रविवार, 25 मार्च 2018

Tolstoy and His Wife - 2.1





अध्याय 2

सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना

1.

पैंसठ साल पहले मॉस्को किसी बड़े गाँव की तरह था. लोग प्राचीन तौर-तरीकों से, मगर आराम से और स्वच्छन्दता से, बिना एक दूसरे से कटे हुए रहते थे. यहाँ वो दीवारें नहीं थीं, जिनसे पीटरबुर्ग की सोसाइटी ने स्वयम् को शेष लोगों से अलग कर लिया था. व्यापारियों और कर्मचारियों का मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग – अक्सर और “बिना ओहदे के” एक दूसरे के घर जाता था. ऐसी परिस्थितियों में डॉक्टर बेर्स के मामूली परिवार को भी सब लोग जानते थे. डॉक्टर मॉस्को के महल-विभाग में कार्यरत थे और इसलिए उन्हें क्रेमलिन में एक अच्छा सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था. उनके पास घोड़े थे और दस नौकर थे. तनख़्वाह के अलावा, वे अपनी बढ़ी हुई प्रक्टिस से भी काफ़ी कमा लेते थे, हालाँकि, शायद, उनकी बढ़िया डॉक्टरों में गिनती नहीं होती थी. जीने के लिए काफ़ी था; बचत नहीं होती थी. अन्द्रेइ एव्स्ताफ़ेविच बेर्स जर्मन मूल के लुथेरन(प्रोटेस्टन्ट्स की एक शाखा – अनु.) थे. जनरल के ओहदे तक वो सिर्फ 1864 में ही पहुँच पाए, मगर चालीस के दशक के मध्य में अपनी सेवा के लिए उन्हें कुलीनताप्राप्त हुई. सन् 1842 में, चौंतीस साल की उम्र में उन्होंने सोलह साल की ल्युबच्का इस्लाविना से शादी की. इस युवती के पारिवारिक इतिहास पर नज़र डालना ज़रूरी है. ननिहाल की तरफ़ से वह कैथेरीन द्वितीय और अलेक्सान्द्र प्रथम के प्रसिद्ध, पसन्दीदा, काउन्ट ज़वादोव्स्की की पोती थी. इस शानदार कुलीन परिवार की बड़ी बेटी, काउन्टेस सोफ्या पेत्रोव्ना की शादी बहुत कम उम्र में राजकुमार कज़्लोव्स्की से कर दी गई थी. वैवाहिक जीवन दुर्भाग्यपूर्ण रहा. पति-पत्नी शीघ्र ही अलग हो गए, और जवान काउन्टेस अलेक्सान्द्र मिखाइलोविच इस्लेन्येव की ओर आकर्षित हो गई, जिसके साथ जीवन के पंद्रह साल बिताए और उसके लिए छह बच्चे छोड़कर परलोक सिधार गई – तीन बेटे और तीन बेटियाँ. कज़्लोव्स्की से तलाक लेना संभव नहीं हो पाया. तमाम कोशिशों और ताल्लुकात के बावजूद, बच्चों को अपना नाम देना असंभव हो गया, और उन्हें इस्लाविनों का कुलनाम प्राप्त हुआ. परिवार निरंतर तूला प्रदेश के क्रास्नोए गाँव में रहा, जो यास्नाया पल्याना से 35 मील दूर है. इस्लेन्येव काउन्ट निकोलाय इलिच टॉल्स्टॉय (महान लेखक के पिता) का मित्र था. परिवारों में मित्रता थी और वे कई-कई हफ़्ते कभी क्रास्नोए में, तो कभी यास्नाया पल्याना में रहते थे. कहते हैं, कि नौ साल का ल्येव टॉल्स्टॉय ग्यारह साल की ल्युबच्का इस्लाविना के प्रति उदासीन नहीं था और उसने एक बार, ईर्ष्या से, उसे सीढ़ियों से नीचे धकेल दिया था, जिससे बच्ची कुछ दिनों तक लंगड़ाकर चलती रही. “बचपन”, “किशोरावस्था” और “जवानी” लिखने का विचार करके, टॉल्स्टॉय ने इर्तेन्येव’ – इस कुलनाम से अपने मित्रों के परिवार का वर्णन करने का निश्चय किया और धीरे-धीरे, जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता गया, “इस्लेन्येवपरिवार के साथ अपने बचपन के अनुभवों, और अपने बचपन की कुछ तस्वीरों को उसमें शामिल किया.                 
ल्युबोव अलेक्सान्द्रा बेर्स ने पति को तेरह बच्चे दिए,  जिनमें से आठ जीवित बचे. तीन लड़कियों और लड़के के बीच साल-साल भर का अंतर था; इसके बाद कुछ अंतराल के बाद बच्चों का कमरा और चार लड़कों से भर गया. सन् 1862 तक बड़ी बेटी लीज़ा की उम्र 19 साल थी, सोफ़्या की – 18 और तात्याना की – 16. लड़कियों का लालन-पालन घर पर ही हुआ. गवर्नेसों (फ्रेंच और जर्मन) के अलावा उनकी कक्षा वाले कमरे में काफ़ी नियमित रूप से शिक्षक भी आते थे. लड़कियों को पारंपरिक रिवाजों के अनुसार रखा जाता था. मगर यह परिवर्तन का समय था और लड़कियों को नये, फ़ैशनेबल विचारों से पूरी तरह बचाना संभव नहीं था. अपनी आत्मकथा में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना लिखती है: “विज्ञान और रूसी भाषा हमें स्टूडेन्ट्स पढ़ाते थे. उनमें से एक ने अपने तरीके से मुझे शिक्षित करने और अतिभौतिकवाद की ओर प्रेरित करने की कोशिश की; पढ़ने के लिए बख्नेर और फ्युअरबाख की रचनाएँ लाकर दीं, ये थोपने की कोशिश की कि भगवान नाम की कोई चीज़ नहीं है और धर्म एक अप्रचलित पूर्वाग्रह के सिवा कुछ भी नहीं है. पहले तो मुझे एटम्स की व्याख्या की सादगी पसंद आई और दुनिया में हर चीज़ का एटम्स के अनुपात पर निर्भर करना अच्छा लगा. मगर जल्दी ही मैं अपने परिचित ऑर्थोडोक्स विश्वास और चर्च के बगैर उकता गई और मैंने हमेशा के लिए भौतिकवाद से मुँह फेर लिया.” वैसे तुर्गेनेव के “पिता और पुत्र” ने, जो उसी समय प्रकाशित हुई थी, बेर्स परिवार पर बड़ा प्रभाव डाला, और निहिलिस्ट (शून्यवादी) बज़ारोव ने लड़कियों का सहानुभूतिपूर्ण ध्यान आकर्षित कर लिया था. लड़कियों को ये प्रेरणा दी गई कि उन्हें ख़ुद ही अपनी जीविका के लिए कमाना होगा. उन्हें छोटे भाइयों को पढ़ाना पड़ता था, सिलाई, कढ़ाई, घर की देखभाल और घरेलू-शिक्षिका डिप्लोमाइस शासकीय परीक्षा की तैयारी भी करनी होगी. माँ-बाप के पारिवारिक रिश्तों को आदर्श नहीं कहा जा सकता था, मगर उनसे बच्चों का जीवन दूभर नहीं हुआ था. डॉक्टर बेर्स, अपनी तमाम भलमनसाहत के बावजूद, संयत स्वभाव के नहीं थे और गुस्से के आकस्मिक विस्फोटों के कारण कभी-कभी घर के लोग परेशान हो जाते थे. हर चीज़ की बागडोर संयत, शांत, ठण्डे मिजाज़ की भी कह सकते हैं, ल्युबोव अलेक्सान्द्रोव्ना के हाथों में थी, जो पति के गरम स्वभाव को संतुलित करना जानती थी. शादी के दो साल बाद ल्येव टॉल्स्टॉय ने पत्नी को लिखे एक पत्र में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना के रिश्तेदारों की विशेषताएँ इस तरह बताई थीं: “कुछ बेर्स सांवले हैं : ल्युबोव अलेक्सान्द्रोव्ना, तुम, तान्या, पेत्या; और गोरे बेर्स हैं – बाकी के. साँवलों का दिमाग सोता रहता है, - वे कर सकते हैं, मगर चाहते नहीं हैं, और इससे उनमें आत्मविश्वास, कभी-कभी पर्याप्त नहीं होता, और कुशलता भी. और, दिमाग़ उनका इसलिए सोता है, क्योंकि वे शिद्दत से प्यार करते हैं; और इसलिए भी, कि साँवले बेर्सों की पूर्वज, मतलब ल्युबोव अलेक्सान्द्रोव्ना, पूरी तरह से विकसित नहीं थी. गोरे बेर्स बौद्धिक कार्यों में काफ़ी दिलचस्पी लेते हैं, मगर उनका दिमाग कमज़ोर और छोटा है...” इसी सामान्य, बेहद सटीक विशेषता की पृष्ठभूमि में तीनों बहनों के व्यक्तिगत चारित्रिक गुणों का वर्णन किया गया है. बड़ी (लीज़ा) – ख़ूबसूरत लड़की, ऊँचा कद, सही नाकनक्श और संजीदा भावपूर्ण आँखों वाली – स्वभाव से कठोर, लोगों से कम मिलती जुलती थी, शांत स्वभाव की थी और जीवन के प्रति उत्साह की उसमें कमी थी. पारिवारिक दैनंदिन कामों के प्रति कुछ लापरवाह थी. छोटे बच्चे, उन्हें खिलाना-पिलाना, उनके डाइपर्स, ये सब उसमें खीझ और उकताहट भर देते थे. हाथों में हमेशा किताब लिए रहती थी, उसने काफ़ी कुछ सीखा था, अंग्रेज़ी सीख रही थी, जर्मन भाषा से अनुवाद करती थी, अच्छे खासे आलेख भी लिखती थी, जिनमें से कुछ तो बाद में प्रकाशित भी हुए थे. कर्तव्य की उन्नत भावना कभी-कभार उसे मजबूर करती थी कि प्रयत्नपूर्वक  अपने आसपास के लोगों के लिए कुछ करे, मगर, ल्येव टॉल्स्टॉय की परिभाषा के अनुसार, ये सब कुछ “बड़ा अटपटा और बेमन से” किया गया प्रतीत होता था. इसके बिल्कुल विपरीत थी छोटी बहन – पापा की लाडली, उसे “भूत की बच्ची – तात्यान्चिक” कहते थे. ये “भूत की बच्ची” सारे घर को ज़िंदादिली से भर देती थी. तानेच्का बेर्स न सिर्फ बड़ी बहन के दिल को छू सकती थी, बल्कि अपनी शानदार माँ के भी. बचपन से ही उसकी शानदार गहरी आवाज़ थी और वह पूरी तन्मयता से संगीत सीखती थी. ये, प्रमुखता से, एक कलाकार का मन था: भावुक, आकर्षित करने वाला, - हर काम में स्वयम् को उत्साहपूर्वक झोंक देती थी. और अपनी समस्त सहजता से, खुल्लमखुल्ला, अपने अहंभाव को और स्वयम् के प्रति प्यार को प्रदर्शित करती थी. मगर साथ ही उसका जोश भरा दिल आसपास के लोगों के प्रति प्यार से सराबोर रहता था.
सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना बेर्स हर बात में बहनों के बीच की थी. वह अपनी कठोर और सलीकापसंद बड़ी बहन को बेहद नापसंद करती थी और ज़िंदगी भर छोटी के साथ उसकी सबसे पक्की, प्यार भरी दोस्ती रही. छोटी ने, बुढ़ापे में, इस तरह से सोफ्या अन्द्रेयेव्ना का वर्णन किया है. “सोन्या तंदुरुस्त लड़की थी. उसके गाल गुलाबी थे, बड़ी-बड़ी, काली-भूरी आँखें थीं और काली चोटी थी. उसका स्वभाव बहुत ज़िंदादिल, कुछ-कुछ भावुकता लिए था, जो आसानी से उदासी में बदल जाता था. सोन्या ने कभी भी सम्पूर्ण ख़ुशी या सुख का अनुभव नहीं किया, जो उसकी युवावस्था और विवाह के आरंभिक वर्षों में उसे ललचा रहे थे. उसे जैसे सुख में पूर्ण विश्वास नहीं था, वह उसे स्वीकार नहीं कर सकती थी और पूरी तरह उपभोग नहीं कर सकती थी. उसे हमेशा यही लगता था, कि अभी कोई चीज़ उसे बिगाड़ देगी या कुछ और भी होना चाहिए, जिससे सुख परिपूर्ण हो जाए. उसके स्वभाव की यह विशेषता ज़िंदगी भर बनी रही. उसे ख़ुद भी इस बात का एहसास था और उसने एक ख़त में मुझे लिखा था: “हर चीज़ में और हर इन्सान में ख़ुशी ढूंढने के इस आश्चर्यजनक, स्पृहणीय गुण के कारण तुम अच्छी लगती हो; वैसी नहीं, जैसी मैं हूँ, जो इसके विपरीत, ख़ुशी में और सुख में उदासी ढूँढ़ सकती है”. डॉक्टर बेर्स कहा करते थे: “बेचारी सोनेच्का कभी भी पूरी तरह सुखी नहीं रहेगी”. उसमें काफ़ी स्त्रियोचित गुण थे और वह बच्चों से प्यार करती थी. वह अक्सर बच्चों के कमरे में बैठी रहती, छोटे भाइयों से खेलती, उनकी बीमारी के दौरान उनका दिल बहलाती, उनके लिए उसने हार्मनीका खेल सीखा और अक्सर घर के कामों में वह माँ का हाथ बंटाती. आरंभिक वर्षों में ही उसके स्वभाव में किफ़ायत और कुछ कंजूसी भी देखी गई. उसे साहित्य, पेन्टिंग, संगीत पसंद था, मगर इनमें से किसी में भी विशेष योग्यता नहीं थी. मगर, ग्यारह वर्ष की आयु से वह नियमित रूप से डायरी लिखती थी और उसने लघु उपन्यास लिखने की कोशिश भी की थी. “सबसे ज़्यादा प्रभाव,” वह अपनी आत्मकथा में लिखती है, “मुझ पर पड़ा टॉल्स्टॉय के “बचपन” का और डिकेन्स के “डेविड कॉपरफील्ड” का...जब मैंने कॉपरफील्ड ख़त्म की तो मैं रोने लगी, जैसे मुझे निकटतम लोगों से जुदा होना पड़ेगा”...टॉल्स्टॉय के “बचपन” के साथ थोड़ी सी मुश्किल हो गई. कहानी पढ़ते हुए, सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना उसमें इतनी खो गई, कि कई प्रसंग उसे मुँहज़ुबानी याद हो गए और उसने उन्हें अपनी डायरी में लिख लिया. एक बार उसने लिखा: “क्या कभी वो ताज़गी, बेफिक्री, प्यार की मांग और विश्वास की शक्ति वापस लौटेगी, जो बचपन में तुम्हारे पास थे? उस वक्त से ज़्यादा हसीन और कौनसा वक्त हो सकता है, जब सिर्फ दो सबसे अच्छे गुण : मासूम ख़ुशी और प्यार की बेपनाह मांग ही ज़िंदगी का उद्देश्य थे”... इस भावपूर्ण इबारत के पीछे बड़ी बहन लीज़ा सिर्फ एक लब्ज़ लिखने से नहीं चूकी “बेवकूफ़!”, उससे बर्दाश्त नहीं होता था, जब “हमारी दिवानी कविता और नज़ाकत पर उतर आती थी”. मगर भावुकता हमेशा व्यावहारिकता को दूर नहीं हटाती, ऐसा ही, ज़ाहिर है, सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना के साथ भी था: किशोरावस्था से ही उसने जीवन के व्यावहारिक फ़ायदों की कदर करना सीख लिया था, वह उनकी ओर खिंचती थी और जो भी उसके हाथ में आता, उसे कस कर पकड़े रहती थी.  
पसंद आने की, प्यार का इज़हार करने की ख़्वाहिश, सबका प्यार और सबसे तारीफ़ पाने की ख़्वाहिश दोनों छोटी बहनों में करीब-करीब एक जैसी थी और इसने उनके स्वभाव को वो रंग दे दिया था, जिसके बारे में टॉल्स्टॉय के मित्र, कवि फ़ेत ने कहा था: “ माँ की कड़ी नज़र और सम्पूर्ण नम्रता के बावजूद, बेर्स की लड़कियों में वो लुभावनी झलक थी, जिसे फ्रांसीसी “आकर्षक” इस शब्द से प्रदर्शित करते हैं. छोटी वाली में तो ये काफ़ी हद तक उसके भावुक स्वभाव के प्रतिबिंब के रूप में ज़ाहिर होता था. सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना में ये ज़ाहिर होता था निर्दोष और बुद्धिमान छिछोरेपन में, जिससे वह आधे-अधूरे सहज ज्ञान से दुनिया में अपने लिए कोई जगह पाने के उद्देश्य से खिंची जाती थी. जवान लड़कियों के बर्ताव में कृत्रिमता की छाया भी नहीं थी, जिससे प्रांतीय महिलाएँ अच्छा लगने की कोशिश करती हैं. इसके विपरीत, टॉल्स्टॉय सोफ्या अन्द्रेयेव्ना की असाधारण सादगी, उसकी स्पष्टवादिता और ईमानदारी को उसकी ख़ूबी मानते थे.

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Tolstoy and His Wife - 10.4

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