शनिवार, 31 मार्च 2018

Tolstoy and His Wife - 3.5




5


ये रहे टॉल्स्टॉय की उस समय की डायरियों से लिए गए उद्धरण. वे उसकी तत्कालीन भावनाओं को सबसे अच्छी तरह प्रकट करते हैं. 

“23 अगस्त. रात बेर्स परिवार के यहाँ बिताई. बच्ची! बिल्कुल बच्ची! और उलझन बहुत बड़ी. ओह, अगर एक साफ़ और न्याय की कुर्सी पर बैठता...मुझे अपने आप से डर लगता है, कि कहीं ये प्यार न होकर सिर्फ प्यार की ख़्वाहिश हो! मैं सिर्फ उसकी कमज़ोर बातों की ओर ध्यान देना चाहता हूँ और फिर भी, वो बच्ची है! बच्ची जैसी!

26 अगस्त. बेर्स के यहाँ पैदल ही गया. शांति है, आरामदेह है. लड़कियों के ठहाके. सोन्या ठीक नहीं है, कुछ धृष्ठ लगी, मगर फिर भी मेरे साथ बात करती है. लघु उपन्यास पढ़ने के लिए दिया. कितना सशक्त सच और कितनी सादगी! अस्पष्टता उसे पीडा देती है. मैंने पूरा पढ़ा - बिना उदास हुए, ईर्ष्या या जलन के बिना, मगर “असाधारण अनाकर्षक रूप” और “निर्णयों का निरंतर परिवर्तन” -  इसने मुझे चिंतित कर दिया. मैं शांत हो गया. ये सब मेरे बारे में नहीं है...

28 अगस्त. मैं 34 साल का हो गया. बदसूरत थोबड़े, शादी के बारे में न सोच! तेरी मंज़िल कोई और है और तुझे काफ़ी कुछ मिल चुका है...

30 अगस्त. सोन्या और पोपव से ईर्ष्या नहीं करता, मुझे यकीन नहीं होता, कि मैं नहीं हूँ. टहल रहे थे, समर-हाउस, डिनर के लिए घर – आँखें, और रात!...बेवकूफ़! तेरे बारे में नहीं लिखा है, मगर फिर भी उसी तरह प्यार करता हूँ, जैसे सोनेच्का कलोशिना और आ. अबलेन्स्काया से. सिर्फ.

2 सितम्बर. बेर्स के यहाँ गया...मुसीबत – लीज़ा! सोन्या भी इतनी अच्छी...उसने प्रोफेसर पोपव और कमीज़ के बारे में बताया...कहीं ये संयोगवश तो नहीं?...

3 सितम्बर. उनके यहाँ; पहले कुछ नहीं, फिर घूमने निकल गए. “वो बेवकूफ़ है, आप तंदुरुस्त हैं” – दूरबीन, - “आइये, प्लीज़”. मुझे इत्मीनान हुआ! जा रहा था और सोच रहा था : या तो संयोगवश है, या असाधारण सूक्ष्मता से महसूस करती है, या फिर घटिया बेहद शोखी – आज एक, कल कुछ और – या संयोगवश भी, और बारीकी से भी, और शोखी से भी. मगर आम तौर से, कुछ नहीं! ख़ामोशी! मैंने कभी इतनी स्पष्टता से, ख़ुशी से और सुकून से पत्नी के साथ भविष्य की कल्पना नहीं की थी...

6 सितम्बर. मैं बूढ़ा हूँ, साथ चलने के लिए. चली जाओ या मेरे टुकडे-टुकडे कर दो...

7 सितम्बर...दुब्लित्स्की! वहाँ अपनी नाक न घुसेड जहाँ जवानी है, कविता है, ख़ूबसूरती है, प्यार है...वहाँ, भाई, कैडेट्स हैं!...

10 सितम्बर को दस बजे उठा – रातभर की परेशानी से थका हुआ. अलसायेपन से काम करता रहा और, जैसे स्कूली बच्चा इतवार की राह देखता है, उसी तरह शाम का इंतज़ार करता रहा...क्रेमलिन जा रहा हूँ. वो नहीं थी...वापस लौटी तो कठोर, गंभीर थी. और मैं फिर से निकल गया बेउम्मीद और पहले के मुकाबले और भी ज़्यादा प्यार में डूबा हुआ. उम्मीद डूब गई है. इस गांठ को काटना चाहिए, बेहद ज़रूरी है. मैं लीज़ा पर तरस खाते हुए उससे नफ़रत करने लगा हूँ. गॉड! मेरी मदद कर, मुझे ज्ञान दे! फिर वही तड़पाती हुई, निद्राहीन रात, मैं महसूस कर रहा हूँ, मैं, जो प्यार करने वालों की पीडा पर हँसता था!...जिसकी हँसी उडाओगे, तुम्हें भे वही मिलेगा. कितने प्लान बनाए थे मैंने – उससे कहने के, तान्या से कहने के और सब बेकार हो गया. मैं तहे दिल से लीज़ा से नफ़रत करने लगा हूँ. गॉड! मेरी मदद कर, मुझे ज्ञान दे! गॉड मदर, मेरी मदद कर!...

12 सितम्बर. मुझे प्यार हो गया है, यकीन ही नहीं था मुझे, कि प्यार किया जा सकता है. मैं पागल हूँ और अगर ये ऐसा ही चलता रहा, तो मैं अपने आप को गोली मार लूँगा. उनके घर पार्टी थी. वह हर लिहाज़ से ख़ूबसूरत लग रही थी. और मैं – घृणित दुब्लित्स्की. पहले ही अपने आप को संभालना चाहिए था. अब मैं रुक नहीं सकता. दुब्लित्स्की? होने दो! मगर प्यार में मैं माहिर हूँ. हाँ. कल सुबह ही उनके यहाँ जाऊँगा. कुछ पल मिले तो थे, मगर मैंने उनका फ़ायदा नहीं उठाया. मैं सकुचा गया...

13 सितम्बर. कुछ नहीं हुआ...हर रोज़ मैं सोचता हूँ, कि अब और ज़्यादा तडपना नहीं चाहिए और एक साथ ख़ुश रहना चाहिए, और हर रोज़ मैं अधिकाधिक पगला जाता हूँ. फिर उनके यहाँ से निकला पीड़ा लिए, दिल में पछतावा और सुख लिए. कल जैसे ही उठूंगा, जाऊँगा, और सब कुछ कह दूँगा. या...रात के तीन बज चुके हैं. मैंने उसे ख़त लिखा है, कल दे दूँगा, मतलब, आज, 14 को. माय गॉड, कितना डरता हूँ मैं मरने से! सुख और ऐसा – मुझे लगता है,कि असंभव है.गॉड, मेरी मदद कर!

15 सितम्बर. नहीं कहा, मगर कहा, कि कुछ कहना है. कल...”

Tolstoya and His Wife - 3.4




4


6 अगस्त को टॉल्स्टॉय यास्नाया पल्याना चला गया. ल्युबोव अलेक्सान्द्रोव्ना बेर्स तीनों लड़कियों के साथ अपने पिता से मिलने जा रही थी, उसी अलेक्सान्द्र इस्लेन्येव से – पिता से, जिसका वर्णन टॉल्स्टॉय ने “बचपन”, “किशोरावस्था” और “युवावस्था” में किया है. जुए में अपनी सारी संपत्ति हार कर इस्लेन्येव दूसरी बीबी की जागीर में रहते थे – ईवित्सी में. ये जागीर यास्नाया पल्याना से 50 मील दूर थी, और ल्येव टॉल्स्टॉय ने ल्युबोव अन्द्रेयेव्ना से वचन लिया, कि ईवित्सी जाते हुए वह उसकी बहन से मिलने आएगी.         

वे शाम को यास्नाया पल्याना पहुँचे.  ये देखने में बड़ा मज़ा आ रहा था, कहीं दिल को छू भी रहा था, कि कैसे ल्येव निकोलायेविच डिनर के इंतज़ाम के बारे में परेशान हो रहे हैं और अनभ्यस्त हाथों से मेहमान महिलाओं के लिए बिस्तर बिछाने में नौकरानी की मदद कर रहे हैं. दूसरे दिन यास्नाया पल्याना को घेरने वाले सौ साल पुराने सरकारी सुरक्षा-वन में पिकनिक का आयोजन किया गया. जंगल के बड़े मैदान में कालीन बिछाए गए. काउन्टेस टॉल्स्टाया और ल्युबोव अन्द्रेयेव्ना बेर्स समोवार का, और अपने साथ लाई हुई खाद्य सामग्री का इंतज़ाम करने में लग गईं, और ल्येव निकोलायेविच ने युवाओं को फूस के एक बहुत बड़े ढेर पर चढ़ने को कहा और उसके ऊपर एक बड़े कोरसका आयोजन किया (पिकनिक में आसपास से आए हुए मेहमान भी शामिल थे), जिसका निर्देशन बड़ी ज़िंदादिली से किया...

ईवित्सी में खूब मज़ा आया: नाच, खेल, भाग-दौड. तीसरे दिन शाम को सफ़ेद घोड़े पर सवार ल्येव निकोलायेविच टॉल्स्टॉय आश्चर्यचकित जमघट के सामने प्रकट हो गए: वीरान हो गए यास्नाया पल्याना में वह अपने मेहमानों की युवा आवाज़ों और हँसी को तरस गए थे और घोड़े पर 50 मील पार करके उन्हें देखने के लिए आ गए. वह प्रसन्न, ज़िंदादिल थे और सोफ़्या अन्नद्रेयेव्ना की ओर ख़ास ध्यान देते हुए कुछ निर्णायक ढंग से बर्ताव कर रहे थे. नौजवान लड़की पर उसकी मनोदशा का असर हुआ और वह उसकी उपस्थिति में लाल हो गई. उसकी आँखें कह रही थीं : “मैं आपसे प्यार करना चाहती हूँ, मगर डरती हूँ...”

शांत लीज़ा भी परेशान हो गई.
“तान्या,” उसने रोते हुए छोटी बहन से कहा, “सोन्या ल्येव निकोलायेविच को मुझसे छीन रही है. क्या तुम देख नहीं रही हो?...ये बनना-संवरना, ये निगाहें, दोनों का चुपचाप दूर चले जाना नज़रों में चुभ रहा है...”

आख़िरकार आधा-स्पष्टीकरण हो ही गया.

“भूत की बच्ची-तात्यान्चिक” इस दृश्य का अपनी “यादें” में इस तरह वर्णन करती है:

“शाम को, डिनर के बाद मुझसे गाने के लिए कहने लगे. मेरा मन नहीं था, मैं ड्राइंग रूम में भाग गई और छुपने के लिए कोई जगह ढूँढ़ने लगी. मैं फ़ौरन उछलकर पियानो के नीचे छुप गई. कमरा खाली था, उसमें ताश के खेल के बाद खुली हुई मेज़ पड़ी थी.

कुछ मिनट बाद सोन्या और ल्येव निकोलायेविच ड्राइंग रूम में आए. मुझे लगा, कि दोनों उत्तेजित थे. वे ताश की मेज़ पर बैठ गये.                          
“तो, आप कल जा रहे हैं?” सोन्या ने कहा, “इतनी जल्दी क्यों? कितने अफ़सोस की बात है!”
“माशेन्का अकेली है, वह जल्दी ही विदेश जाने वाली है.”
“और आप भी उसके साथ?” सोन्या ने पूछा.
“नहीं, मैं जाना चाहता था, मगर अब नहीं जा सकता.”
सोन्या ने पूछा नहीं – क्यों. वह अंदाज़ लगा रही थी. मैंने उसके चेहरे के भाव से समझ लिया, कि अब कुछ ख़ास होने वाला  है. मैं अपनी जगह से निकलना चाहती थी, मगर मुझे शरम आ रही थी, और मैं छुप गई.
“हॉल में चलिए,” सोन्या ने कहा. “हमें ढूँढ़ने लगेंगे.”
“नहीं, थोड़ा रुकिये, यहाँ  कितना अच्छा है. और उसने चॉक से मेज़ पर कुछ लिखा.
“ सोफ्या अन्द्रेयेव्ना, अगर मैं कुछ लिखूं, सिर्फ शुरू के अक्षरों से, तो क्या आप पढ़ पायेंगी?” उसने परेशान होते हुए कहा.
“पढ़ सकती हूँ,” सोन्या ने सीधे उसकी आँखों में देखते हुए निश्चयपूर्वक कहा.

तब हुई वह ख़तो-किताबत जो “आन्ना कारेनिनाइस उपन्यास से प्रसिद्ध हो गई.

ल्येव निकोलायेविच ने लिखा: “आ. ज. औ. सु. मां” वगैरह.
बहन ने किसी प्रेरणा से पढ़ा : “आपकी जवानी और सुख की मांग मुझे अपने बुढ़ापे और सुख की असंभवता की काफ़ी शिद्दत से याद दिलाती हैं”. कुछ शब्द ल्येव निकोलायेविच उसे बताता जा रहा था.
“एक बात और,” उसने कहा. “आपके परिवार में मेरे और आपकी बहन लीज़ा के बारे में गलत राय है. मुझे बचाइये, आप तान्या के साथ...”

वापस लौटते हुए बेर्स परिवार ने फिर से दो-तीन दिन यास्नाया पल्याना में बिताए और काउन्टेस मरीना निकोलायेव्ना टॉल्स्टाया के साथ, जो विदेश जा रही थी, मॉस्को चल पड़े.

तूला में अचानक उनके सामने सफ़र की पोषाक में टॉल्स्टॉय प्रकट हुआ. सबको ख़ुशी हुई ये जानकर,  कि वह...भी मॉस्को जा रहा है.     

****

मॉस्को में टॉल्स्टॉय का कठिन समय शुरू हुआ. उसने अपनी शैक्षणिक पत्रिका पर काम करने की कोशिश की, थियेटर गया, परिचितों से मिला. मगर बेर्स परिवार की ओर अधिकाधिक खिंचता रहा. पहले उसने अपने आप को काबू में रखने की कोशिश की और दो-तीन दिन में एक बार उनके घर जाता रहा. फिर हर बात को झटके से दूर हटा दिया और करीब-करीब हर रोज़ जाने लगा. उसे ऐसा लगता था, कि उसका ये बार बार आना मेज़बानों के मन में कुछ परेशानी और नाराज़गी पैदा कर रहा है. उसे अटपटापन लगता मगर फिर भी वह घर पर नहीं रुक सकता था. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना कभी उससे ख़ुशी से मिलती, कभी अफ़सोस से और भावुकता से, कभी गंभीरता से और सख़्ती से. उम्मीद उसे बेज़ार किए जा रही थी, अनिश्चितता पीडा दे रही थी. आख़िर उसने उसे अपना लघु उपन्यास पढ़ने के लिए दे दिया. मगर इस दवा का फ़ौरन वो असर नहीं हुआ, जिसकी उसे, ज़ाहिर है, उम्मीद थी. टॉल्स्टॉय देर कर रहा था, वह असमंजस में था, अपने आप को परख रहा था. उसका आत्मसम्मान इनकार की संभावना से डर रहा था. महान व्यक्ति अन्य नश्वर व्यक्तियों की ही तरह बीमार होते हैं, और प्यार करते हैं. अठारह साल की लड़की, ज़िंदादिल, समझदार और दृढ़, मगर हर बात में औसत दर्जे की, ‘जीनियसव्यक्ति को अपने हाथों में नचा रही थी. भाग्य और परिस्थितियों की इच्छा से वह उसके समूचे जटिल आध्यात्मिक जीवन की स्वामिनी बन बैठी थी. उसे ऐसा लगता था, कि अकेली उसीमें उसका सुख है, और उस समय उसका प्यार ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य बन गया.

टॉल्स्टॉय के सच्चे जीवनीकारों में से एक अविश्वासपूर्वक इस प्रश्न पर ठहरता है: इस बार महान लेखक ने अपनी अंतर्दृष्टि से काम क्यों नहीं लिया? क्यों अपने पत्रों में वह वलेरिया अर्सेनेवा से बड़ी बड़ी अपेक्षाओं की मांग करता था और सोफ्या बेर्स से उसने प्यार के सिवा कुछ भी नहीं चाहा?

क्यों?... उसने वलेरिया अर्सेन्येव्ना को शिक्षित करने की कोशिश की, ताकि अपने लिए संतोषजनक पत्नी बना सके.

सोफ्या अन्द्रेयेव्ना बेर्स से वह प्यार करता था और शिद्दत से, अपने पूरे अस्तित्व के साथ उसकी ओर खिंचा जा रहा था.

शुक्रवार, 30 मार्च 2018

Tolstoy and His Wife - 3.3




3



इन गर्मियों में पक्रोव्स्कोए की समर-कॉटेज में काफ़ी गहमा गहमी रही. घर निरंतर रिश्तेदार और परिचित नौजवानों से भरा रहता, जो मॉस्को से आते, यहाँ रुकते या आस-पास की समर-कॉटेजेस से आते. सैर-सपाटे, खेल, पहेलियाँ, छोटे-छोटे नाटक – एक के बाद एक होते ही रहते, नौजवानों की ख़ुशी का अंत ही नहीं था.

ऐसे हंगामे में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना धीरे-धीरे अपना लघु उपन्यास लिखती और शाम को चुपके से अपनी छोटी बहन को पढ़कर सुनाती. लघु उपन्यास का नाम था “नताशा”. तात्याना अन्द्रेयेव्ना ने बाद में उसका सारांश इस तरह से बताया:
लघु उपन्यास में दो नायक हैं – राजकुमार दुब्लित्स्की और स्मिर्नोव. दुब्लित्स्की – मध्यम आयु का है, अनाकर्षक व्यक्तित्व का, जोशीला, बुद्धिमान, जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बदलता रहता है. स्मिर्नोव – जवान, 23साल का, ऊँचे आदर्शों वाला, सकारात्मक, शांत चरित्र का, भोला और अपना करियर बना रहा है. लघु उपन्यास की नायिका – एलेना – जवान, ख़ूबसूरत, बड़ी-बड़ी काली आँखों वाली लड़की है. उसकी बड़ी बहन ज़िनाइदा, अनाकर्षक, ठण्डे स्वभाव की सुनहरे बालों वाली, और छोटी – पंद्रह साल की, नताशा, दुबली-पतली और चंचल लड़की थी. दुब्लित्स्की बिना किसी प्यार के ख़याल के उनके घर में आता-जाता है. स्मिर्नोव एलेना से प्यार करता है, और वह भी उसकी ओर आकर्षित है. वह उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखता है; वह सहमति देने में डगमगाती है; उसकी जवान उम्र को देखते हुए माता-पिता इस शादी के ख़िलाफ़ हैं. स्मिर्नोव नौकरी पर निकल जाता है. उसके दिल का दर्द. काफ़ी अन्य दृश्य. ज़िनाइदा के दुब्लित्स्की  के प्रति आकर्षित होने का वर्णन, नताशा की शरारतें, उसका अपने चचेरे भाई के प्रति प्यार इत्यादि. दुब्लित्स्की का एलेना के घर आना जारी रहता है. वह दुविधा में है और अपनी भावनाओं को समझने में असमर्थ है, ख़ुद ही ये स्वीकार नहीं करना चाहती, कि उससे प्यार करने लगी है. उसे अपनी बहन और स्मिर्नोव के बारे में ख़याल परेशान करते हैं. वह अपनी भावनाओं से संघर्ष करती है, मगर ये संघर्ष उसकी सामर्थ्य से परे है. दुब्लित्स्की, शायद, उसकी ओर आकर्षित था, न कि बहन की ओर, और इसी कारण, बेशक, वह उसे और भी अपनी तरफ़ खींचता था. मगर जीवन के प्रति उसका निरंतर बदलता हुआ दृष्टिकोण उसे बेज़ार कर देता है. उसकी निरीक्षक, भेदक बुद्धि लड़की को असमंजस में डाल देती है. अपने ख़यालों में वह अक्सर स्मिर्नोव से उसकी तुलना करती है, और अपने आप से कहती है : “स्मिर्नोव मुझसे सरलता से, साफ़ दिल से प्यार करता है, मुझसे किसी बात की उम्मीद नहीं रखता”. स्मिर्नोव आता है. उसके दिल की पीड़ा देखकर और साथ ही दुब्लित्स्की की तरफ़ आकर्षण महसूस करके वह मॉनेस्ट्री में जाने के बारे में सोचती है. आख़िरकार एलेना ज़िनाइदा की शादी दुब्लित्स्की से पक्की कर देती है, और बाद में स्मिर्नोव से शादी कर लेती है.            

इस बाल-कथा में सभी कुछ सीधा-सरल नहीं है. और अगर सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने इसे टॉल्स्टॉय को दिखाने के लिए लिखा था, तो कथानक व्यावहारिकता और साहस को प्रकट करता है, जो अठारह साल की लड़की के लिए आश्चर्यजनक है : कहानी में अर्ध-स्वीकृति है, और स्पष्टता के लिए चुनौती है, और प्रतिद्वंद्वी-बहन का बेझिझक चित्रण है, और ईर्ष्या का उत्तेजन है, जो दुविधा की भावना पैदा कर सकती है... 

अगस्त के आरंभ में टॉल्स्टॉय फिर से मॉस्को में प्रकट हुआ. कुमीस का उस पर बहुत अच्छा असर हुआ था : स्वास्थ्य पूरी तरह सुधर गया था. मगर वह बेहद परेशान नज़र आ रहा था. उसके सम्मान को ठेस पहुँची थी. जुलै के आरंभ में लगभग आधी रात को यास्नाया पल्याना में पुलिस वाले आए, उसकी बूढ़ी बुआ को और बहन को खूब डराया. ये, टॉल्स्टॉय के अनुसार, “डाकू थे, जो सुगंधित साबुन से गाल और हाथ धोकर आए थे” – उन्होंने कसकर तलाशी ली और टॉल्स्टॉय के सभी अंतरंग पत्र और डायरियाँ पढ़ीं. तलाशी का कारण अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ था. उन नौजवानों में, जिन्हें टॉल्स्टॉय ने स्कूल के काम की ओर आकर्षित किया था, स्टूडेण्ट्स थे, जिन्हें गड़बडी फैलाने के आरोप में विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था. टॉल्स्टॉय की गतिविधियों की शिकायतों के कारण, जो उस समय ख़ुद एक प्रशासकीय अफ़सर थे, उनकी निगरानी की जाने लगी, और गुप्तचर-पुलिस के एजेन्ट यास्नाया पल्याना की सीमा पर रहने लगे. मगर, हो सकता है, कि प्रशासन के पास कुछ नए संदेह भी थे. सन् 1861 में लन्दन में आवास के दौरान टॉल्स्टॉय “भयानक” गेर्त्सेन से बेहद घुलमिल गए थे, करीब महीना भर वे दोनों खुल्लमखुल्ला एक साथ दिखाई देते थे, जो रूसी विदेश-गुप्तचर एजेन्टों की नज़र से छूट नहीं सकता था. जब रूस में “कोलकल (घण्टा – अनु.)” के पुनर्मुद्रित लेख और घोषणाएँ प्रकट हुईं, तो पुलिस बड़ी सरगर्मी से हर तरफ़ गुप्त मुद्रणालयों को ढूंढ़ रही थी. अलग-थलग स्थित यास्नाया पल्याना ने पुलिसवालों का ध्यान आकर्षित किया.

टॉल्स्टॉय तैश में आ गए. “मैं अक्सर अपने आप से कहता हूँ,” उन्होंने अपनी दरबार वाली बुआ को लिखा, “कितना बडा सौभाग्य था, कि मैं नहीं था. अगर मैं होता, तो शायद मुझ पर किसी हत्यारे की तरह मुकदमा चल जाता,”. पुलिसवालों ने वापस लौटने का वादा किया. टॉल्स्टॉय भरी हुई रिवॉल्वरों के साथ उनकी राह देख रहे थे. वे एक पत्र लिखकर त्सार से प्रशासन की शिकायत करने में कामयाब हो गए, और अलेक्सान्द्र द्वितीय ने ऐड-डी-कैम्प के माध्यम से इस घटना पर अफ़सोस ज़ाहिर करता हुआ एक मरियल सा पत्र भेज दिया.

मगर ये सारी अप्रियताएँ उसके दिल की तीव्र होती अंतरंग परेशानियों में डूब गईं. बेर्स परिवार में संबंधों के बारे में उलझन बढ़ती जा रही थी. लीज़ा ने “शांति से और आत्मविश्वास से उस पर कब्ज़ा कर लिया था.” वह टॉल्स्टॉय को घृणित लगने लगी थी, और जब वह साथ होती थी, तो वह बड़ी मुश्किल से अपने आप पर संतुलन रखता था.

पक्रोव्स्कोए में, जहाँ ल्येव निकोलायेविच मॉस्को से (12 मील) अक्सर पैदल जाता था, एक नया चेहरा प्रकट हुआ. बेर्स परिवार की हाल ही में प्रोफेसर नील अलेक्सान्द्रोविच पोपव से पहचान हुई थी. ये 35 साल का आदमी था, गंभीर प्रकृति का, धीमी गतिविधियों वाला और भावपूर्ण भूरी आँखों वाला. वह सोफ्या अन्द्रेयेव्ना के साथ हंसी-खुशी से समय बिताता और अक्सर, औरों से बहस करते हुए भी, जवान लड़की के सुडौल जिस्म और ज़िंदादिल चेहरे से नज़र नहीं हटाता था. उसने पक्रोव्स्कोए से दो मील दूर एक समर-कॉटेज किराए पर ली थी और बेर्स परिवार के साथ समय बिताने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

गृहस्वामिनी कहती:

“सोन्या पोपव को बहुत अच्छी लगती है.”

मगर सोफ्या अन्द्रेयेव्ना को ख़ुद भी यह महसूस हो रहा था. वह सरलता से, ख़ुशी से और ज़िंदादिली से प्रोफेसर के निकट आने लगी थी. उसका इस तरह का आचरण उसे किसी भी छिछोरेपन से ज़्यादा शिद्दत से आकर्षित कर रहा था. मगर इस निकटता का टॉल्स्टॉय पर भी असर हो रहा था. उसके भीतर ईर्ष्या जाग रही थी. हो सकता है, कि इस बार भी वह अपने भीतर पैदा होती हुई भावना को संदेहों से, विश्लेषण से, तर्कों से मार डालता...मगर सोचने का समय नहीं था: ये भावना ईर्ष्या के चाबुक की मार से बढ़ रही थी. सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना पक्रोव्स्कोए मे समर-कॉटेज की सीढ़ी पर बैठकर प्रसन्नता से अपने प्रोफेसर से बातें कर रही थी और ल्येव निकोलायेविच, ये “दिखाते हुए, कि उसे कोई फ़रक नहीं पड़ता, पूरी ताकत से उससे ईर्ष्या और प्यार कर रहा था”...

क्या ये जवान लड़की का स्वाभाविक बर्ताव था या सोचा समझा प्लान था? किसे पता?

उसने यूँ ही टॉल्स्टोय से कहा, कि उसकी अनुपस्थिति में एक लघु उपन्यास लिखा है.

“लघु उपन्यास? ये बात आपके दिमाग़ में आई कैसे? और विषय क्या है?”

“हमारी ज़िंदगी का वर्णन कर रही हूँ.”

“पढ़ने के लिए किसे देती हैं?”

“मैं तान्या को पढ़कर सुनाती हूँ.”

“मुझे देंगी?”

“नहीं, नहीं दे सकती.”

वह, बेशक, ज़िद करता रहा...

बुधवार, 28 मार्च 2018

Tolstoy and His Wife - 3.2



2.


अगले कुछ साल ल्येव निकोलायेविच डॉक्टर बेर्स के यहाँ कभी-कभार ही गया.

मगर सन् 1861 की गर्मियों में वह अपनी दूसरी विदेश यात्रा से मॉस्को लौटा. काम की अधिकता होने पर भी वह कभी-कभी गाँव से मॉस्को भाग जाता था. एक बार किसी कारण से बेर्स परिवार में जाने पर, उनके यहाँ हुए परिवर्तन को देखकर वह चौंक गया: “प्यारी लड़कियाँ” ख़ूबसूरत युवतियाँ बन गई थीं. बड़ी दोनों लड़कियों ने तो अपनी परीक्षाएँ पास कर ली थीं, उन्होंने लम्बी ड्रेस पहनी थी, बालों का स्टाइल बदल दिया था, बाहर जाने लगी थीं. ल्येव निकोलायेविच को उनमें दिलचस्पी महसूस हुई और वह अक्सर उनके यहाँ आने लगा. वह दिन में, शाम को, लंच पर ...कभी भी आ जाता था और जल्दी ही अपना आदमीबन गया. गंभीर स्वभाव की लीज़ा से वह साहित्य के बारे में चर्चा करता, उसे अपने स्कूल के बच्चों के लिए निबंध के विषय देता. (“ल्युथेर के बारे में”, “मोहम्मद के बारे में”), जिन्हें बाद में उसने अपनी पत्रिका के संलग्नक में प्रकाशित किया. भावुक सोन्या के साथ टॉल्स्टॉय टीम बनाकर खेलता था, उसके साथ शतरंज की बाज़ी खेलता, ज़िंदादिली से अपने पसन्दीदा छात्रों के बारे में बताता. “भूत की बच्ची – तात्यान्चिक” के साथ वह स्कूल के बच्चों जैसा पेश आता, उसे अपनी पीठ पर बिठा लेता और कमरों में घुमाता; सवाल देता, कविताएँ याद करने को कहता. कभी-कभी वह सबको (घर वालों को और मेहमानों को) पियानो के इर्द गिर्द इकट्ठा करता, उन्हें रोमान्सऔर प्रार्थना गाना सिखाता... उसने ख़ास तौर से नौजवान तान्या की (उसका पंद्रहवाँ साल चल रहा था) आवाज़ चुनी थी, वह अक्सर उसके साथ गाता, उसके लिए नोट्स लाता और उसे “मैडम विआर्दो” कहता – या, उसकी सदाबहार ख़ुशमिजाज़ी को देखते हुए – “उत्सवमूर्ति” कहता.

कभी कभी ल्येव निकोलायेविच छोटे-छोटे ऑपेरा के विषयों में सुधार करता और नौजवानों को शब्द चुनने को कहता (“जितना ज़्यादा क्लिष्ट – उतना अच्छा”) और परिचित धुनों पर गाने के लिए कहता.

एक बार वह अपने साथ तुर्गेनेव का लघु उपन्यास “पहला प्यार” लाया और, उसे बहुत बढ़िया तरीके से ज़ोर से पढ़ने के बाद, लड़कियों को नसीहत देते हुए बोला : “सोलह साल के, नौजवान पुत्र का प्यार ही सच्चा प्यार था, जिसे इन्सान ज़िंदगी में सिर्फ एक बार महसूस करता है, और पिता का प्यार – ओछा और घृणित है”.

वह लम्बी सैरों का आयोजन करता, घण्टों तक मॉस्को के दर्शनीय स्थल दिखाता और नौजवानों को पूरी तरह थका देता.

कभी कभी वह नर्सरी या किचन में चला जाता, नौकरों से बतियाता और जल्दी ही सबका प्यारा बन गया.

टॉल्स्टॉय के इस अक्सर आने से लोग कुछ अंदाज़ लगाने लगे. कहने लगे, कि वह बड़ी बहन – लीज़ा से शादी करेगा. ये भी कहते थे, कि जैसे उसने अपनी बहन से कह दिया है : “अगर शादी करूँगा, तो सिर्फ बेर्स की ही किसी लड़की से.”

“ठीक है, तो लीज़ा से शादी कर ले,” काउन्टेस ने जवाब दिया, “सुंदर बीबी होगी : विश्वसनीय, गंभीर, सुसंस्कृत.”

ये बातें बेर्स परिवार तक पहुँचीं. बेशक, माता-पिता इससे बेहतर किसी और की कल्पना ही नहीं कर सकते थे. उनकी बेटी – बिना दहेज के – काउन्टेस, अमीर ज़मीन्दार की बीबी, मशहूर लेखक की पत्नी बन जाएगी. ख़ास तौर से इस विवाह की ख़्वाहिशमंद थी माँ, जिसकी ल्येव निकोलायेविच की बहन से बहुत दोस्ती थी.    

बकवास और अफ़वाहों ने मानो ख़ामोश तबियत और ठण्डी लीज़ा को नींद से जगा दिया. वह सपनों में खो गई, अपने बाह्य रूप पर ज़्यादा ध्यान देने लगी, और धीरे-धीरे आसपास के लोगों ने उसे पक्का भरोसा दिला दिया, कि “द काउन्ट” (बेर्स के परिवार में टॉल्स्टॉय को इसी नाम से पुकारते थे) – पागलपन की हद तक उसके प्यार में गिरफ़्तार है.

मगर ल्येव निकोलायेविच को अपने आसपास बन रहे माहौल को महसूस करके, जो उसे विशिष्ठ कदम उठाने पर मजबूर कर रहा था, घुटन महसूस होने लगी और उसने सन् 1861 की डायरी में (6 मई को) लिखा: “बेर्स परिवार में दिन तो हंसी-ख़ुशी बीत जाता है, मगर लीज़ा से शादी नहीं कर सकता”, और बाद में (22 सितम्बर को) लिखा: “लीज़ा बेर्स मुझे ललचाती है; मगर ये नहीं होगा. सिर्फ व्यावहारिकता ही काफ़ी नहीं है, और भावनाएँ तो हैं ही नहीं”.

छोटी बहनें उसे ज़्यादा आकर्षित करती थीं – ज़िंदादिली और जवानी के जोश से सराबोर. मगर “तात्यान्चिक” अभी बच्ची ही थी. मगर सोफ्या अन्द्रेयेव्ना उसे सकारात्मक रूप से अपनी ओर खींच रही थी. वह दिन पर दिन अधिकाधिक मोहक होती जा रही थी. उसका प्रशंसक पलिवानव, स्वयम् को वह जिसकी “मंगेतर” समझती थी, अफ़सर बन चुका था और पीटरबुर्ग की फ़ौजी अकादमी में कार्यरत था. वह उसकी याद में खोई रहती, रोती थी, उत्सुकता से चिट्ठियाँ पढ़ती, जो वह उसकी छोटी बहन को भेजा करता था...मगर कुछ समय से उसका स्त्रीसुलभ मन उससे कह रहा था, कि “द काउन्ट” की ख़ास उसीमें दिलचस्पी बढ़ती जा रही है. भविष्य की जगमगाती संभावनाओं के सामने नौजवान अफ़सरवा की याद मद्धिम होकर बुझ गई. ये सही है, कि वह उसे बचपन से जानता था और जैसी थी उसी रूप में पसन्द करता था. मगर काउन्ट टॉल्स्टॉय को जीतना अभी बाकी था...फिर उसकी पसन्द की ऊँचाई पर जमे रहना कितना मुश्किल है!...ऊपर से एक अनजानापन, अनिश्चितता उसे सता रही थी : अगर, अचानक वह ग़लत हो, और वो सामान्य विश्वास, कि टॉल्स्टॉय उसकी बहन से विवाह करना चाहता है, सही साबित हो?...        

उसे पीडा हो रही थी. मगर स्त्रीसुलभ अहंकार और गर्वीले सपनों का पलडा भारी रहा. सावधानीपूर्वक काउन्ट को अपनी ओर आकर्षित करते हुए, कभी भावुक खोयेपन से, कभी शरारत से, स्पष्टता से और ज़िंदादिली से, वह ख़ुद ही इस भावना के अधीन हो गई और लगभग ये स्वीकार करने के लिए तैयार थी, कि उसे पलिवानव से नहीं, बल्कि टॉल्स्टॉय से प्यार है.

फरवरी 1862 में ल्येव निकोलायेविच महसूस कर रहा था, कि उसे “करीब-करीब प्यार हो गया है”. उस समय बेर्स परिवार के साथ उसके संबंध कितने घनिष्ठ थे, ये इस घटना से प्रकट होता है. पिछले कुछ समय से टॉल्स्टॉय ने अपनी जुआ खेलने की आदत पर नियंत्रण रखा था, मगर कभी-कभी बुझी हुई आग पहले ही जैसी शिद्दत से भड़क उठती थी. एक बार वह क्लब में एक मुलाकाती अफ़सर से मिला और चाइनीज़ बिलियार्ड में उससे 1000 रूबल्स हार गया. पैसा चौबीस घण्टे के भीतर चुकाना था. पैसे थे नहीं. टॉल्स्टॉय “रूसी मैसेंजर” के प्रकाशक कत्कोव के पास भागा और उसे अपना अधूरा लघु उपन्यास “कज़ाकी” 1000 रूबल्स में बेच दिया. इस बात का उसने बेर्स परिवार में ज़िक्र किया. सभी को महसूस हुआ, कि उसने बड़े सस्ते में उपन्यास बेचा है. तब ल्येव निकोलायेविच को अपनी हार के बारे में बताना ही पड़ा. युवा लड़कियाँ अपने कमरे में भाग गईं और “काउन्ट” के आचरण के बारे में फूटफूट कर रोने लगीं.

कुछ महीने और बीते. ल्येव निकोलायेविच फिर से क्रेमलिन में प्रकट हुआ. वह उदास था, झुक गया था और बेतहाशा खांस रहा था. उसे कुमीस के इलाज के लिए भेजा गया. मॉस्को से गुज़रते हुए वह बेर्स परिवार में दो किसान-बालकों को लाया था, जिन्हें वह अपने साथ समारा की स्तेपी में ले जा रहा था.

शाम को, जब वह चला गया, सोफ्या अन्द्रेयेव्ना बेहद उदास थी. हमेशा से ज़्यादा देर वह प्रार्थना करती रही.

“सोन्या, क्या तुम काउन्ट से प्यार करती हो?” छोटी बहन ने हौले से उससे पूछा.
“पता नहीं,” लड़की ने फुसफुसाहट से कहा, उसे इस सवाल से अचरज नहीं हुआ था.”आह, तान्या,” कुछ देर रुककर उसने आगे कहा : “उसके दो भाई टी.बी.से मर गए हैं...”

उस रात वह बड़ी देर तक नहीं सोई, बिना आवाज़ किए कुछ फुसफुसाती रही और धीरे-धीरे रोती रही, इस कोशिश में कि बहनों को न जगा दे.

Tolstoy and His Wife - 10.4

4 28 अक्टूबर को रात में दो बजे के बाद टॉल्स्टॉय की आँख खुल गई. पिछली रातों की ही तरह दरवाज़े खोलने की और सावधान कदमों की आहट सुनाई...