6.
ये “कल” आख़िरकार आ ही
गया.
टॉल्स्टॉय
बेर्स के घर शाम को आया. वह काफ़ी परेशान नज़र आ रहा था और कभी पियानो के पीछे बैठता, मगर आरंभ किए हुए मुखड़े को पूरा न बजाकर उठ जाता और
कमरे में घूमने लगता,
कभी सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना के पास जाता और उसे साथ में बजाने को कहता. वह चुपचाप बैठ जाती. मगर
उसने बजाना शुरू नहीं किया और बोला:
“बेहतर
है, कि इसी तरह बैठे रहें.”
वे
पियानो के पीछे एक दूसरे के साथ बैठे,
और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना
ने हौले से वाल्ट्ज़ “Il
Baccio” (द किस-
अनु.) बजाया और गाने के
लिए नोट्स याद करने लगी.
टॉल्स्टॉय
की परेशानी, ज़ाहिर है,
उसे सकुचा रही थी और
अपनी गिरफ़्त में ले रही थी.
“तान्या,” उसने वहाँ से गुज़रती हुए बहन से कहा, “वाल्ट्ज़ गाने की कोशिश कर, मैं
शायद, नोट्स भूल गई हूँ.”
तात्याना
अन्द्रेयेव्ना कमरे के बीच में खड़ी हो गई और गाने के लिए अपने आप को तैयार करने
लगी.
टॉल्स्टॉय
के मुख पर कालिमा छा गई: मन की बात कहने का मौका फिर से हाथ से छूटा जा रहा था.
मगर जेब में लिखा हुआ ख़त था,
जिसे, अगर इस बार भी कह न पाया तो, उसे देने का उसने निश्चय किया था. सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना उद्विग्न थी और बहन का साथ ठीक से नहीं दे पा
रही थी. पता भी नहीं चला कि कब टॉल्स्टॉय उसकी जगह पर गाने लगा था.
उसने
अपने आप से कहा: “अगर वह अंतिम ऊँचा सुर अच्छी तरह पकड़ती है, तो आज ही ख़त दे दूँगा. अगर अच्छी तरह नहीं उठाती, तो नहीं दूँगा.”
तानेच्का
तन्मयता से गा रही थी और,
अंत तक आते आते, हौले से और निर्णयात्मक ढंग से उसने ऊँचा सुर पकड़ा.
“आप
आज कितना अच्छा गा रही हैं!” टॉल्स्टॉय ने उत्तेजित आवाज़ में कहा.
गायिका
को चाय बनाने के लिए बुलाया गया.
टॉल्स्टॉय
ने, कहने की हिम्मत न जुटाते हुए, सोफ्या अन्द्रेयेव्ना को ख़त दे दिया.
उसने
कहा कि ऊपर, गृहस्वामिनी के कमरे में, जवाब
का इंतज़ार करेगा.
सोफ़्या
अन्द्रेयेव्ना,
“तीर से घायल पंछी” की
तरह सहमी हुई,
अपने कमरे में भागी और
चाभी से द्रवाज़ा बंद कर लिया.
उसने पढ़ा:
“सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना! ये सब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया है. तीन हफ़्तों से मैं रोज़ कह
रहा हूँ: आज सब कुछ बता दूँगा, और
दिल में वही पीड़ा,
पछतावा, भय और सुख लेकर चला जाता हूँ. और हर रात, जैसे कि अभी भी, मैं
अपने विगत को याद कर रहा हूँ,
दुखी हो रहा हूँ, और कह रहा हूँ: मैंने क्यों नहीं कहा, और कैसे,
और क्या कहा होता. मैं
इस ख़त को अपने साथ लिए घूम रहा हूँ,
जिससे कि अगर आपसे सब
कुछ कहने की हिम्मत न जुटा पाया तो इसे आपको दे दूँ. आपके परिवार में मेरे बारे
में ये भ्रामक राय है,
जैसा कि मुझे प्रतीत
होता है, कि मैं आपकी बहन लीज़ा से प्यार करता हूँ. ये अन्याय
है. आपका लघु उपन्यास मेरे दिमाग में बैठ गया है, इसलिए, कि उसे पढ़ने के बाद, मुझे
यकीन हो गया है,
कि मेरे - दुब्लित्स्की के
नसीब में – सुख का सपना देखने का अधिकार नहीं है...कि प्यार के बारे में आपकी
बेहतरीन अपेक्षाएँ...कि मैंने उससे
ईर्ष्या नहीं की और करूंगा भी नहीं,
जिससे आप प्यार करेंगी.
मुझे लगता था,
कि आपको देखकर मैं
बच्चों की तरह खुश हो सकता हूँ.
ईवित्सी में मैंने लिखा था : आपकी उपस्थिति मुझे शिद्दत से अपने बुढ़ापे की और सुख
की असंभाव्यता की याद दिलाती है,
और आप ही...
मगर
तब भी, और बाद में भी मैं अपने आप से झूठ बोलता रहा. तब भी, मैं सब कुछ छोड़-छाड़कर वापस अपने रोज़मर्रा के काम और
अपने उद्देश्य की मॉनेस्ट्री में जा सकता था. अब मैं कुछ भी नहीं कर सकता, बल्कि ये महसूस कर रहा हूँ, कि
मैंने आपके परिवार में उलझन की स्थिति पैदा कर दी है; आपके
साथ किसी मित्र जैसे,
ईमानदार व्यक्ति जैसे, सीधे-सरल,
प्यारे रिश्ते खो गए
हैं. और, मैं न जा सकता हूँ, न रुक
सकता हूँ. आप ईमानदार इन्सान हैं,
दिल पे हाथ रखकर, बिना जल्दबाज़ी किए, ख़ुदा
के लिए बिना जल्दबाज़ी किए,
बताइए: मैं क्या करूँ, जिसकी हँसी उड़ाते हो, वही
तुम्हें मिलता है. मैं हँसी से मर जाता, अगर एक
महीना पहले मुझसे कोई कहता,
कि जैसे मैं दुख उठा रहा
हूँ, उस तरह दुख उठाया जा सकता है, और इस समय मैं सुख से पीड़ा झेल रहा हूँ. बताइये, आप ईमानदार इन्सान हैं, क्या
आप मेरी पत्नी बनना चाहती हैं?
अगर तहे दिल से चाहती
हैं, तभी. आप बहादुरी से कह सकती हैं “हाँ”, अगर आपके दिल में अपने बारे में ज़रा भी संदेह हो तो ”ना” कहना ही बेहतर है. ख़ुदा
के लिए, अपने आप से अच्छी तरह पूछिये. “ना” सुनना मेरे लिए
भयानक होगा, मगर मैं उसे भाँप जाऊँगा और बर्दाश्त करने की ताकत
ढूँढ़ लूँगा. मगर यदि मैं कभी भी उस तरह का पति नहीं बन सकता, उतना प्यारा, जितना
प्यार मैं करता हूँ,
तो ये भयानक होगा...”
इस
ख़त को पढ़ने में दरवाज़े पर पूरी ताकत से हो रही दस्तक ने बाधा डाली.
“सोन्या!”
बड़ी बहन करीब-करीब चीख रही थी. “दरवाज़ा खोल, अभ्भी
खोल! मुझे तुझसे मिलना है...”
दरवाज़ा
थोड़ा सा खुला.
“सोन्या, द’
काउन्ट ने तुझे क्या
लिखा है? बोल!” हाथों में ख़त पकडे सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ख़ामोश
रही.
“बता, फ़ौरन, द’काउन्ट ने तुझे क्या लिखा है,” हुकुम चलाती हुई आवाज़ में एलिज़ाबेता अन्द्रेयेव्ना
उत्तेजना से चीख़ी.
“उसने
शादी का प्रस्ताव रखा है,”
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने
हौले से जवाब दिया.
“मना
कर दे!” हिचकियों भरी आवाज़ में बड़ी बहन कराही, “फ़ौरन
मना कर दे!”
सोफ्या
अन्द्रेयेव्ना ख़ामोश रही.
माँ
आई, जिसे काफ़ी मुश्किल से इस मुश्किल दृश्य को रोकने में
कामयाबी मिली.
और
छोटे से ड्राइंग रूम में,
जो गृहस्वामिनी के कमरे
का एक हिस्सा था,
परेशान टॉल्स्टोय खड़ा था
और इंतज़ार कर रहा था. उसने अपने हाथ पीछे रखे थे और फ़ायरप्लेस से टिक कर खड़ा था.
उसका चेहरा गंभीर था,
आँखों में एकाग्रता का
भाव था. उसका चेहरा हमेशा से ज़्यादा विवर्ण नज़र आ रहा था.
आख़िरकार
हल्के कदमों की आहट सुनाई दी...सोफ्या अन्नद्रेयेव्ना जल्दी से उसके करीब आई. उसने
कहा:
“ज़ाहिर
है, ‘हाँ’
!”
कुछ
मिनट बाद बधाइयों का दौर शुरू हो गया.
बूढ़ा
डॉक्टर बीमार था और अपना कमरा बंद करके बैठा था. पत्नी से प्रस्ताव के बारे में
सुनकर, पहले तो उसका रुख लगभग शत्रुतापूर्ण रहा. उसे यकीन था
कि टॉल्स्टॉय को लीज़ा से प्यार है,
और ये भी कि प्यार दोनों
तरफ से है, उसे बड़ी बेटी के लिए बेहद अफ़सोस हुआ, और पहले तो वह स्वीकृति भी नहीं देना चाहता था. मगर
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना के आँसू और ख़ुद लीज़ा के उदात्त हस्तक्षेप ने जल्दी ही मामला
सुलझा दिया. माँ-बाप की स्वीकृति प्राप्त हो गई, और 17
सितम्बर को ल्येव निकोलायेविच ने अपनी डायरी में लिखा : “मंगेतर, उपहार,
शैम्पेन. लीज़ा दयनीय है
और दुखी है; वह मुझसे नफ़रत करती होगी. चुम्बन लेती है.”
टॉल्स्टॉय
की ज़िद पर एक सप्ताह बाद शादी करने का फ़ैसला किया गया. भागदौड का समय शुरू हो गया, जिसका सही वर्णन “आन्ना कारेनिना” में किया गया है.
वैसे
ल्येव निकोलायेविच की डायरी में (24 सितम्बर को) ये भी लिखा है: “समझ में नहीं आया
कि सप्ताह कैसे गुज़र गया. मुझे कुछ याद नहीं है; सिर्फ
पियानो के पास वाला चुम्बन और शैतान का अवतरण, फिर
उसके विगत से ईर्ष्या,
उसके प्यार पर शक और ये
ख़याल कि वह ख़ुद को धोखा दे रही है”.
उसने
“भय, अविश्वास और भाग जाने की इच्छा” के बारे में भी लिखा
है, जिसने शादी वाले दिन उसे दबोच लिया था.
दूसरे
स्त्रोतों से कुछ और जानकारी मिलती है.
ल्येव
निकोलायेविच ने (जैसे कि ‘आन्ना करेनिना’ में
लेविन ने) मंगेतर को अपनी युवावस्था की डायरियाँ दीं. उनमें उसने उसके सभी
आकर्षणों, और पतन के बारे में पढ़ा और इन “भयानक” डायरियों पर
फूट-फूट कर रो पड़ी.
अन्य
विवरण भी थे,
जिन्हें लेविन की शादी
वाले वर्णन में पुनर्जीवित किया गया है.
जैसे
ता.अ. कुज़्मिन्स्काया याद करती हैं: “23 सितम्बर का दिन आया. सुबह, अचानक,
अप्रत्याशित रूप से
ल्येव निकोलायेविच प्रकट हुआ. वह सीधा हमारे कमरे में आया. लीज़ा घर में नहीं थी, और मैं,
उससे ‘नमस्ते’
करके ऊपर चली गई. कुछ
समय बाद, मम्मा को देखकर, मैंने
उससे कहा, कि ल्येव निकोलायेविच हमारे कमरे में बैठे हैं. उसे
बहुत आश्चर्य और अप्रसन्नता हुई : शादी वाले दिन दूल्हे को दुल्हन के घर नहीं आना
चाहिए. मम्मा नीचे गई और उसने उन दोनों को गमलों के, सूटकेसों
के और बिखरी हुई चीज़ों के बीच में देखा. सोन्या आँसुओं में डूबी थी. मम्मा ने ये
जानने की कोशिश्स नहीं की,
कि सोन्या क्यों रो रही
है; वह ल्येव निकोलायेविच के साथ कडाई से पेश आई, कि वह शादी वाले दिन यहाँ क्यों आया, और इस बात पर अडी रही, कि वह
फौरन निकल जाए,
जो उसने किया. सोन्या ने
मुझे बताया, कि वह पूरी रात नहीं सोया था, कि वह संदेहों के कारण दुखी हो रहा था. वह उससे ये
जानने की कोशिश कर रहा था,
कि क्या वह वाकई में
उससे प्यार करती है,
हो सकता है, कि पलिवानव के साथ (जो दुर्भाग्य से ठीक इसी समय
मॉस्को आया था) विगत की यादें उसे परेशान कर रही हों, कि अलग
हो जाना ज़्यादा ईमानदारी का काम होगा और ज़्यादा अच्छा होगा. और सोन्या ने उसे कितना
ही यकीन दिलाने की कोशिश की,
मगर वह यकीन नहीं दिला
पाई...”
ये
विवरण हमें “आन्ना कारेनिना” से परिचित दृश्यों की याद दिलाते हैं. समानता इतनी
दूर तक गई है,
कि समारोह की कमीज़ का
इतिहास भी, जिसके कारण शादी में डेढ़ घंटे की देर हुई थी, लगता है,
कि सचमुच में घटित हुआ
था. प्रसिद्ध अंग्रेज़ी आलोचक नैथ्यू आर्नाल्ड
ने, याद आता है, कि
अविश्वास दिखाते हुए कहा था,
कि लेखक को इस दृश्य की
ज़रूरत क्यों पड़ गई : वास्तव में हो सकता है कि वह हुई हो, या न हुई हो. मगर टॉल्स्टॉय को, लेविन की शादी में अपने जीवन की घटनाओं को पुनर्जीवित
करते हुए, ज़ाहिर है,
इस छोटी सी घटना को
छोड़ना बुरा लग रहा था,
जिसने उस समय उसे इतना
परेशान और बदहवास कर दिया था.
फिर
भी, कीटी और लेविन के संबंधों को टॉल्स्टॉय की प्रेम कहानी
की पुनरावृत्ति नहीं कहा जा सकता. ये सही है, कि एक रूसी
आलोचक (ग्रमेको) ने लेविन को टॉल्स्टॉय का प्रतिरूप बताते हुए “आन्ना कारेनिना” का
अपना विश्लेषण प्रस्तुत किया है. मगर ल्येव टॉल्स्टॉय ने न केवल विरोध नहीं किया, बल्कि युवा आलोचक की किताब को उपन्यास का सर्वोत्तम विश्लेषण
बताया. मगर लेविन में टॉल्स्टॉय की विद्वत्ता नहीं है और उस लिहाज़ से – स्वीकार करना
होगा – वह काफ़ी
असहनीय है.
और
कीटी के रूप में सोफ्या अन्द्रेयेव्ना का चित्र, टॉल्स्टॉय
की आदत के अनुसार,
पितृसत्ताक कुलीन परिवार
की शानदार प्राचीन फ्रेम में काफ़ी ज़्यादा सजाया गया है, और आम तौर
से, हो सकता टॉल्स्टॉय ने वास्तविकता के बजाय अपनी उस समय की
आदर्श पत्नी की कल्पना को प्रस्तुत किया हो. दोनों जोडों के परस्पर संबंध भी बिल्कुल
भिन्न हैं: अमीर कुलीन राजकुमारी शेर्बात्स्काया, कन्स्तान्तिन
लेविन से शादी करने का फ़ैसला सिर्फ दिल की आवाज़ पर ही ले सकती है. मगर डॉक्टर बेर्स
की बेटी और प्रसिद्ध,
पूरी तरह प्रस्थापित लेखक, काउन्ट ल्येव टॉल्स्टॉय के बीच संबंध काफ़ी उलझे हुए और
क्लिष्ट थे.
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