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इन गर्मियों में
पक्रोव्स्कोए की समर-कॉटेज में काफ़ी गहमा गहमी रही. घर निरंतर रिश्तेदार और परिचित
नौजवानों से भरा रहता, जो मॉस्को से आते, यहाँ रुकते या आस-पास की समर-कॉटेजेस से आते. सैर-सपाटे, खेल, पहेलियाँ, छोटे-छोटे नाटक
– एक के बाद एक होते ही रहते, नौजवानों की ख़ुशी का अंत ही
नहीं था.
ऐसे हंगामे में सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना धीरे-धीरे अपना लघु उपन्यास लिखती और शाम को चुपके से अपनी छोटी बहन
को पढ़कर सुनाती. लघु उपन्यास का नाम था “नताशा”. तात्याना अन्द्रेयेव्ना ने बाद
में उसका सारांश इस तरह से बताया:
लघु उपन्यास में दो नायक
हैं – राजकुमार दुब्लित्स्की और स्मिर्नोव. दुब्लित्स्की – मध्यम आयु का है,
अनाकर्षक व्यक्तित्व का, जोशीला, बुद्धिमान, जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बदलता रहता
है. स्मिर्नोव – जवान, 23साल का, ऊँचे
आदर्शों वाला, सकारात्मक, शांत चरित्र
का, भोला और अपना करियर बना रहा है. लघु उपन्यास की नायिका –
एलेना – जवान, ख़ूबसूरत, बड़ी-बड़ी काली
आँखों वाली लड़की है. उसकी बड़ी बहन ज़िनाइदा, अनाकर्षक,
ठण्डे स्वभाव की सुनहरे बालों वाली, और छोटी –
पंद्रह साल की, नताशा, दुबली-पतली और
चंचल लड़की थी. दुब्लित्स्की बिना किसी प्यार के ख़याल के उनके घर में आता-जाता है.
स्मिर्नोव एलेना से प्यार करता है, और वह भी उसकी ओर आकर्षित
है. वह उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखता है; वह सहमति देने
में डगमगाती है; उसकी जवान उम्र को देखते हुए माता-पिता इस
शादी के ख़िलाफ़ हैं. स्मिर्नोव नौकरी पर निकल जाता है. उसके दिल का दर्द. काफ़ी अन्य
दृश्य. ज़िनाइदा के दुब्लित्स्की के प्रति
आकर्षित होने का वर्णन, नताशा की शरारतें, उसका अपने चचेरे भाई के प्रति प्यार इत्यादि. दुब्लित्स्की का एलेना के घर
आना जारी रहता है. वह दुविधा में है और अपनी भावनाओं को समझने में असमर्थ है,
ख़ुद ही ये स्वीकार नहीं करना चाहती, कि उससे
प्यार करने लगी है. उसे अपनी बहन और स्मिर्नोव के बारे में ख़याल परेशान करते हैं.
वह अपनी भावनाओं से संघर्ष करती है, मगर ये संघर्ष उसकी
सामर्थ्य से परे है. दुब्लित्स्की, शायद, उसकी ओर आकर्षित था, न कि बहन की ओर, और इसी कारण, बेशक, वह उसे और
भी अपनी तरफ़ खींचता था. मगर जीवन के प्रति उसका निरंतर बदलता हुआ दृष्टिकोण उसे
बेज़ार कर देता है. उसकी निरीक्षक, भेदक बुद्धि लड़की को
असमंजस में डाल देती है. अपने ख़यालों में वह अक्सर स्मिर्नोव से उसकी तुलना करती
है, और अपने आप से कहती है : “स्मिर्नोव मुझसे सरलता से,
साफ़ दिल से प्यार करता है, मुझसे किसी बात की
उम्मीद नहीं रखता”. स्मिर्नोव आता है. उसके दिल की पीड़ा देखकर और साथ ही दुब्लित्स्की
की तरफ़ आकर्षण महसूस करके वह मॉनेस्ट्री में जाने के बारे में सोचती है. आख़िरकार
एलेना ज़िनाइदा की शादी दुब्लित्स्की से पक्की कर देती है, और
बाद में स्मिर्नोव से शादी कर लेती है.
इस बाल-कथा में सभी कुछ
सीधा-सरल नहीं है. और अगर सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने इसे टॉल्स्टॉय को दिखाने के लिए
लिखा था, तो कथानक व्यावहारिकता और साहस को
प्रकट करता है, जो अठारह साल की लड़की के लिए आश्चर्यजनक है :
कहानी में अर्ध-स्वीकृति है, और स्पष्टता के
लिए चुनौती है, और प्रतिद्वंद्वी-बहन का बेझिझक चित्रण है,
और ईर्ष्या का उत्तेजन है, जो दुविधा की भावना
पैदा कर सकती है...
अगस्त के आरंभ में
टॉल्स्टॉय फिर से मॉस्को में प्रकट हुआ. कुमीस का उस पर बहुत अच्छा असर हुआ था :
स्वास्थ्य पूरी तरह सुधर गया था. मगर वह बेहद परेशान नज़र आ रहा था. उसके सम्मान को
ठेस पहुँची थी. जुलै के आरंभ में लगभग आधी रात को यास्नाया पल्याना में पुलिस वाले
आए, उसकी बूढ़ी बुआ को और बहन को खूब डराया. ये,
टॉल्स्टॉय के अनुसार, “डाकू थे, जो सुगंधित साबुन से गाल और हाथ धोकर आए थे” – उन्होंने कसकर तलाशी ली और
टॉल्स्टॉय के सभी अंतरंग पत्र और डायरियाँ पढ़ीं. तलाशी का कारण अभी तक पूरी तरह
स्पष्ट नहीं हुआ था. उन नौजवानों में, जिन्हें टॉल्स्टॉय ने स्कूल
के काम की ओर आकर्षित किया था, स्टूडेण्ट्स थे, जिन्हें गड़बडी फैलाने के आरोप में विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया
था. टॉल्स्टॉय की गतिविधियों की शिकायतों के कारण, जो उस समय
ख़ुद एक प्रशासकीय अफ़सर थे, उनकी निगरानी की जाने लगी,
और गुप्तचर-पुलिस के एजेन्ट यास्नाया पल्याना की सीमा पर रहने लगे.
मगर, हो सकता है, कि प्रशासन के पास
कुछ नए संदेह भी थे. सन् 1861 में लन्दन में आवास के दौरान टॉल्स्टॉय “भयानक”
गेर्त्सेन से बेहद घुलमिल गए थे, करीब महीना भर वे दोनों
खुल्लमखुल्ला एक साथ दिखाई देते थे, जो रूसी विदेश-गुप्तचर
एजेन्टों की नज़र से छूट नहीं सकता था. जब रूस में “कोलकल (घण्टा – अनु.)” के
पुनर्मुद्रित लेख और घोषणाएँ प्रकट हुईं, तो पुलिस बड़ी
सरगर्मी से हर तरफ़ गुप्त मुद्रणालयों को ढूंढ़ रही थी. अलग-थलग स्थित यास्नाया
पल्याना ने पुलिसवालों का ध्यान आकर्षित किया.
टॉल्स्टॉय तैश में आ गए.
“मैं अक्सर अपने आप से कहता हूँ,” उन्होंने अपनी
दरबार वाली बुआ को लिखा, “कितना बडा सौभाग्य था, कि मैं नहीं था. अगर मैं होता, तो शायद मुझ पर किसी
हत्यारे की तरह मुकदमा चल जाता,”. पुलिसवालों ने वापस लौटने
का वादा किया. टॉल्स्टॉय भरी हुई रिवॉल्वरों के साथ उनकी राह देख रहे थे. वे एक
पत्र लिखकर त्सार से प्रशासन की शिकायत करने में कामयाब हो गए, और अलेक्सान्द्र द्वितीय ने ऐड-डी-कैम्प के माध्यम से इस घटना पर अफ़सोस
ज़ाहिर करता हुआ एक मरियल सा पत्र भेज दिया.
मगर ये सारी अप्रियताएँ
उसके दिल की तीव्र होती अंतरंग परेशानियों में डूब गईं. बेर्स परिवार में संबंधों
के बारे में उलझन बढ़ती जा रही थी. लीज़ा ने “शांति से और आत्मविश्वास से उस पर
कब्ज़ा कर लिया था.” वह टॉल्स्टॉय को घृणित लगने लगी थी,
और जब वह साथ होती थी, तो वह बड़ी मुश्किल से
अपने आप पर संतुलन रखता था.
पक्रोव्स्कोए में,
जहाँ ल्येव निकोलायेविच मॉस्को से (12 मील) अक्सर पैदल जाता था,
एक नया चेहरा प्रकट हुआ. बेर्स परिवार की हाल ही में प्रोफेसर नील
अलेक्सान्द्रोविच पोपव से पहचान हुई थी. ये 35 साल का आदमी था, गंभीर प्रकृति का, धीमी गतिविधियों वाला और भावपूर्ण
भूरी आँखों वाला. वह सोफ्या अन्द्रेयेव्ना के साथ हंसी-खुशी से समय बिताता और
अक्सर, औरों से बहस करते हुए भी, जवान
लड़की के सुडौल जिस्म और ज़िंदादिल चेहरे से नज़र नहीं हटाता था. उसने पक्रोव्स्कोए
से दो मील दूर एक समर-कॉटेज किराए पर ली थी और बेर्स परिवार के साथ समय बिताने का
कोई मौका नहीं छोड़ता था.
गृहस्वामिनी कहती:
“सोन्या पोपव को बहुत
अच्छी लगती है.”
मगर सोफ्या अन्द्रेयेव्ना को
ख़ुद भी यह महसूस हो रहा था. वह सरलता से, ख़ुशी से और
ज़िंदादिली से प्रोफेसर के निकट आने लगी थी. उसका इस तरह का आचरण उसे किसी भी छिछोरेपन
से ज़्यादा शिद्दत से आकर्षित कर रहा था. मगर इस निकटता का टॉल्स्टॉय पर भी असर हो रहा
था. उसके भीतर ईर्ष्या जाग रही थी. हो सकता है, कि इस बार भी
वह अपने भीतर पैदा होती हुई भावना को संदेहों से, विश्लेषण से,
तर्कों से मार डालता...मगर सोचने का समय नहीं था: ये भावना ईर्ष्या के
चाबुक की मार से बढ़ रही थी. सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना पक्रोव्स्कोए मे समर-कॉटेज की सीढ़ी
पर बैठकर प्रसन्नता से अपने प्रोफेसर से बातें कर रही थी और ल्येव निकोलायेविच,
ये “दिखाते हुए, कि उसे कोई फ़रक नहीं पड़ता,
पूरी ताकत से उससे ईर्ष्या और प्यार कर रहा था”...
क्या ये जवान लड़की का स्वाभाविक
बर्ताव था या सोचा समझा प्लान था? किसे पता?
उसने यूँ ही टॉल्स्टोय से कहा,
कि उसकी अनुपस्थिति में एक लघु उपन्यास लिखा है.
“लघु उपन्यास?
ये बात आपके दिमाग़ में आई कैसे? और विषय क्या है?”
“हमारी ज़िंदगी का वर्णन कर
रही हूँ.”
“पढ़ने के लिए किसे देती हैं?”
“मैं तान्या को पढ़कर सुनाती
हूँ.”
“मुझे देंगी?”
“नहीं,
नहीं दे सकती.”
वह,
बेशक, ज़िद करता रहा...
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