गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

Tolstoy and His Wife - 4.1




अध्याय 4

सुख


1.



यास्नाया पल्याना में नौजवानों का स्वागत “बुआजी” - तात्याना अलेक्सान्द्रोव्ना इर्गोल्स्काया और काउन्ट सिर्गेइ निकोलायेविच टॉल्स्टॉय ने किया.

“प्यारी बुआजी” असल में टॉल्स्टॉय परिवार की दूर की रिश्तेदार थीं, मगर उनके घर में उसका महत्वपूर्ण स्थान था. ल्येव टॉल्स्टॉय की “यादें” में उन्हें और उनके भाग्य को सबसे भावपूर्ण, गर्मजोशी से भरे पृष्ठ समर्पित हैं. वो ल्येव निकोलायेविच के दादा के परिवार में बड़ी हुई, यहाँ उसका प्यार और ममता से पालन पोषण किया गया. जवानी में वो बेहद आकर्षक थी – काले घने, घुंघराले बालों की चोटी, बड़ी-बड़ी, ज़िंदादिल आँखें, निडर, निर्णायक चरित्र और असाधारण भलमनसाहत. इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है, कि ल्येव निकोलायेविच के पिता के दिल में, जो उसके साथ एक ही घर में बड़े हो रहे थे, उसके प्रति नज़ाकतभरे अपनेपन की भावना थी. वह भी उसी तरह प्रत्युत्तर देती थी. इस प्यार का “युद्ध और शांति” में किया गया चित्रण – काउन्ट निकोलाय इल्यिच रस्तोव और सोन्या के बीच संबंधों के माध्यम से - वास्तविकता के काफ़ी निकट है. जैसे वहाँ हुआ, वैसे ही वास्तविकता में भी बेचारी लड़की को ज़्यादा भाग्यवान प्रतिद्वन्द्वी – न ज़्यादा सुंदर और न ज़्यादा जवान राजकुमारी मारिया निकोलायेव्ना वल्कोन्स्काया - के लिए पीछे हटना पड़ा. टॉल्स्टॉय परिवार निर्धन हो चुका था, और राजकुमारी वल्कोन्स्काया के पास काफ़ी संपत्ति थी. तात्याना अलेक्सान्द्रोव्ना इर्गोल्स्काया अपनी प्रतिद्वन्दी  को घर गृहस्थी के कामों में मदद करते हुए उसीके के परिवार में रह गई. आठ साल बाद, पति के लिए पांच बच्चे छोड़कर काउन्टेस मारिया निकोलायेव्ना की मृत्यु हो गई. इर्गोल्स्काया ने मन से उनका पालन-पोषण किया. और छह साल बाद काउन्ट निकोलाय टॉल्स्टॉय ने फिर से उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा. मगर उसके और उसके बच्चों के प्रति अपने “पाक-साफ़ संबंधों को बर्बाद न करने की इच्छा से” उसने इनकार कर दिया और हमेशा कुँआरी ही रही.

तात्याना अलेक्सान्द्रोव्ना इर्गोल्स्काया बड़ी धार्मिक थी, उसे संगीत पसंद था (पियानो बहुत अच्छा बजाती थी) और, टॉल्स्टॉय यकीन दिलाते हैं, कि वह मैडम दसिवीन्ये की भांति ख़त लिखती थी.  काउन्ट निकोलाय टॉल्स्टॉय के प्रति अपना सारा प्यार उसने उसके बच्चों पर उंडेल दिया. सबसे ज़्यादा लगाव उसे ल्येव निकोलायेविच के प्रति था और अपने लंबे जीवन के अंतिम वर्ष “पूरी तरह उसे वो ही समझती रही, जिसे ज़िंदगी भर प्यार किया था.”

“उसने प्यार को अंतरंग-काम बना लिया था,” टॉल्स्टॉय ने नब्बे के दशक में लिखा, “और इसलिए उसे कहीं जाने की जल्दी नहीं होती थी. और ये दो गुण – प्यार और धीमापन – अनजाने ही समाज को उसकी ओर आकर्षित करते थे और इस निकटता में एक विशेष आकर्षण पैदा करते थे”.                               
प्यारे लेवच्काका पारिवारिक सुख देखना उसके जीवन का सपना था. जब टॉल्स्टॉय कॉकेशस में सेवारत था, तब वे इस बारे में ख़तों में लिखते थे, और ल्येव निकोलायेविच अक्सर उसके ख़त पढ़कर प्यार और स्नेह से रोता था.

समझ सकते हैं, कि कैसी ख़ामोश ख़ुशी से प्यारी वृद्धा ने नौजवानों का स्वागत किया होगा. 
इस बार लेखक का बड़ा भाई – घमंडी, गंभीर, सिर्फ ख़ुद को प्यार करने वाला - काउन्ट सिर्गेइ निकोलायेविच भी बहुत “ख़ुश हुआ”.

जिस जल्दबाज़ी से टॉल्स्टॉय की मांग के अनुसार शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, उसे देखते हुए, टॉल्स्टॉय का भाई, जिसे नौजवानों के स्वागत की तैयारी करने के लिए गाँव भेजा गया था, सिर्फ सोफ्या अन्द्रेयेव्ना का कमरा ही तैयार कर पाया था.

पुराना, विशाल घर, जिसमें महान लेखक का जन्म हुआ था, अब अस्तित्व में नहीं था. ये बड़ा (36 कमरों वाला) – महल जैसा, स्तंभों और शानदार सिमेन्ट की त्रिकोणिका वाला घर, मिट्टी के मोल बेच दिया गया था, जब ल्येव निकोलायेविच को समय-समय पर ताश की बड़ी बाज़ी खेलते समय पैसों की ज़रूरत होती थी.        

पुराने ऐश्वर्य की भव्यता से अब सिर्फ दो ही खण्ड शेष बचे थे, जो लुप्त हो चुकी इमारत के पार्श्व का काम देते थे. उनमें से एक में किसानों के बच्चों के लिए स्कूल था. दूसरे खण्ड की दो मंज़िलों में नौजवानों का इंतज़ाम हो गया. शानो-शौकत का ज़रा सा भी नामो-निशान नहीं. सीधा-साधा फर्निचर, लगभग सभी बड़ा कठोर. डाइनिंग टेबल की सेटिंग – मामूली से कुछ बेहतर. प्रकाश – किचन और आम कमरों में चर्बी की मोमबत्तियाँ, “मालिकों के” कमरों में – पामॉलिव के मोमवाली बत्तियाँ और – कभी-कभार ख़ास मौकों के लिए – पामोलिन के लैम्प. गृहस्वामी ने फ़ौरन अपना शानदार सूट उतार दिया और गरम ढीला-ढाला कुर्ता पहन लिया, जो बाद में उसकी इकलौती, पारंपरिक पोषाक बन गई.
उसकी आदतों से युवा पत्नी को अचरज हुआ, जो ज़रा भी ऐश्वर्य के वातावरण में नहीं पली थी. जैसे, उदाहरण के लिए, वह हमेशा गहरे लाल रंग के चौड़े तकिये पर सोता था, जो घोड़ा-गाड़ी की सीट जैसा था, और उस पर खोल भी नहीं चढ़ा होता था. बिस्तरों के पास कालीन भी नहीं होता था, “क्योंकि गरम घरेलू जूते थे”. बाग में – एक भी फूल नहीं, पगडंडियाँ साफ़ नहीं की जाती थीं और घर के चारों ओर – कंटीली झाड़ियाँ, जिन पर नौकर बेदर्दी से हर तरह का कूडा-करकट फेंक दिया करते थे.

घर में थोड़े ही लोग थे. नौकरानी दुन्याशा, नौकर अलेक्सेइ और बूढ़ा रसोइया, जो अक्सर होश में नहीं रहता था.

इस, लगभग गंभीर, बोझिल वातावरण में – फ़ेत के शब्दों में “उड़कर आया एक ख़ूबसूरत पंछी, जिसने अपनी उपस्थिति से सब में जान डाल दी”.

गर्व से लेस और लाल रिबन लगी हुई टोपी पहनकर – जवान काउन्टेस ने आरंभ से ही घर की अधिकारयुक्त और शालीन गृहिणी और “बड़ी मालकिन” बनने की कोशिश की. “ठीक है!” – टॉल्स्टॉय लिखते हैं - “बढ़िया ही है”.

मगर कभी-कभी वह “बड़ी” होने से उकता जाती थी. घर की ख़ामोशी चिड़चिड़ाहट पैदा कर देती. उछल-कूद करने और खिलखिलाने की अदम्य इच्छा होती: वह उछलती, दौड़ती, ये याद करके, कि कैसे छोटी बहन – शैतान की बच्ची- तात्यान्चिक पर गुस्सा करती थी, और चिल्लाकर कहती थी कि उसे “शैतान ले जाए.”

पहले ही दिन से सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने “पति की सहायता” करने की कोशिश की : वह स्कूल जाती, पाठ की निगरानी करती, - “कभी निबंध सुधारती, कभी गणित के सवाल – भाग...” मगर उसे सबसे ज़्यादा पसंद था स्कूल के बच्चों के साथ त्रोयका में घूमना : वे रुक जाते, भागते, गाने गाते और ख़ूब मज़ा लूटते.

उसने दुग्ध-दोहन की तरफ़ भी ध्यान देने की कोशिश की, जब गायों के दुहने का वक्त होता, तो वहाँ चली जाती, मगर टॉल्स्टॉय को आश्चर्य हुआ कि गाय के बाडे की गंध से उसका जी मिचलाता था, और शहर में रहने वाली जवान लड़की गायों के मामले में कुछ न कर सकी...

“बुआजी इतनी ख़ुश हैं,” उसने बहन को लिखा, “सिर्योझा इतना प्यारा है, और लेवच्का  के बारे में तो कुछ कहना ही नहीं चाहती, मुझे डर लगता है और सकुचाहट भी होती है, कि वह मुझसे इतना प्यार करता है, - तात्यान्का, ऐसा कुछ भी तो नहीं है मुझमें?...”

कभी-कभी वे दोनों मिलकर ख़त लिखते हैं:

ल्येव निकोलायेविच : “तात्याना, प्यारी दोस्त, मुझ पर तरस खाओ, मेरी बीबी – बेवकू-ऊ-फ़ है”.
सोन्या: “वो ख़ुद ही बेवकूफ़ है, तान्या”.
ल्येव निकोलायेविच: “ये ख़बर, कि हम दोनों ही बेवकूफ़ हैं, तुम्हें बहुत दुःख पहुँचायेगी, मगर दुख के बाद सांत्वना भी मिलती है : हम दोनों बहुत ख़ुश हैं, कि हम बेवकूफ़ हैं, और कोई दूसरे नहीं होना चाहते”.
सोन्या: “मगर मैं चाहती हूँ, कि वह बुद्धिमान हो”.
ल्येव निकोलायेविच: “देखा, परेशानी में डाल दिया ना!...क्या तुम महसूस कर सकती हो, कि ऐसा करते हुए, हम कैसे झूलते हुए, ठहाके लगा रहे हैं?…”

छोटे बच्चों की तरह वे एक दूसरे के साथ खेल रहे हैं – और प्यार कर रहे हैं. वे सुखी हैं.

5 जनवरी 1863 को टॉल्स्टॉय अपनी डायरी में लिखते हैं: “मुझे अच्छा लगता है, जब रात में या सुबह, मैं जागता हूँ और देखता हूं : वह मेरी ओर देख रही है और प्यार कर रही है. और कोई नहीं – ख़ासकर मैं – उसके प्यार करने में बाधा नहीं डालता, जैसा वो जानती है, अपने तरीके से. मुझे अच्छा लगता है, जब वह मेरे पास बैठी होती है, और हम जानते हैं, कि एक दूसरे से प्यार करते हैं, जैसा कर सकते हैं; और वह कहेगी : “लेवच्का!”... और रुक जायेगी; “फायरप्लेस की चिमनियाँ सीधी क्यों लगाते हैं?”  या “घोड़ों की उम्र लम्बी क्यों होती है?”… मुझे अच्छा लगता है, जब हम काफ़ी देर तक अकेले होते हैं, और “क्या करना चाहिए?”. “सोन्या, हमें क्या करना चाहिए?” वह मुस्कुराती है. मुझे अच्छा लगता है, जब वह मुझ पर गुस्सा करती है और अचानक, पलक झपकते ही उसके दिमाग़ में ख़याल आता है, और निकलता है ये लब्ज़ – कभी कभी तैश से : “छोड़ो!” “उबाऊ!” एक मिनट बाद वह शर्माते हुए मुस्कुराती है. मुझे अच्छा लगता है, जब वह मेरी तरफ़ नहीं देखती और नहीं जानती कि मैं भी उससे अपने ही तरीके से प्यार करता हूँ. मुझे अच्छा लगता है, जब वह पीली ड्रेस में छोटी बच्ची जैसी दिखती है, और निचला जबडा और जीभ बाहर निकालती है; अच्छा लगता है, जब मैं देखता हूँ पीछे की ओर झुका हुआ उसका सिर, और उसका गंभीर, और भयभीत और बचकाना और भावपूर्ण चेहरा देखता हूँ; मुझे अच्छा लगता है जब ...”

उसका गला रुंध जाता है, अपने आप को रोक नहीं पाता और अपनी प्रसन्नता को काउन्टेस अलेक्सान्द्रा टॉल्स्टाया के साथ बांटता है.

“गाँव से लिख रहा हूँ, लिख रहा हूँ, और ऊपर से बीबी की आवाज़ सुन रहा हूँ, जो भाई से बातें कर रही है और जिसे मैं दुनिया में सबसे ज़्यादा चाहता हूँ. अपनी 34 साल की ज़िंदगी में मैं जान ही नहीं पाया कि कोई इस तरह से प्यार कर सकता है और इतना सुखी हो सकता है. जब कुछ शांत हो जाऊँगा तब आपको एक लंबा ख़त लिखूंगा – मतलब ये नहीं, कि ज़्यादा शांत, - मैं अब शांत हूँ, मेरे सामने सब कुछ इतना स्पष्ट है, जैसा ज़िंदगी में कभी नहीं था, – बल्कि जब इसकी काफ़ी आदत हो जाएगी. फ़िलहाल मेरे मन में निरंतर ये भावना रहती है, जैसे मैंने ऐसा सुख चुरा लिया है, जिसके मैं काबिल नहीं हूँ, जिसका मुझे अधिकार नहीं है, जो मेरे लिए नहीं है. वो आ रही है, मैं उसकी आहट सुनता हूँ, और इतना अच्छा लगता है. पिछले ख़त के लिए आपको धन्यवाद. और इसलिए कि इतने अच्छे लोग मुझसे प्यार करते हैं, जैसे आप, और सबसे ज़्यादा आश्चर्यजनक, जैसे ऐसा व्यक्ति, जैसे मेरी पत्नी...”

सन् 1862 में दिसम्बर के मध्य में टॉल्स्टॉय दम्पत्ति कुछ दिनों के लिए मॉस्को गए. पति-पत्नी के बीच के संबंधों पर बाहर के लोगों के अवलोकन में कुछ परिवर्तन महसूस हुआ. पहले जैसी चंचल, सवालिया, प्यार में डूबी नज़रें नहीं थीं. उसकी तरफ़ से नज़ाकत भरी फिक्र थी और पत्नी की तरफ़ से प्यार भरी आज्ञाकारिता. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना का उत्साही, स्वच्छन्द स्वभाव फिलहाल पूरी तरह से टॉल्स्टॉय की गरिमा से ढंक गया था: युवा पत्नी अपने महान पति के शब्दों से बोलती थी और उसीके ख़यालों से सोचती थी.

टॉल्स्टॉय दम्पत्ति मॉस्को में कुछ ही हफ़्ते रहे: उन दोनों को वापस, गाँव के एकान्त में लौटने की जल्दी थी. जहाँ वे बिना किसी बाधा के स्वयम् को अपने असाधारण सुख को समर्पित कर सकें.

शादी के साढ़े तीन महीने बाद (5 जनवरी 1863 को) टॉल्स्टॉय अपनी डायरी में लिखते हैं: “पारिवारिक सुख मुझे पूरी तरह अवशोषित कर रहा है...अक्सर मेरे दिमाग़ में आता है, कि सुख और उसके सभी विशिष्ठ गुण गुज़र जाएँगे, मगर उसे कोई नहीं जानता और ना ही जानेगा, और किसी के भी साथ ऐसा ना हुआ है और ना होगा, और मैं इसे महसूस करूंगा...”

मगर “टॉल्स्टॉय दम्पत्ति का आकर्षक सुखद जीवन” आसपास के लोगों से छुप न सका. सभी को वह मोहित करता था. फेत वृद्धावस्था की यादों में दिल को छू लेने वाली नज़ाकत और प्यार से उसका वर्णन करते हैं, और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना का एक भाई कहता है: “यास्नाया पल्याना के मेरे आवास के दौरान, मैं ही, शायद, उनके पारिवारिक जीवन का सबसे नज़दीकी गवाह था. इस जोडे की आपसी निकटता, दोस्ती और पारस्परिक प्रेम मेरे लिए हमेशा दाम्पत्य-सुख का उदाहरण और आदर्श रहे. इतना कहना काफ़ी है, कि मेरे माता-पिता, जो अन्य माँ-बाप ही की तरह अपने बच्चों के भाग्य से हमेशा अप्रसन्न रहते हैं, कहते थे: “सोन्या के लिए इससे बेहतर सुख की कामना नहीं की जा सकती!”...

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