गुरुवार, 8 मार्च 2018

Tolstoy and His Wife - 1.2



2.


सन् 1855 के नवम्बर में पीटरबुर्ग में एक नौजवान अफ़सर प्रकट हुआ, जिसने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया. वह सीधे सेवस्तोपल से मिलिट्री द्रुतवाहक से आया था और किले की अंतिम बमबारी की रिपोर्ट लाया था. नौजवान को सुशिक्षित समाज के सर्वाधिक विविध तबकों में असाधारण सफ़लता प्राप्त हुई. “इस दुनिया के प्रभावशाली लोग,” बाद में उसने अपने बारे में लिखा, “सभी मुझसे जान-पहचान करना चाहते थे, मुझसे हाथ मिला रहे थे, लंच की दावत दे रहे थे, ज़ोर देकर अपने यहाँ आमंत्रित कर रहे थे...”

ये सफ़लता सैनिक उपलब्धियों के कारण नहीं थी: अफ़सर काफ़ी निचली रैंक का था और, अपनी बहादुरी के बावजूद, उसे कोई सैनिक उपलब्धि प्राप्त करने का मौका ही नहीं मिला. मगर पिछले तीन सालों से उसका नाम तत्कालीन बेहतरीन पत्रिकाओं में छाया रहा था. चौबीस साल के इस नौजवान ने, कॉकेशस के बीहडों में आर्टिलरी कैडेट की नौकरी करते हुए, ‘बचपननामक कहानी लिखी थी, जिसे उसने मॉस्को में आरंभ किया था. ये कहानी, जिस पर सभी के लिए अपरिचित हस्ताक्षर थे, कवि नेक्रासोव की अत्यंत लोकप्रिय पत्रिका सव्रेमेन्निक’ (समसामयिकअनु.) के सन् 1852 के सितम्बर अंक में छपी थी. पात्रों के लचीलेपन, सादगी, गर्माहट, ईमानदारी और रूहानी ज़िंदगी में झाँकने की असाधारण अलौकिक दृष्टी ने पाठकों का मन मोह लिया. सन् 1853 – 1855 के दौरान इसी लेखक की कहानियाँ: चढ़ाई”, “किशोरावस्था”, “निशाननवीस की डायरी”, “जंगल की कटाई”, “सेवस्तोपल दिसम्बर में”, “सेवस्तोपल मई में” प्रकाशित हुईं. अंतिम दो रचनाओं ने काफ़ी प्रभावित किया था. उस समय सभी का ध्यान सेवस्तोपल पर केंद्रित था. और, त्सार के परिवार से लेकर सामान्य आदमी तक समूचा बुद्धिजीवी रूस रो पड़ा था सेवस्तोपल की कहानियाँ पढ़कर, जिनमें रूसी सैनिक का ऐसी सादगी और सच्चाई से वर्णन किया गया था, जो अब तक साहित्य में देखी नहीं गई थी. जनता रूसी साहित्य के आकाश में उभरते हुए नये सितारे का नाम जान चुकी थी. और काउण्ट ल्येव टॉल्स्टॉय की प्रसिद्धी अविश्वसनीय तेज़ी से बढ़ने लगी. साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश करते ही उनका कोई प्रतिद्वंद्वी न बचा. प्रसिद्ध उपन्यासकार और नाटककार पीसेम्स्की ने टॉल्स्टॉय की कहानियाँ पढ़ते हुए उदास होकर कहा था: “ये अफ़सर का बच्चा हम सबको बेहाल कर देगा, कलम छोड़ने पर मजबूर कर देगा...” सव्रेमेन्निकके सूखे और संयत सम्पादक (कवि नेक्रासोव) ने सितम्बर 1855 में टॉल्स्टॉय को लिखा था: “मैं अब ऐसे किसी लेखक को नहीं जानता, जिसने स्वयम् से इतना प्यार करने और गहरी सहानुभूति का अनुभव करने पर मजबूर किया हो, सिवाय उसके जिसे मैं लिख रहा हूँ...” तुर्गेनेव ने अनजान लेखक की कहानियाँ अपने मित्रों को बडे जोश से पढ़कर सुनाईं...

टॉल्स्टॉय सफ़र से सीधे तुर्गेनेव के ही पास आये और उनके क्वार्टर में रुके थे. दोनों ईमानदारी से घनिष्ठता बढ़ाना चाहते थे. मगर – “उनके स्वभाव काफ़ी भिन्न थे.”

उनके स्वभावों में सचमुच में समानता कम ही थी. तुर्गेनेव दस साल बड़े थे और जवानी के तूफ़ानों को पर्याप्त मात्रा में झेल चुके थे. नर्म स्वभाव के, जल्दी प्रभावित होने वाले (ख़ासकर महिलाओं से), कुछ कटु बोलने वाले, बहुत पढ़े-लिखे, पश्चिम के जाने-माने वैज्ञानिकों और उदारवादी मतों के सामने झुकने वाले, - तुर्गेनेव राजनीतिक संस्थाओं के शैक्षणिक महत्व में विश्वास करते थे और योजनाबद्ध सुधारों के प्रति सहानुभूति रखते थे. उन्हें लोकप्रियता पसंद थी, नौजवानों के बीच सफ़लता चाहते थे और साहित्य तथा विज्ञान की नवीनतम प्रवृत्तियों की जानकारी रखने की कोशिश करते थे. मानवीय अस्तित्व के “शापित प्रश्न” उनके दिल को निरंतर पीड़ा नहीं पहुँचाते थे. उन्हें विश्वास था, कि “काम कर रहे हैं”.  सव्रेमेन्निकसे जुड़े हुए उदारवादी साहित्यिकों के गुट के लिए समाज सेवा, मुख्यतः इस बात में निहित थी, कि रूस में प्रचलित प्रथाओं को सोच समझ कर नकारने, और यूरोप की स्वतंत्र राजनीतिक संस्थाओं को मान्यता देने की दिशा में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करें.                                 
सव्रेमेन्निकके साहित्य-साम्राज्य में सेवस्तोपल के तोपखाने की आग में सराबोर, शोले जैसा टॉल्स्टॉय सीने मे अनगिनत सवाल” दबाए, जीवन के अर्थ को समझने की ललक लिए, तूफ़ान की तरह घुस गया.
राजनीति का उस पर कोई वश नहीं था. तत्कालीन रूस के सामाजिक चक्र में वह पूरी तरह अपनी आंतरिक, असाधारण रूप से जटिल जीवन में व्यस्त था. कॉकेशस में, तुर्की में सेवस्तोपल में वह तीव्रता से आत्म निरीक्षण कर रहा था, लालच से युद्ध और मृत्यु के प्रश्नों पर विचार कर रहा था, जो, स्फिन्क्स की पहेली की तरह उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे. वह न सिर्फ युद्ध से संबंधित, बल्कि हर तरह के ख़तरे की ओर आकर्षित होता, और अक्सर, ताश की मेज़ पर, आकस्मिक उत्तेजना के वश होकर मृत्यु की कगार पर खड़ा दिखाई देता. औरतों के साथ संबंधों में भी वह ज़ोखिम उठाता, जब हवस से हो रहा संघर्ष भावनात्मक और शक्तिशाली प्रकृति के अतिरेक से टूट जाता. उसे प्रसिद्धी की प्यास थी. मगर वह कभी भी, तुर्गेनेव की तरह, जनता की पसंद के अनुरूप अपने आप को न ढालता. शीघ्र और अनियंत्रित ढंग से वह अपनी राह चलता रहा, और भीड़ को अपनी मौलिकता से वश में करता रहा. हर चीज़ जो सर्वमान्य थी, चलन में थी, ‘महामारीजैसी थी – उसके लिए घृणास्पद थी. वह ख़ुद, अपनी बुद्धि से अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहता था और उसका उद्देश्य था कि मानवता उसकी सनकी प्रतिभा के मार्ग पर उसका अनुसरण करे...            
चौड़ी नाक और मोटे-मोटे  होठों वाला टॉल्स्टॉय का कुरूप चेहरा हल्की-भूरी, गहरी धंसी हुई, दयालु, भावपूर्ण, चमकदार आँखों से दमकता था. असल में वो दयालु और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे. सीधे-सादे लोगों से वो सरलता से, अत्यंत नम्रता से और इतनी हँसी-ख़ुशी से पेश आते थे, कि उनकी उपस्थिति सबमें ज़िंदादिली भर देती थी. कॉम्रेड-ऑफ़िसर्स के मन में उनकी छवि हमेशा ख़ुश रहने वाले, मज़ाक पसंद, बढ़िया घुडसवार और शक्तिशाली व्यक्ति की ही बनी रही. बच्चों से तो वो दो ही लब्ज़ों में हिलमिल जाते थे, बिना कोई कोशिश किए उनका दिल बहलाते और उन्हें अपना बना लेते. उनकी रिश्तेदार, जो सम्राट के दरबार में थी, उन अंतहीन प्रहसनों के बारे में बताती हैं, जो टॉल्स्टॉय किया करते थे, जिनसे उसकी नपी तुली दरबारी ज़िंदगी में अव्यवस्था और परेशानी हो जाती थी.
मगर उनकी एक तत्कालीन महिला की मासूम टिप्पणी के अनुसार टॉल्स्टॉय के भीतर जैसे कई व्यक्तित्व थे और, वो अक्सर इतना बदल जाते थे, कि पहचानना मुश्किल हो जाता था.
“सव्रेमेन्निक” के साहित्यकारों के बीच उन्होंने शीघ्र ही लडाकू का रूप धारण कर लिया. यहाँ कोई भी चीज़ उनकी पसंद की नहीं थी: निष्ठाहीनता, आधुनिक, लोकतांत्रिक रुझानों के पीछे भागना, पश्चिमी विद्वानों की प्रशंसा करना.

पीटरबुर्ग में टॉल्स्टॉय का जीवन उच्छृंखल, तूफ़ानी था और न सिर्फ वो अपने कारनामे छुपाते नहीं थे, बल्कि शेख़ी से उनका बखान भी करते थे. मगर साथ ही उनके हृदय में आत्मनिरीक्षण की, पश्चात्ताप की, स्वयँ को परिपूर्ण बनाने की, नैतिकता, धर्म और विशुद्ध कला के क्षेत्रों में सत्य की खोज की एक जटिल प्रक्रिया चलती रहती थी. इस प्रकार के नाज़ुक प्रश्नों के साथ आधुनिक साहित्यकारों के बीच गुज़ारा असंभव था. उन्हें घनिष्ठ, व्यक्तिगत निकटता की, दोस्ती की चाह थी. मगर तुर्गेनेव और अन्य लेखक उनकी रचनाओं से प्रसन्न होते हुए भी केवल सामान्य, औपचारिक सामाजिक रिश्तों पर सिमट जाते थे. टॉल्स्टॉय के भावावेग, हर सर्वमान्य चीज़ से उनका संघर्ष, उनके विरोधाभास सतर्क रहने पर मजबूर करते थे. हमेशा आकस्मिक और अत्यंत विनाशकारी विस्फोटों की आशंका बनी रहती थी.                              

“सव्रेमेन्निक” के आरंभिक दोस्ताना-डिनर्स में से एक में एक छोटा सा लफ़ड़ा हो गया. टॉल्स्टॉय को आगाह कर दिया गया था, कि इस  मेहफ़िल में जॉर्ज सांद का बहुत सम्मान किया जाता है. मेज़बान (सव्रेमेन्निक  के संपादक की पत्नी) “दिल के अधिकारऔर आज़ाद प्यारके सपने देखती थी. डिनर के दौरान जॉर्ज सांद के नवीनतम उपन्यासों की बात हो रही थी. टॉल्स्टॉय अपने आप को रोक नहीं पाए और खुल्लम खुल्ला बोले कि ऐसी औरतें, जिनका चित्रण जॉर्ज सांद करती है, अगर हैं तो उन्हें शर्मनाक गाड़ी से बांधकर सड़कों पर उनका जुलूस निकालना चाहिए...

एक बार शाम को एक सुप्रसिद्ध मूर्तिकार के परिवार में मशहूर उत्प्रवासी गेर्त्सेन के फ़ैशनेबल, मगर प्रतिबंधित लेख पढे जा रहे थे. बाद में टॉल्स्टॉय ने इस लेखक की रचनाओं की काफ़ी प्रशंसा की. मगर सन् 1856 में ये बात नहीं थी. “काउण्ट टॉल्स्टॉय,” उनके एक समकालिक कहते हैं, “पठन के दौरान ड्राइंग रूम में आए. पाठक की कुर्सी के पीछे ख़ामोश खड़े होकर और पठन के समाप्त होने का इंतज़ार करके, पहले नर्मी और संयम से, और फिर तैश में और निडरता से गेर्त्सेन पर और उसकी रचनाओं के मोह पर टूट पड़े.” वे इतनी ईमानदारी से और प्रमाणों सहित बोल रहे थे, कि इस परिवार ने हमेशा के लिए प्रतिबंधित विदेशी पुस्तिकाओं को पढ़ना छोड़ दिया.           

शेक्सपियर के ख़िलाफ़ टॉल्स्टॉय के विलाप तो उन दिनों अंग्रेज़ी प्रतिभा के आगे नतमस्तक होने वाले पीटरबुर्ग के साहित्यिक क्षेत्र में चिड़चिड़ाहट उत्पन्न कर देते थे.

मगर ये तो सिर्फ उदाहरण हैं. टॉल्स्टॉय जल्दी ही खुल्लम खुल्ला “सभी सर्वमान्य निर्णयों के क्षेत्र” के विरोध की भूमिका पर उतर आए.   

चाहे कोई भी विचार प्रकट किया जा रहा हो, और वार्तालापकर्ता उन्हें जितना आधिकारिक प्रतीत होता, उतनी ही ज़िद से उन्हें उसे उसका विरोध करने और उसकी बात काटने की सनक सवार होती. ये देखकर कि वो कितने ग़ौर से सुन रहे हैं, कैसे वार्तालापकर्ता को अपनी भूरी- गहरी धंसी हुई आँखों से एकटक देख रहे हैं, और उनके होंठ कैसे व्यंग्य से भिंच रहे हैं, अनुमान लगाया जा सकता था, कि उन्होंने पहले से ही सीधा नहीं, बल्कि ऐसा जवाब सोच रखा है, जो, बोलने वाले को परेशानी में डाल दे, अपनी अनपेक्षितता से उसे धराशायी कर दे.

तुर्गेनेव से अनबन बढ़ती गई. टॉल्स्टॉय उनके घर से निकलकर अपने फ्लैट में चले गए. मगर इसके बाद भी मुलाकातें होने पर ठेठ रूसी कटु बहस छिड़ ही जाती थी, जो कभी-कभी अत्यंत नाटकीय ढंग से समाप्त होती थी.
“मैं उसे इजाज़त नहीं दूँगा,” टॉल्स्टॉय ऐसी ही एक खटपट के बाद नथुने फुलाए कह रहे थे, “कि मुझे जानबूझकर चिढ़ाए! देखिये, अब वो जानबूझकर मेरे सामने आगे-पीछे घूम रहा है और अपने लोकतांत्रिक नितंब हिला रहा है!...”

पीटरबुर्ग के एक साहित्यकार (लनगिनव) के साथ तो बात लगभग द्वंद्व-युद्ध तक पहुँच गई थी. नेक्रासोव के यहाँ ताश खेल रहे थे. इतने में कोई लनगिनव का पत्र लाया. खेल में व्यस्त नेक्रासोव ने टॉल्स्टॉय से पत्र खोलकर ज़ोर से पढ़ने को कहा. इत्तेफ़ाक से लनगिनव अत्यंत कठोर शब्दों में काउण्ट टॉल्स्टॉय के राजनीतिक पिछड़ेपन और दकियानूसी ख़यालों की आलोचना कर रहा था. ल्येव निकोलायेविच चुप हो गए, मगर, घर आकर, उन्होंने फ़ौरन लनगिनव को द्वंद्व-युद्ध के लिए चुनौती भेजी.

तुर्गेनेव की राय में टॉल्स्टॉय कभी भी लोगों की ईमानदारी पर यकीन नहीं करते थे. ईमानदारी से किया गया हर काम उन्हें बनावटी लगता, और वो असाधारण रूप से पैनी नज़र से उस आदमी के आर-पार देख लेते, जब उन्हें लगता कि वह झूठा है.

टॉल्स्टॉय ने स्वयम् अपनी डायरी में लिखा है ( 10/XI 1952): “मैं अनचाहे ही, किसी भी बारे में बोलते समय, आँखों से ऐसी बातें कह जाता हूँ, जिन्हें सुनना किसी को भी अच्छा नहीं लगता, और मुझे ख़ुद भी शरम आती है, कि मैं उन्हें कह रहा हूँ”.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Tolstoy and His Wife - 10.4

4 28 अक्टूबर को रात में दो बजे के बाद टॉल्स्टॉय की आँख खुल गई. पिछली रातों की ही तरह दरवाज़े खोलने की और सावधान कदमों की आहट सुनाई...