि “आपका स्वास्थ्य कैसा है?” के बदले आम तौर पर पूछते : “क्या आपने ‘क्रैज़र्स सनाटा’ पढ़ी?”
कहानी
के कलात्मक पक्ष की आलोचना करते हुए स्त्राखव ने महसूस किया, कि इससे दमदार कोई चीज़ टॉल्स्टॉय ने अब तक नहीं लिखी
है...और इससे ज़्यादा विषादपूर्ण भी – कुछ नहीं”, - उसने
आगे जोड़ा.
अंत
में, सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने स्वयम्, व्यक्तिगत रूप से,
अलेक्सान्द्र
III के सम्मुख प्रस्तुत होकर
टॉल्स्टॉय की रचनाओं के संकलन में इस कहानी को प्रकाशित करने की अनुमति मांगी.
अनेक विनतियों के बाद,
स्त्राखव की ज़िद पर, लेखक ने कहानी में प्रसिद्ध अंतभाषण (उपसंहार) जोड़ा.
क्या
“क्रैज़र सनाटा” सन् 1887 में टॉल्स्टॉय के व्यक्तिगत जीवन पर टिप्पणी थी?
ल्येव
निकोलायेविच की डायरी में ऐसी टिप्पणियाँ मिलती हैं:
“पिछले
कुछ समय से जो विचार मैंने प्रकट किये थे, वे
मेरे नहीं हैं,
बल्कि उन लोगों के हैं, जिन्हें मुझसे आत्मीयता महसूस होती है और जो अपने
प्रश्नों से,
परेशानियों से, विचारों से, योजनाओं
से मुझसे मुख़ातिब हुए थे. तो “क्रैज़र सनाटा” का मुख्य विचार, मतलब,
कहिये, भावनाएँ एक ऐसी महिला की, स्लाविक
महिला की हैं,
जिसने मुझे एक पत्र लिखा
था, जिसकी भाषा तो मज़ाकिया थी, मगर
विषय काफ़ी गंभीर,
लैंगिक मांगों को लेकर
महिलाओं के शोषण के बारे में था. फिर वह मेरे पास आई थी और उसने मुझ पर गहरा
प्रभाव डाला था. ये ख़याल,
कि मैथ्यू की पंक्ति:
“अगर तुम वासना से औरत की तरफ़ देखते हो” इत्यादि का ताल्लुक सिर्फ औरों की बीबियों
से नहीं है, बल्कि अपनी बीबी से भी है, मुझे
एक अंग्रेज़ द्वारा दिया गया था,
जिसने ये लिखा था. और
इसी तरह का बहुत कुछ.”
राजकुमार
खिल्कोव को टॉल्स्टॉय ने ख़त में लिखा: “मुझे इस बात से बहुत ख़ुशी हुई, कि आपने “क्रैज़र सनाटा” की प्रशंसा की. उसमें
प्रदर्शित विचार स्वयम् मेरे लिए भी बहुत विचित्र और अप्रत्याशित थे, जब वे स्पष्ट रूप से मेरे दिमाग़ में आए. कभी कभी मैं
ये सोचता था,
कि कहीं मेरा नज़रिया
इसलिए तो ऐसा नहीं है,
क्योंकि मैं बूढ़ा हूँ.
और इसलिए ऐसे लोगों की राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है, जैसे
आप...”
ये
सारी स्वीकारोक्तियाँ बहुत मूल्यवान हैं. मगर इस बात पर भी गौर करना पड़ेगा, कि बाद में ख़ुद टॉल्स्टॉय को ही पारिवारिक संबंधों में
उस “क्रूर,
ठण्डी शत्रुता” से
आश्चर्य हुआ,
जिससे “क्रैज़र सनाटा”
व्याप्त है.
सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना को इस कहानी से नफ़रत थी. उसे ऐसा लगा, कि
“क्रैज़र सनाटा” के बहाने से अप्रिय अफ़वाहें फैलने लगी हैं : लोग कहते थे, कि इस कहानी में टॉल्स्टॉय ने उस ईर्ष्या को चित्रित
किया है, जिसका अनुभव उसने स्वयम् किया था. काउन्टेस ने फ़ैसला
किया, कि उसे “बच्चों की नज़रों में अपनी प्रतिष्ठा को साफ़
करना चाहिए”. उसने आत्मकथात्मक उपन्यास “किसका दोष?” लिखा.
करीबी लोगों ने उसे प्रकाशित न करने की सलाह दी. “क्रैज़र सनाटा” से विपरीत, जहाँ पारिवारिक विवादों के लिए पति-पत्नी दोनों को दोष
दिया गया है,
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना के
उपन्यास में हर चीज़ के लिए दोषी सिर्फ पति है. उपन्यास का प्रमुख पात्र –
राजकुमारी प्रज़रोव्स्की है. उसने तूफ़ानी जोश से बिताई जवानी के बाद, 35 साल की उम्र में अठारह साल की आन्ना से शादी की, जिसके वर्णन में काउन्टेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी. आन्ना
एक आदर्श महिला है: पाक-साफ़,
चंचल, भली,
धार्मिक इत्यादि.
राजकुमार प्रज़रोव्स्की,
इसके विपरीत, अशिष्ट,
कामुक जानवर है. रास्ते
में अपनी मंगेतर के पीछे-पीछे जाते हुए, वह
ललचाई नज़रों से उसके नितम्बों की ओर देखता, और
ख़यालों में उसे विवस्त्र करता. शादी के बाद नौजवान गाड़ी में जा रहे थे, और यहाँ अंधेरे में इस जानवर, राजकुमार प्रज़रोव्स्की ने, जिससे तंबाकू
की गंध आ रही थी,
वो कर डाला, जिसके बारे में मासूम आन्ना को पहले कुछ मालूम नहीं था
और जो उसे घृणित लगा. पति का वासनायुक्त
प्यार आन्ना को बिल्कुल संतोष नहीं दे सका. अब प्रकट होता है क्षयरोगी
शौकिया-कलाकार,
जिसने आन्ना के पैरों पर
अपना निःस्वार्थ प्रेम न्यौछावर कर दिया. ईर्ष्यालु जानवर – पति ने, भयानक गुस्से में, असावधानीवश
अपनी पाक-साफ़,
निर्दोष बीबी को मार
डाला.
चाहे
जो हो, “क्रैज़र सनाटा” की मनोदशा और विचार ख़ुद ही अपने आप को
प्रकट करते हैं. अगर ये मनोदशा और विचार – कुछ अंशों में गैरों के भी हुए, तो भी उन्हें बरदाश्त करते हुए लेखक के मन पर कुछ न
कुछ प्रभाव तो पड़ा ही होगा.
राजकुमार
अन्द्रेइ बल्कोन्स्की “युद्ध और शांति” में मृत्यु से कुछ देर पहले अपने मित्र से
कहता है:
“आह, मेरी रूह,
पिछले कुछ समय से ज़िंदगी
मुझे बोझ लग रही थी. मैं देख रहा हूँ,
कि मैं बहुत ज़्यादा ही
समझने लगा हूँ. मगर ज्ञान के वृक्ष से अच्छाई और बुराई चखना इन्सान के लिए अच्छा
नहीं है...”
“क्रैज़र
सनाटा” में “बहुत ज़्यादा समझना” अंशतः टॉल्स्टॉय की पत्नी के साथ अंतिम मिलन की
प्रतिक्रिया भी हो सकती है.
सन्
1889 में कहानी “शैतान” लिखी गई. लेखक के जीवनकाल में वह प्रकाशित नहीं हुई थी. युवा
पत्नी के प्रति नायक की बेवफ़ाई में आत्मकथात्मक तत्वों को खोजना पूरी तरह गलत था.
विश्वास के साथ कहा जा सकता है,
कि टॉल्स्टॉय पति-पत्नी
हमेशा एक दूसरे के प्रति पूरी तरह पाक-साफ़ रहे. सितम्बर 1887 में टॉल्स्टॉय ने बिर्युकव
से, जिससे वह स्पष्टता से बात करता था, कहा : “मुझे ये महसूस करने में ख़ुशी हो रही है, कि न तो मेरी तरफ़ से, न ही
पत्नी की तरफ़ से ज़रा सी भी बेवफ़ाई नहीं थी, और
हमने ईमानदार,
पाक-साफ़ पारिवारिक
ज़िंदगी गुज़ारी”.
दूसरी
तरफ़, सन् 1901 में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने पति की गंभीर बीमारी
के दौरान अपनी बहन को लिखा: “कभी-कभी रात में उसके पास बैठती या लेटती हूँ, और इस कदर दिल चाहता है उससे कहने को, कि मेरे लिए वह कितना प्रिय है, और ये कि दुनिया में मैंने किसी से भी इतना प्यार नहीं
किया, जितना उससे करती हूँ. कि, अगर बाहरी
तौर पर – किसी जुनून की वजह से – मैं उसके सामने कुसूरवार थी, मगर अंदर से, मेरे भीतर, मज़बूती से उसके अकेले के प्रति गंभीर, दृढ़ प्यार बैठा था, और कभी
भी, उंगली की एक हरकत से भी, मैंने उसके
साथ बेवफ़ाई नहीं की. मगर कुछ भी कहना मना है, उसे परेशान
करना मना है,
और ख़ुद ही उनचालीस साल के, वाकई में,
बेहद सुखी और साफ़-सुथरे वैवाहिक
जीवना का लेखा जोखा रखना है,
मगर इस अपराध बोध से, कि फिर भी हम एक दूसरे को पूरी तरह से, अंत तक,
सुख नहीं दे सके”.
“शैतान”
के कथानक में आत्मकथात्मक सामग्री है. इसके बारे में टॉल्स्टॉय ने स्वयम् कहा था. मगर
बात हो रही थी सिर्फ शादी से पहले तक एक विवाहित किसान महिला के साथ संबंधों के बारे
में. फिर, हो सकता है, कि कहानी का दूसरा पहलू – आदतन शारीरिक निकटता की शक्ति
का – सन् 1887 में टॉल्स्टॉय के पारिवारिक अनुभवों के अनुरूप ही था और ये “क्रैज़र सनाटा”
में तीखी प्रतिक्रिया की वजह था.
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सितम्बर 1887 को टॉल्स्टॉय दम्पत्ति ने अपनी शादी की रजत-जयंती मनाई. इस सिलसिले में
यास्नाया पल्याना में बहुत सारे मित्र और रिश्तेदार आये थे.
डायरी में पच्चीस साल के अपने पारिवारिक जीवन को टॉल्स्टॉय ने इन शब्दों में सीमित कर दिया: “इससे बेहतर भी हो सकता था”.
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