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6 अगस्त को टॉल्स्टॉय
यास्नाया पल्याना चला गया. ल्युबोव अलेक्सान्द्रोव्ना बेर्स तीनों लड़कियों के साथ
अपने पिता से मिलने जा रही थी, उसी अलेक्सान्द्र
इस्लेन्येव से – पिता से, जिसका वर्णन टॉल्स्टॉय ने “बचपन”,
“किशोरावस्था” और “युवावस्था” में किया है. जुए में अपनी सारी
संपत्ति हार कर इस्लेन्येव दूसरी बीबी की जागीर में रहते थे – ईवित्सी में. ये
जागीर यास्नाया पल्याना से 50 मील दूर थी, और ल्येव टॉल्स्टॉय
ने ल्युबोव अन्द्रेयेव्ना से वचन लिया, कि ईवित्सी जाते हुए
वह उसकी बहन से मिलने आएगी.
वे
शाम को यास्नाया पल्याना पहुँचे. ये देखने में बड़ा मज़ा आ रहा था, कहीं दिल को छू भी रहा था, कि
कैसे ल्येव निकोलायेविच डिनर के इंतज़ाम के बारे में परेशान हो रहे हैं और अनभ्यस्त
हाथों से मेहमान महिलाओं के लिए बिस्तर बिछाने में नौकरानी की मदद कर रहे हैं.
दूसरे दिन यास्नाया पल्याना को घेरने वाले सौ साल पुराने सरकारी सुरक्षा-वन में
पिकनिक का आयोजन किया गया. जंगल के बड़े मैदान में कालीन बिछाए गए. काउन्टेस टॉल्स्टाया
और ल्युबोव अन्द्रेयेव्ना बेर्स समोवार का, और
अपने साथ लाई हुई खाद्य सामग्री का इंतज़ाम करने में लग गईं, और ल्येव निकोलायेविच ने युवाओं को फूस के एक बहुत बड़े
ढेर पर चढ़ने को कहा और उसके ऊपर एक बड़े ‘कोरस’ का आयोजन किया (पिकनिक में आसपास से आए हुए मेहमान भी
शामिल थे), जिसका निर्देशन बड़ी ज़िंदादिली से किया...
ईवित्सी
में खूब मज़ा आया: नाच,
खेल, भाग-दौड. तीसरे दिन शाम को सफ़ेद घोड़े पर सवार ल्येव
निकोलायेविच टॉल्स्टॉय आश्चर्यचकित जमघट के सामने प्रकट हो गए: वीरान हो गए
यास्नाया पल्याना में वह अपने मेहमानों की युवा आवाज़ों और हँसी को तरस गए थे और
घोड़े पर 50 मील पार करके उन्हें देखने के लिए आ गए. वह प्रसन्न, ज़िंदादिल थे और सोफ़्या अन्नद्रेयेव्ना की ओर ख़ास ध्यान
देते हुए कुछ निर्णायक ढंग से बर्ताव कर रहे थे. नौजवान लड़की पर उसकी मनोदशा का
असर हुआ और वह उसकी उपस्थिति में लाल हो गई. उसकी आँखें कह रही थीं : “मैं आपसे
प्यार करना चाहती हूँ,
मगर डरती हूँ...”
शांत
लीज़ा भी परेशान हो गई.
“तान्या,” उसने रोते हुए छोटी बहन से कहा, “सोन्या ल्येव निकोलायेविच को मुझसे छीन रही है. क्या
तुम देख नहीं रही हो?...ये बनना-संवरना, ये
निगाहें, दोनों का चुपचाप दूर चले जाना नज़रों में चुभ रहा
है...”
आख़िरकार
आधा-स्पष्टीकरण हो ही गया.
“भूत
की बच्ची-तात्यान्चिक” इस दृश्य का अपनी “यादें” में इस तरह वर्णन करती है:
“शाम
को, डिनर के बाद मुझसे गाने के लिए कहने लगे. मेरा मन नहीं
था, मैं ड्राइंग रूम में भाग गई और छुपने के लिए कोई जगह
ढूँढ़ने लगी. मैं फ़ौरन उछलकर पियानो के नीचे छुप गई. कमरा खाली था, उसमें ताश के खेल के बाद खुली हुई मेज़ पड़ी थी.
कुछ
मिनट बाद सोन्या और ल्येव निकोलायेविच ड्राइंग रूम में आए. मुझे लगा, कि दोनों उत्तेजित थे. वे ताश की मेज़ पर बैठ गये.
“तो, आप कल जा रहे हैं?” सोन्या
ने कहा, “इतनी जल्दी क्यों? कितने
अफ़सोस की बात है!”
“माशेन्का
अकेली है, वह जल्दी ही विदेश जाने वाली है.”
“और
आप भी उसके साथ?”
सोन्या ने पूछा.
“नहीं, मैं जाना चाहता था, मगर अब
नहीं जा सकता.”
सोन्या ने पूछा नहीं – क्यों. वह अंदाज़ लगा रही थी. मैंने उसके चेहरे के भाव
से समझ लिया, कि अब कुछ ख़ास होने वाला है. मैं अपनी जगह से निकलना चाहती थी, मगर मुझे शरम आ
रही थी, और मैं छुप गई.
“हॉल
में चलिए,” सोन्या ने कहा. “हमें ढूँढ़ने लगेंगे.”
“नहीं, थोड़ा रुकिये, यहाँ कितना अच्छा है. और उसने चॉक से मेज़ पर कुछ
लिखा.
“ सोफ्या अन्द्रेयेव्ना, अगर मैं कुछ लिखूं, सिर्फ शुरू के अक्षरों से, तो क्या आप पढ़ पायेंगी?”
उसने परेशान होते हुए कहा.
“पढ़ सकती हूँ,” सोन्या ने सीधे उसकी आँखों में देखते हुए निश्चयपूर्वक
कहा.
तब हुई वह ख़तो-किताबत जो “आन्ना कारेनिना” इस उपन्यास से प्रसिद्ध हो गई.
ल्येव निकोलायेविच ने लिखा: “आ. ज. औ. सु. मां” वगैरह.
बहन ने किसी प्रेरणा से पढ़ा : “आपकी जवानी और सुख की मांग मुझे अपने बुढ़ापे
और सुख की असंभवता की काफ़ी शिद्दत से याद दिलाती हैं”. कुछ शब्द ल्येव निकोलायेविच
उसे बताता जा रहा था.
“एक बात और,” उसने कहा. “आपके परिवार में मेरे और आपकी बहन लीज़ा के
बारे में गलत राय है. मुझे बचाइये, आप तान्या के साथ...”
वापस लौटते हुए बेर्स परिवार ने फिर से दो-तीन दिन यास्नाया पल्याना में
बिताए और काउन्टेस मरीना निकोलायेव्ना टॉल्स्टाया के साथ, जो विदेश जा रही
थी, मॉस्को चल पड़े.
तूला में अचानक उनके सामने सफ़र की पोषाक में टॉल्स्टॉय प्रकट हुआ. सबको ख़ुशी
हुई ये जानकर, कि वह...भी मॉस्को जा रहा है.
****
मॉस्को में टॉल्स्टॉय का कठिन समय शुरू हुआ. उसने अपनी शैक्षणिक पत्रिका पर
काम करने की कोशिश की, थियेटर गया, परिचितों से मिला. मगर बेर्स परिवार की ओर अधिकाधिक
खिंचता रहा. पहले उसने अपने आप को काबू में रखने की कोशिश की और दो-तीन दिन में एक
बार उनके घर जाता रहा. फिर हर बात को झटके से दूर हटा दिया और करीब-करीब हर रोज़
जाने लगा. उसे ऐसा लगता था, कि उसका ये बार बार आना मेज़बानों के मन में कुछ
परेशानी और नाराज़गी पैदा कर रहा है. उसे अटपटापन लगता मगर फिर भी वह घर पर नहीं
रुक सकता था. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना कभी उससे ख़ुशी से मिलती, कभी अफ़सोस से और
भावुकता से, कभी गंभीरता से और सख़्ती से. उम्मीद उसे बेज़ार किए जा रही थी, अनिश्चितता पीडा
दे रही थी. आख़िर उसने उसे अपना लघु उपन्यास पढ़ने के लिए दे दिया. मगर इस दवा का
फ़ौरन वो असर नहीं हुआ, जिसकी उसे, ज़ाहिर है, उम्मीद थी. टॉल्स्टॉय देर कर रहा था, वह असमंजस में था, अपने आप को परख
रहा था. उसका आत्मसम्मान इनकार की संभावना से डर रहा था. महान व्यक्ति अन्य नश्वर व्यक्तियों की ही तरह बीमार होते हैं, और प्यार करते हैं.
अठारह साल की लड़की, ज़िंदादिल, समझदार और दृढ़, मगर हर बात में औसत दर्जे की, ‘जीनियस’ व्यक्ति को अपने हाथों
में नचा रही थी. भाग्य और परिस्थितियों की इच्छा से वह उसके समूचे जटिल आध्यात्मिक
जीवन की स्वामिनी बन बैठी थी. उसे ऐसा लगता था, कि अकेली उसीमें उसका सुख है, और उस समय उसका प्यार
ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य बन गया.
टॉल्स्टॉय के सच्चे जीवनीकारों में से एक अविश्वासपूर्वक इस प्रश्न पर ठहरता
है: इस बार महान लेखक ने अपनी अंतर्दृष्टि से काम क्यों नहीं लिया? क्यों अपने पत्रों
में वह वलेरिया अर्सेनेवा से बड़ी बड़ी अपेक्षाओं की मांग करता था और सोफ्या बेर्स से
उसने प्यार के सिवा कुछ भी नहीं चाहा?
क्यों?... उसने वलेरिया अर्सेन्येव्ना को शिक्षित करने की कोशिश की, ताकि अपने लिए संतोषजनक
पत्नी बना सके.
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना बेर्स से वह प्यार करता था और शिद्दत से, अपने पूरे अस्तित्व
के साथ उसकी ओर खिंचा जा रहा था.
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