शनिवार, 31 मार्च 2018

Tolstoy and His Wife - 3.5




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ये रहे टॉल्स्टॉय की उस समय की डायरियों से लिए गए उद्धरण. वे उसकी तत्कालीन भावनाओं को सबसे अच्छी तरह प्रकट करते हैं. 

“23 अगस्त. रात बेर्स परिवार के यहाँ बिताई. बच्ची! बिल्कुल बच्ची! और उलझन बहुत बड़ी. ओह, अगर एक साफ़ और न्याय की कुर्सी पर बैठता...मुझे अपने आप से डर लगता है, कि कहीं ये प्यार न होकर सिर्फ प्यार की ख़्वाहिश हो! मैं सिर्फ उसकी कमज़ोर बातों की ओर ध्यान देना चाहता हूँ और फिर भी, वो बच्ची है! बच्ची जैसी!

26 अगस्त. बेर्स के यहाँ पैदल ही गया. शांति है, आरामदेह है. लड़कियों के ठहाके. सोन्या ठीक नहीं है, कुछ धृष्ठ लगी, मगर फिर भी मेरे साथ बात करती है. लघु उपन्यास पढ़ने के लिए दिया. कितना सशक्त सच और कितनी सादगी! अस्पष्टता उसे पीडा देती है. मैंने पूरा पढ़ा - बिना उदास हुए, ईर्ष्या या जलन के बिना, मगर “असाधारण अनाकर्षक रूप” और “निर्णयों का निरंतर परिवर्तन” -  इसने मुझे चिंतित कर दिया. मैं शांत हो गया. ये सब मेरे बारे में नहीं है...

28 अगस्त. मैं 34 साल का हो गया. बदसूरत थोबड़े, शादी के बारे में न सोच! तेरी मंज़िल कोई और है और तुझे काफ़ी कुछ मिल चुका है...

30 अगस्त. सोन्या और पोपव से ईर्ष्या नहीं करता, मुझे यकीन नहीं होता, कि मैं नहीं हूँ. टहल रहे थे, समर-हाउस, डिनर के लिए घर – आँखें, और रात!...बेवकूफ़! तेरे बारे में नहीं लिखा है, मगर फिर भी उसी तरह प्यार करता हूँ, जैसे सोनेच्का कलोशिना और आ. अबलेन्स्काया से. सिर्फ.

2 सितम्बर. बेर्स के यहाँ गया...मुसीबत – लीज़ा! सोन्या भी इतनी अच्छी...उसने प्रोफेसर पोपव और कमीज़ के बारे में बताया...कहीं ये संयोगवश तो नहीं?...

3 सितम्बर. उनके यहाँ; पहले कुछ नहीं, फिर घूमने निकल गए. “वो बेवकूफ़ है, आप तंदुरुस्त हैं” – दूरबीन, - “आइये, प्लीज़”. मुझे इत्मीनान हुआ! जा रहा था और सोच रहा था : या तो संयोगवश है, या असाधारण सूक्ष्मता से महसूस करती है, या फिर घटिया बेहद शोखी – आज एक, कल कुछ और – या संयोगवश भी, और बारीकी से भी, और शोखी से भी. मगर आम तौर से, कुछ नहीं! ख़ामोशी! मैंने कभी इतनी स्पष्टता से, ख़ुशी से और सुकून से पत्नी के साथ भविष्य की कल्पना नहीं की थी...

6 सितम्बर. मैं बूढ़ा हूँ, साथ चलने के लिए. चली जाओ या मेरे टुकडे-टुकडे कर दो...

7 सितम्बर...दुब्लित्स्की! वहाँ अपनी नाक न घुसेड जहाँ जवानी है, कविता है, ख़ूबसूरती है, प्यार है...वहाँ, भाई, कैडेट्स हैं!...

10 सितम्बर को दस बजे उठा – रातभर की परेशानी से थका हुआ. अलसायेपन से काम करता रहा और, जैसे स्कूली बच्चा इतवार की राह देखता है, उसी तरह शाम का इंतज़ार करता रहा...क्रेमलिन जा रहा हूँ. वो नहीं थी...वापस लौटी तो कठोर, गंभीर थी. और मैं फिर से निकल गया बेउम्मीद और पहले के मुकाबले और भी ज़्यादा प्यार में डूबा हुआ. उम्मीद डूब गई है. इस गांठ को काटना चाहिए, बेहद ज़रूरी है. मैं लीज़ा पर तरस खाते हुए उससे नफ़रत करने लगा हूँ. गॉड! मेरी मदद कर, मुझे ज्ञान दे! फिर वही तड़पाती हुई, निद्राहीन रात, मैं महसूस कर रहा हूँ, मैं, जो प्यार करने वालों की पीडा पर हँसता था!...जिसकी हँसी उडाओगे, तुम्हें भे वही मिलेगा. कितने प्लान बनाए थे मैंने – उससे कहने के, तान्या से कहने के और सब बेकार हो गया. मैं तहे दिल से लीज़ा से नफ़रत करने लगा हूँ. गॉड! मेरी मदद कर, मुझे ज्ञान दे! गॉड मदर, मेरी मदद कर!...

12 सितम्बर. मुझे प्यार हो गया है, यकीन ही नहीं था मुझे, कि प्यार किया जा सकता है. मैं पागल हूँ और अगर ये ऐसा ही चलता रहा, तो मैं अपने आप को गोली मार लूँगा. उनके घर पार्टी थी. वह हर लिहाज़ से ख़ूबसूरत लग रही थी. और मैं – घृणित दुब्लित्स्की. पहले ही अपने आप को संभालना चाहिए था. अब मैं रुक नहीं सकता. दुब्लित्स्की? होने दो! मगर प्यार में मैं माहिर हूँ. हाँ. कल सुबह ही उनके यहाँ जाऊँगा. कुछ पल मिले तो थे, मगर मैंने उनका फ़ायदा नहीं उठाया. मैं सकुचा गया...

13 सितम्बर. कुछ नहीं हुआ...हर रोज़ मैं सोचता हूँ, कि अब और ज़्यादा तडपना नहीं चाहिए और एक साथ ख़ुश रहना चाहिए, और हर रोज़ मैं अधिकाधिक पगला जाता हूँ. फिर उनके यहाँ से निकला पीड़ा लिए, दिल में पछतावा और सुख लिए. कल जैसे ही उठूंगा, जाऊँगा, और सब कुछ कह दूँगा. या...रात के तीन बज चुके हैं. मैंने उसे ख़त लिखा है, कल दे दूँगा, मतलब, आज, 14 को. माय गॉड, कितना डरता हूँ मैं मरने से! सुख और ऐसा – मुझे लगता है,कि असंभव है.गॉड, मेरी मदद कर!

15 सितम्बर. नहीं कहा, मगर कहा, कि कुछ कहना है. कल...”

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