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क्या
टॉल्स्टॉय ने कभी प्यार किया था?
सन् 1856 में उन्होंने
लिखा : “मैं किसी नौजवान आदमी के जवान औरत से या औरत के आदमी से प्यार के बारे में
नहीं कह रहा हूँ – मैं ऐसी नज़ाकतों से डरता हूँ, ज़िंदगी
में इतना दुखी था,
कि इस तरह के प्यार में
मुझे सच की एक चिंगारी भी नहीं दिखाई देती थी, बल्कि
था सिर्फ झूठ,
जिसमें भावनात्मकता, वैवाहिक संबंध, पैसा, अपने हाथों को मिलाने की या छुड़ाने की ख़्वाहिश उस
भावना को इतना उलझा देती थी,
कि कुछ भी समझना मुश्किल
था.”
ये – निकोलाय इर्तेन्येव
की टिप्पणियाँ हैं “किशोरावस्था” में. उसीकी, जिसने
“बचपन” में नन्ही सोनेच्का वलाखीना से अपने प्यार के बारे में, और राजकुमारी नेख्ल्यूदोवा के प्रति आकर्षण के आरंभिक क्षणों के बारे में
(“किशोरावस्था” में) बताया था. स्वयम् टॉल्स्टॉय की गवाही मौजूद है, कि ये तस्वीरें प्रकृति से बनाई गई हैं. बचपन में उसे नन्ही सोनेच्का
कलोशिना बेहद अच्छी लगती थी, और किशोरावस्था में –विश्वविद्यालय
के अपने दोस्त की बहन – अलेक्सान्द्रा अलेक्सेयेव्ना द्याकवा. सन् 1858-1859 में मॉस्को
की सोसाइटी में अलेक्सान्द्रा अलेक्सेयेव्ना से उसकी फिर से मुलाकात हुई, जिसकी शादी हो चुकी थी – एक “ख़ूबसूरत इन्सान” राजकुमार अंद्रेइ अबलेन्स्की
से. टॉल्स्टॉय के मन में पुराने प्यार की चिंगारी भड़क उठी, मगर
राजकुमारी, इस दिलचस्प इन्सान से नज़दीकियों के ख़तरे को महसूस
करके, अपने बच्चों के साथ पीटरबुर्ग चली गई.
कज़ान में,
जहाँ टॉल्स्टॉय पढ़ रहे थे, जवानी के कई शौक
थे. सबसे ख़तरनाक था ज़िनाइदा मलस्त्वोवा के साथ प्यार. इस महिला से – जो बहुत योग्य
और आकर्षक थी – उनकी सन् 1851 में फिर से मुलाकात हुई, जब वह
भाई के साथ कॉकेशस जा रहे थे, और उन्होंने उसे अपनी डायरी का
एक काव्यात्मक, भावपूर्ण पन्ना समर्पित किया. दोनों ही तरफ़
से आकर्षण को महसूस किया जा रहा था, और उसका इज़हार सिर्फ
परिस्थितियों के ही कारण नहीं हो पाया.
कॉकेशस में टॉल्स्टॉय एक
कज़ाक लड़की से प्यार कर बैठे. हालाँकि उनकी कहानी “कज़ाकी” का (दो भागों में) विषय,
जैसा कि ल्येव निकोलायेविच ने सोचा था, किसी
अन्य व्यक्ति से संबंधित घटनाओं पर आधारित है, मगर द्मित्री
अलेनिन का मरियाना के प्रति प्यार, लेखक के अनुसार, युवा कज़ाक लड़की के प्रति उनकी अपनी ही भावनाओं का चित्रण है.
शायद,
अपना ख़ुद का परिवार – शादी, बच्चे - ये
टॉल्स्टॉय की चिर अभिलाषित आकांक्षा थी. उनकी डायरियाँ और व्यक्तिगत पत्र इस विषय
से भरे पड़े हैं. मगर एक सुयोग्य जीवन संगिनी को ढूंढना उनके लिए मुश्किल हो रहा था.
जिन लड़कियों से वे मिलते, उनसे बुद्धि, सादगी, ईमानदारी, सुंदरता से
संबंधित काफ़ी ऊँची अपेक्षाएँ रखते. साथ ही (बल्कि, सबसे
पहले) उनकी पत्नी को तंदुरुस्त होना चाहिए और उनके बच्चों की सुदृढ़ माँ होना चाहिए,
उसे ख़ुद ही बच्चों को खिलाना चाहिए, ख़ुद ही
उनका लालन-पालन करना चाहिए. वह हर चीज़ को पति की नज़रों से देखे, हर बात में उसकी सहायक हो. सोसाइटी की चमक-दमक तो उसमें हो, मगर उसे सोसाइटी को भूलकर पति के साथ गाँव में बसना होगा और अपने आप को
पूरी तरह परिवार को समर्पित करना होगा.
अपनी असाधारण अंतर्दृष्टि
के साथ सिर्फ एक ज़बर्दस्त जुनून ही उसे विश्वास दिला सकता था,
कि आख़िरकार, उसने अपने आदर्शों के मूर्त
स्वरूप को पा लिया है.
समय के साथ साथ वो
जानबूझकर अपनी शर्तों में ढील देने लगा. उदाहरण के लिए,
वालेरिया अर्सेन्येवा के साथ उसके संबंधों से यही निष्कर्ष निकलता
है. ये लड़की अनाथ थी और अपनी छोटी बहन के साथ यास्नाया पल्याना से पाँच मील दूर, सुदाकोवो इस्टेट में एक समर्पित गवर्नेस की देखरेख में रहती थी.
टॉल्स्टॉय का परिवार वालेरिया अर्सेन्येवा के माता-पिता को अच्छी तरह जानता था.
लड़कियों का यास्नाया पल्याना में आना-जाना था. सन् 1856 में ल्येव निकोलायेविच
अक्सर सुदाकोवो जाया करते थे. गवर्नेस (मैडम वेर्गानी) ने प्लान बनाया कि वालेरिया
से उनकी शादी हो जाए. लड़की, ज़ाहिर था, कि
इस बात के लिए तैयार थी. उसे, सचमुच बनने-सँवरने का, सोसाइटी के मनोरंजनों का बेहद शौक था, और
शाही-एडजुटेन्ट का सपना देखती थी, मगर काउन्ट टॉल्स्टॉय में
भी उसे एक ‘सुयोग्य वर’ नज़र आया.
अक्तूबर के अंत में ल्येव निकोलायेविच से रहा नहीं गया और उन्होंने उसे अपनी डायरी
का पन्ना दिखा दिया, जिसमें लिखा था: “मैं उससे प्यार करता
हूँ”. बेशक, इस पल से उसे मंगेतर समझा जाने लगा था. मगर
टॉल्स्टॉय डगमगा गए, संदेह में पड़ गए, सोचने
लगे; कभी उसकी ओर आकर्षित होते, कभी
रिश्तों में ठण्डक लाते और आख़िरकार, उन्होंने दो महीनों के
लिए उससे दूर रहकर अपनी भावनाओं को समझने का फ़ैसला किया. अपनी बुआ जी के कथनानुसार,
जो इस शादी का इंतज़ार कर रही थी, अप्रत्याशित
रूप से “चर्च के बदले पीटरबुर्ग” चले गए. लम्बी ख़तो-किताबत चलती रही. दूर से
वालेरिया अर्सेन्येवा टॉल्स्टॉय को कुछ कम पसंद आ रही थी. उसने स्वीकार किया,
कि वो ख़ुद उससे उतना प्यार नहीं करता था, जितना
अपने प्रति उसके दिल में प्यार जगाने की कोशिश करता था. भावनाएँ ठण्डी पड़ गईं,
जिसके बारे में आख़िरकार ल्येव निकोलायेविच ने स्पष्ट और निर्णायक
ढंग से सुदाकोवो को लिख दिया. वालेरिया अर्सेन्येवा के निकट रिश्तेदारों और बुआजी
ने भी टॉल्स्टॉय पर तानों की बौछार कर दी. मगर उन्होंने काफ़ी देर तक अपने आप को
परखा था और, अंत में, कुछ और कर ही
नहीं सकता था. उसके और ख़ुद युवती के सौभाग्य से उसकी बाद में शादी हो गई और चार
बच्चे भी हुए.
शादी के प्रति उनकी
आकांक्षाओं के चलते टॉल्स्टॉय को सन् 1857 के बसंत में स्विट्ज़रलैण्ड में महान
प्रलोभनों का सामना करना पड़ा. यहाँ उनकी मुलाकात और पहली बार घनिष्ठता हुई अपनी
दूर की रिश्तेदार महिलाओं से – काउन्टेस एलिज़ाबेता और काउन्टेस अलेक्सान्द्रा टॉल्स्टाया
से. दोनों ही ग्रांड डचेस मारिया अलेक्सान्द्रोव्ना के दरबार में कार्यरत थीं.
अलेक्सान्द्रा टॉल्स्टाया का व्यक्तित्व बहुत प्यारा था और उनकी आवाज़ शानदार थी,
जिस पर वो काफ़ी मेहनत करती थीं. स्पष्टवादिता, ईमानदारी, गर्मजोशी से भरा दिल, नैतिक आत्मविश्लेषण और परिपूर्णता के प्रति निरंतर प्रयत्न – इन सबने उसके
आध्यात्मिक व्यक्तित्व को अत्यंत आकर्षक बना दिया था. उसकी बुद्धि अत्यंत कुशाग्र
थी – वह बहुत धार्मिक थी – कट्टर ‘ऑर्थोडॉक्स’ अर्थ में. दरबारी, सोसाइटी के बंधन उसे अपने धृष्ठ
भतीजे की तारीफ़ करने से रोक नहीं पाए, जिसका निरंतर हर तरह
के अप्रत्याशित कारनामों के प्रति झुकाव था. उनके बीच पनप रही नज़ाकत भरी दोस्ती
में टॉल्स्टॉय धार्मिक क्षेत्र में अपने विरोधाभासी और नास्तिक दिमाग से कुछ
छिछोरापन कर बैठते. प्यारी “दादी” को वो ईमानदारी से उन सारी औरतों से, जिनसे वह कभी मिल चुके थे, पूरे सिर के बराबर ऊँचा
समझते. बाद में वे धार्मिक पृष्ठभूमि पर विरोधों के कारण अलग हो गए. मगर जिस वर्ष
उनकी मृत्यु हुई, उस साल भी काउन्टेस टॉल्स्टाया से हुई
लम्बी ख़तो-किताबत को फिर से पढ़ते हुए ल्येव निकोलायेविच आस-पास के लोगों से बोले:
“जैसे अंधेरे कॉरीडोर में किसी बंद दरवाज़े के नीचे से रोशनी आती है, उसी तरह, जब मैं अपनी लम्बी, अंधेरी
ज़िंदगी की ओर देखता हूँ, तो अलेक्सान्द्रीन की याद – हमेशा प्रकाश पुंज की
तरह प्रतीत होती है.” स्वित्ज़रलैण्ड के बसंत के काव्यात्मक वातावरण में, जेनेवा- तालाब के किनारे ये निकटता उत्पन्न हुई और, ऐसा
लगा, कि वह सीधी-सादी दोस्ती से आगे जाएगी. मगर...काउन्टेस
टॉल्स्टॉय से ग्यारह साल बड़ी थी; उसके प्यारे, सजीव चेहरे पर उसे पहली झुर्रियाँ दिखाई दीं...और अपनी डायरी में कई बार,
अपनी रिश्तेदार की प्रशंसा करते हुए, उन्होंने
अफ़सोस से लिखा: “ अगर वो दस साल छोटी होती!...” वे सिर्फ दोस्त ही रहे.
सन् 1859 में,
मॉस्को की सोसाइटी में कई महिलाओं से प्रेमाराधना करते हुए, उसने आख़िरकार उनमें से एक के सामने (राजकुमारी ल्वोवा के) शादी का
प्रस्ताव रखने का फैसला कर लिया, मगर उसे ठुकरा दिया गया.
उसकी पत्नी ने बाद में उसे यकीन दिलाया कि उस ज़माने में वह बिल्कुल आकर्षक नहीं था,
और “उसका चेहरा गुस्सैल, बेचैन और उत्तेजित
लगता था”. दूसरी लड़कियों की, जिनकी वह प्रेमाराधना करता था,
ये राय थी, कि उससे बातें करना “दिलचस्प,
मगर बोझिल लगता है”. ज़ाहिर था, कि उसके मन की
क्लिष्टता और बिरला पैनापन बात करने वालियों को हमेशा तनाव की स्थिति में रखते
थे...”
इस तरह से उसकी जवानी बीत रही थी. उसने अपने निकट आते बुढापे को महसूस किया और वह पारिवारिक सुख से मुँह मोड़ लेने को भी लगभग तैयार हो गया, जिसके बारे में इतने लम्बे समय से और इतनी नज़ाकत से सपने देख रहा था.
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