अध्याय 5
परिवार
1
28
जून 1863 को सोफ्या अन्द्रेयेव्ना ने पहले बच्चे को जन्म दिया. प्रसूति बहुत मुश्किल थी, मगर ठीकठाक हो गई. बच्चे का नाम रखा गया सिर्गेइ. पहले
बच्चे के आगमन के समय की अपनी पीड़ा का वर्णन “आन्ना करेनिना” (भाग 7, अध्याय 13-16) में किया है, अंतर
सिर्फ परिस्थिति का था. प्रसूति गाँव में हुई, मगर
समय रहते तूला से डॉक्टर और मिडवाइफ़ को बुलाना संभव हो सका. यास्नाया पल्याना में
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना की माँ और उसकी बहन आई थीं.
प्रसूति
के फ़ौरन बाद टॉल्स्टॉय दम्पत्ति को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पडा. ल्येव
निकोलायेविच की कल्पना में माँ को सिर्फ बच्चे को दूध ही नहीं पिलाना है, बल्कि पूरी तरह से, बिना
किसी बाहरी मदद के,
उसकी देखभाल करनी है.
मगर सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना की तबियत ठीक से सुधर नहीं रही थी, बच्चा बहुत चुलबुला था और उसे दूध भी ठीक से नहीं
पिलाया जा रहा था. सास ने देखा,
कि “लेवच्का अजीब तरह से
बर्ताव कर रहा है”,
उसने सलाह दी कि युवा
माँ की मदद करने की दृष्टि से बच्चे के लिए नर्स रखी जाए और, माँ की बीमारी को देखते हुए, उसने दूध पिलाने वाली नर्स की भी मांग की. युवा माँ की
तबियत बिगड़ती जा रही थी और वह अधिकाधिक परेशान और चिड़चिड़ी होती जा रही थी. जो
डॉक्टर आया था,
उसने उसके दूध पिलाने पर
रोक लगा दी. बूढ़े बेर्स ने लिखा: “अपनी बेचैन बहन पर लगातार ध्यान रखो, तान्या,
उसे जितना हो सके डांटो, कि वह बेवकूफ़ी कर रही है और ख़ुदा को गुस्सा दिला रही है, और लेवच्का को, जो हाथ
लगे उसीसे मारो,
जिससे थोड़ा होशियार बने.
बोलने और लिखने में तो वो उस्ताद है,
मगर प्रत्यक्ष में वो
बात नहीं है. उसे ऐसी कहानी लिखने दो,
जिसमें पति अपनी बीमार
बीबी को सताता है और चाहता है,
कि वह अपने बच्चे को
स्तनपान कराती रहे;
सारी औरतें उसे पत्थरों
से मारेंगी. उसे अच्छी तरह देखो,
मांग करो कि वह अपनी बीबी
को पूरी तरह तसल्ली दे...”
इस
सबका असर टॉल्स्टॉय पर बहुत बुरा हुआ. बीमार बीबी के नखरे उसे चिड़चिड़ा बनाते. उसे
डॉक्टरों पर और आसपास के लोगों पर विश्वास नहीं था. मगर हार माननी ही पड़ी : बच्चों
के कमरे में नर्स और दूध पिलाने वाली प्रकट हुईं. ल्येव निकोलायेविच इस कमरे से
बचने की कोशिश करता;
अगर कभी उसकी देहलीज़ पार
करना ही पडे,
तो उसके चेहरे पर “बेहद
अप्रसन्नता” दिखाई देती.ख़ैर,
वह थोड़ा सा तो शांत हो
गया : दूध पिलाने वाली नर्स बीमार हो गई और बच्चे को शंकु से दूध पिलाने लगे.
“मुझे
याद है,” कुज़्मिन्स्काया लिखती हैं, “कैसे
मैंने एक दिन अकेले ल्येव निकोलायेविच को बच्चों के कमरे में देखा. चिल्लाते हुए
बच्चे को शांत करने के लिए,
वह बेहद थरथरते हाथ से
उसके नन्हे से मुँह में शंकु घुसा रहा था, दूसरे
हाथ से उसमें दूध डालते हुए...”
ये
पारिवारिक मतभेद और अप्रियताएँ बहुत जल्दी ख़तम हो गईं: टॉल्स्टॉय की अप्रसन्नता की, असल में,
कोई वजह ही नहीं थी.
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना बच्चों से बेहद प्यार करने वाली माँ साबित हुई.
पच्चीस
सालों में (1863 – 1888) उसने तेरह बच्चों को जन्म दिया. उनमें से तीन छुटपन में
ही गुज़र गए, दो 5-7 वर्ष की आयु तक जिये, मगर बाकी बच्चों को उसने बड़ा किया. लगभग सभी को उसीने
स्तन-पान कराया. दूसरी लड़की (मारिया) के जन्म के बाद लगभग मृत्यु शैया पर पड़े हुए, उसे दूध पिलाने वाली नर्स को रखने की अनुमति देनी पड़ी.
अपने बालक को अनजान औरत की छाती से चिपटा देखकर, वह बेहद
परेशान हो गई और ईर्ष्या से फूटफूट कर रो पड़ी. ल्येव निकोलायेविच को यह ईर्ष्या
स्वाभाविक प्रतीत हुई और वह अपनी बीबी के बच्चों के प्रति प्यार की सराहना करता
है.
बच्चों
के लालन-पालन के कारण टॉल्स्टॉय परिवार में काफ़ी समय तक कोई गंभीर समस्याएँ नहीं
उत्पन्न हुईं. हाँ,
मतभेद ज़रूर थे. मगर
सोफ्या अन्द्रेयेव्ना हर बात में पीछे हट जाती, और
ल्येव निकोलायेविच की अपनी ही तरह की मांगें ज़्यादा देर तक निर्णायक और आवेशयुक्त
न रह पातीं. एक बार बच्चों के कमरे में नर्स की उपस्थिति से उसे गुस्सा आ गया.
जल्दी ही उसे इसकी आदत हो गई. बाद में (सन् 1866 में), तूला
में राजकुमार ल्वोव से परिचय होने के बाद, वह उस
व्यवस्था से विभोर हो गया,
जो अंग्रेज़ी नर्स ने
राजकुमार के बच्चों के कमरे में रखी थी. तय किया गया, कि
इंग्लैण्ड से उसकी छोटी बहन को बुलाया जाए. और जल्दी ही यास्नाया पल्याना में जवान
और जोशीली हान्ना टेर्सी प्रकट हो गई,
और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना
को जेब में शब्दकोष रखना,
और अंग्रेज़ी में बोलना
सीखना पड़ा. ल्येव निकोलायेविच बच्चों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सादगी की मांग
करता था: लड़का मोटी लिनन की कमीज़ और लड़की फलालैन के ढीलेढाले ब्लाउज़ में घूमती थी.
किसी भी तरह के खिलौने नहीं दिये जाते थे. मगर जब उसे ख़ुद मॉस्को जाकर बच्चों के
बिछौने के लिए चादर खरीदना पड़ता,
तो वह हमेशा अव्वल दर्जे
का कपड़ा खरीदता था – महीन और महंगा.
अंग्रेज़
गवर्नेस ने फ़ौरन अपने ढंग से,
कुशलतापूर्वक, जोश से,
और, हालाँकि,
चालाकी से ही सही, मगर बच्चों की ज़िंदगी में स्वच्छता और ख़ूबसूरती का
ख़याल रखते हुए व्यवस्था संभाल ली. उसने चुपचाप बच्चों के बेडौल कपड़े काट-छाट करके
सुधार दिए, वह ग़ज़ब की सफ़ाई रखती थी, बड़ी
ऊर्जा से जो भी चीज़ उसके हाथ लगती उसे धोती, साफ़
करती और बच्चों को विभिन्न प्रकार के खेल भी सिखाती. ल्येव
निकोलायेविच की नज़रों से इस तरह के प्रयोग के ख़ूबसूरत परिणाम छुपे नहीं रह सके और
वह आसानी से अपनी अपेक्षाओं के बारे में भूल गया.
बच्चों
से (ख़ासकर छोटी बेटी से) वह बेहद प्यार करता था, मगर चूमना, सहलाना और नज़ाकत दिखाना उससे बर्दाश्त नहीं होता था.
मगर, नवजात शिशुओं से वह ठीक ठाक दूरी बनाए रखता था.
“मैं
क्यों इस ज़िंदा पंछी को हाथों में नहीं पकड़ सकता,” वह
कहता, “मुझे कंपकंपी जैसा कुछ होने लगता है, इतना डरता हूँ मैं नन्हे बच्चों को हाथों में लेने
से...”
शादी
के दस साल बाद टॉल्स्टॉय दम्पत्ति को छह संतानें हो चुकी थीं. अपने मित्र (काउन्ट
ए.ए. टॉल्स्टॉय) को लिखे पत्र में वह इस तरह उनका उल्लेख करता है:
“बड़ा
सुनहरे बालों वाला,
ख़ूबसूरत है; चेहरे के भावों में कुछ कमज़ोर-सा और धैर्य जैसा प्रतीत
होता है, और बेहद नम्र है. जब वह हंसता है, तो असर नहीं डालता, मगर जब
रोता है, तो मैं मुश्किल से अपने आप को रोक पाता हूँ, जिससे रो न पडूं. सब कहते हैं, कि वह मेरे बड़े भाई जैसा है. मैं यकीन करने से डरता
हूँ. ये बहुत अच्छा होता...सिर्योझा अक्लमन्द है – गणितज्ञ जैसी बुद्धि – और कला
के प्रति संवेदनशील,
पढ़ाई में अच्छा है, कूदने-फांदने में फुर्तीला है; मगर कुछ बेढब और खोया-खोया सा है. मौलिकता बहुत कम है; वह अपने स्वास्थ्य पर निर्भर रहता है. जब वह तंदुरुस्त
हो, और जब बीमार हो, तो दो
अलग-अलग तरह के बच्चे नज़र आते हैं.
ईल्या, दूसरा,
कभी भी बीमार नहीं होता; चौड़ी हड्डी का, सुनहरे
बाल, चेहरे पर लाली, दमकता
हुआ. पढ़ाई में ख़ास नहीं है. हमेशा उसी बात के बारे में सोचता है, जिसके बारे में सोचने से मना किया जाता है; खेलों का आविष्कार खुद ही करता है. साफ़-सुथरा, मितव्ययी है; “मेरा”
– उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है. गरम दिमाग का और लडाकू, फ़ौरन
लड़ने को तैयार;
मगर बहुत कोमल और
संवेदनशील है. भावुक है – खाना और चैन से पड़े रहना अच्छा लगता है...हर बात में
मौलिकता है. और जब रोता है,
तो गुस्से में आ जाता है
और बुरा लगता है,
मगर जब हँसता है, तो सभी हँसते हैं. हर प्रतिबंधित चीज़ का उसे आकर्षण है, और वह फ़ौरन पता कर लेता है...गर्मियों में हम तैरने के
लिए गए थे; सिर्योझा घोड़े पर, और
ईल्या को मैंने अपने साथ काठी में बिठाया था. सुबह बाहर आता हूँ – दोनों इंतज़ार कर
रहे हैं. ईल्या टोपी पहने,
ठीक से चादर लिये, साफ़ सुथरा,
दमक रहा है. सिर्योझा
कहीं से भागता हुआ आया,
सांस फूल रही थी, बिना टोपी के. “टोपी पहनो, नहीं
तो मैं नहीं ले जाऊँगा.” सिर्योझा इधर-उधर भागता है, - टोपी
नहीं है. “कुछ नहीं हो सकता,
बिना टोपी के मैं तुझे
नहीं ले जाऊँगा – तेरे लिए – सबक है,
- तेरी हर चीज़ खो जाती है.
वह रोने-रोने को हो गया. मैं ईल्या के साथ निकल पड़ता हूँ और इंतज़ार करता हूँ –
क्या वह अफ़सोस ज़ाहिर करेगा. कुछ नहीं. वह दमक रहा है और घोड़े के बारे में बहस करता
है. बीबी ने सिर्योझा को रोते हुए देखा. वह टोपी ढूँढ़ती है – नहीं मिलती. उसने
अंदाज़ा लगाया,
कि उसका भाई, जो सुबह-सबेरे मछली पकड़ने गया था, उसने सिर्योझा की टोपी पहनी थी. वह मुझे चिट्ठी लिखती
है, कि टोपी खोने में सिर्योझा का, शायद,
कोई कुसूर नहीं है, और वह उसे कैप पहनाकर मेरे पास भेजती है (उसने अंदाज़
लगा लिया था). स्विमिंग-पूल के पुल पर तेज़ कदमों की आवाज़ सुनता हूँ, सिर्योझा दौड़ते हुए आता है (रास्ते में उसने चिट्ठी खो
दी है) और बिसूरने लगता है. और उसके साथ ही ईल्या भी रोने लगता है और मैं भी
थोड़ा-सा रोता हूँ.
तान्या
– 8 साल की. सब कहते हैं,कि वह सोन्या जैसी है, और मैं
इस पर यकीन करता हूँ,
हालाँकि ये अच्छा भी है, मगर यकीन इसलिए करता हूँ, क्योंकि
ये साफ़ ज़ाहिर होता है. अगर वह अदामोव की बड़ी बेटी होती, और
उससे छोटे कोई बच्चे नहीं होते,
तो वह बदनसीब लड़की होती.
छोटों के साथ घूमने में उसे बड़ी ख़ुशी होती है. ज़ाहिर है, कि उसे नन्हे से शरीर को छूने में, पकड़ने में प्रसन्नता होती है. उसका सपना, अब सोचा-समझा – कि उसके बच्चे हों... वह बहुत होशियार
नहीं है, बुद्धि से काम करना उसे पसंद नहीं है, मगर दिमाग़ अच्छा ही चलता है. वह एक ख़ूबसूरत औरत बनेगी, अगर ख़ुदा ने उसे शौहर बख़्शा तो. और मैं उसे बहुत बड़ा
इनाम दूँगा, जो उसे एक नई औरत में तब्दील करेगा.
चौथा
– ल्येव – बहुत अच्छा,
फुर्तीला, याददाश्त अच्छी है, शानदार
है. हर पोषाक उस पर फिट बैठती है,
जैसे उसीके लिए बनाई गई
हो. जो दूसरे करते हैं,
ये भी वो ही करता है, और हर चीज़ बेहद फुर्ती से और बढ़िया. अभी ज़्यादा समझदार
नहीं हुआ है.
पांचवी
– माशा, दो साल की,
इसीके जन्म के समय
सोन्या मरते-मरते बची थी. कमज़ोर,
बीमार सी बच्ची. दूध
जैसा सफ़ेद जिस्म,
घुंघराले, सुनहरे बाल; बड़ी-बड़ी, अजीब सी नीली आँखें, अजीब -
उनके गहरे, गंभीर भाव के कारण. बेहद होशियार, और ख़ूबसूरत नहीं है. ये – एक पहेली बनेगी, दुख उठाएगी, खोजती
रहेगी, कुछ भी नहीं पाएगी; मगर
निरंतर अप्राप्य की तलाश करती रहेगी.
छठा
– पीटर – भारी-भरकम,
विशाल. प्यारा बेबी, टोपी में,
कुहनियों को मोड़ता है, कहीं जाना चाहता है, और
पत्नी उत्साहयुक्त परेशानी से फ़ौरन उसे पकड़ती है; मगर
मैं कुछ भी नहीं समझता. जानता हूँ,
कि भौतिक निग्रह काफ़ी
है. मगर क्या वो है,
जिसके लिए निग्रह की
आवश्यकता होती है – नहीं जानता...”
बच्चे
बड़े हो रहे थे,
“किसी से न पूछते हुए और
किसी का इंतज़ार न करते हुए”. और सत्तर के दशक के आरंभ में टॉल्स्टॉय दम्पत्ति ने
अचानक उनके लालन-पालन के क्षेत्र में नई मांगों को महसूस किया. जर्मन-अंकल और
अंग्रेज़ आण्टी पर्याप्त प्रतीत नहीं हो रहे थे. ऐसा लग रहा था, कि जिस मशीन को आरंभिक वर्षों में शुरू किया था, वह रुक गई थी. बच्चों की अनकही मांगें नये स्तर पर
पहुँच गई थीं. टॉल्स्टॉय दम्पत्ति दुराहे पर खड़े थे : “जहाँ तक संभव हो”, वे शहर में स्थानांतरण करना नहीं चाहते थे, क्योंकि उनके लिए गाँव के एकांत को छोड़कर जाने का मतलब
- “अपनी और बच्चों की पूरी ज़िंदगी बर्बाद करना था.” भविष्य में भी गाँव में रहते
हुए योग्य शिक्षकों की सहायता से शिक्षा के सही पाठ्यक्रम के बारे में सोचना ज़रूरी
था. और ट्यूटरों,
गवर्नेसों और शिक्षकों
की खोज का अथक काम शुरू हो गया. ल्येव निकोलायेविच ने ये ज़िम्मेदारी पूरी तरह अपने
ऊपर ले ली. उसने इस संदर्भ में अपने मित्रों को पत्र लिखे, कई बार मॉस्को और तूला गया और बड़ी सावधानी से हर नये
व्यक्ति का चुनाव किया. जल्दी ही स्विस और फ्रान्सीसी ट्यूटरों, अंग्रेज़ गवर्नेसों, रूसी
शिक्षकों, संगीत शिक्षकों की एक पूरी टीम बन गई. बच्चों का समय पाठों
में बीतता, जो स्कूल की ही तरह टाइम-टेबल बनाकर आयोजित किए जाते
थे, और हर बच्चा एक शिक्षक से दूसरे शिक्षक के पास जाता
था.
माता-पिता
बच्चों की शिक्षा में बहुत सक्रिय भाग लेते थे. सोफ़्या अन्द्रेयेव्ना ख़ुद उन्हें
रूसी पढ़ना-लिखना,
फ्रांसीसी और जर्मन
भाषाएँ, नृत्य सिखाती थी. ल्येव निकोलायेविच गणित पढ़ाता था.
बाद में जब बड़े बेटे का ग्रीक भाषा की शिक्षा आरंभ करने का समय आया, और योग्य शिक्षक नहीं मिला, तो
टॉल्स्टॉय अपने सारे काम छोड़कर अपने हमेशा के उत्साह से ग्रीकों के पीछे पड़ गया. वर्णमाला
का भी ज्ञान न होते हुए,
उसने जल्दी से सारी
कठिनाइयों को पार कर लिया और छह सप्ताह बाद वह आराम से ज़ेनोफोन और होमर भी पढ़ने
लगा. पिता के पाठों के बारे में उसका बेटा ((ईल्या) याद करता है: “अंकगणित मुझे
पापा ख़ुद पढ़ाते थे. मैं पहले सुनता था,
कि वह सिर्योझा और
तान्या को कैसे पढ़ाया करते थे,
और इस विषय से मैं बहुत
डरता था, क्योंकि कभी-कभी सिर्योझा को कोई बात समझ में नहीं आती, और पापा उससे कहते, कि वो
जानबूझ कर समझना नहीं चाहता. तब सिर्योझा की आँखें अजीब सी हो जातीं, और वो रोने लगता. कभी-कभी मुझे भी कोई बात समझ में
नहीं आती, और वह मुझ पर भी गुस्सा हो जाते. पाठ के आरंभ में वह
बड़े सहृदय होते और मज़ाक भी करते,
मगर बाद में, जब कोई कठिनाई आती, वह
समझाना शुरू करते,
मगर मुझे डर लगता, और मैं कुछ भी न समझ पाता”.
शारीरिक
विकास, जिम्नास्टिक्स, और हर
तरह के अभ्यासों पर जो हिम्मत और आत्मनिर्भरता को बढ़ाते थे, विशेष ध्यान दिया जाता था. पिता ख़ुद ही बच्चों को
तैरना सिखाते थे,
शिकार पर जाते हुए और
लम्बी सैरों के दौरान घुड़सवारी का प्रशिक्षण देते, सर्दियों
में हमारे साथ तालाब पर और बर्फ की पहाड़ियों पर स्केटिंग रिंक बनाते, स्केटिंग करते और हर रोज़ दिन भर में किसी समय बच्चों
को पेडों के गलियारे में इकट्ठा करते,
जहाँ उनका ‘जिम’
था, और बारी बारी से सबको कठिन कसरत करने पर मजबूर करते –
पैरेलल्स पर,
ट्रेपेज़ी पर और रिंग्स
पर. कूद में,
दौड़ में, जिम्नास्टिक्स में ल्येव निकोलायेविच का मुकाबला कोई
नहीं कर सकता था और वो ये सब असाधारण दिलचस्पी से करते, जिससे
न केवल बच्चों,
बल्कि वहाँ उपस्थित सभी
को संक्रमित कर देते. वैसी ही दिलचस्पी वह क्रॉकेट और लॉन-टेनिस में भी दिखाते, जो यास्नाया पल्याना में फल फूल रहे थे. शाम को ल्येव
निकोलायेविच अपने चारों ओर बच्चों को इकट्ठा करते और उन्हें कुछ पढ़कर सुनाते.
ज्यूल-वेर्न के उपन्यास काफ़ी पसंद किये जाते. यदि किताबों में चित्र नहीं होते, तो टॉल्स्टॉय ख़ुद समय निकालकर यथोचित चित्र बनाते और
पढ़ते समय बच्चों को दिखाते.
मतलब, पारिवारिक जीवन के पहले पंद्रह सालों में टॉल्स्टॉय ने
बच्चों की शिक्षा पर काफ़ी मेहनत और विचार किया. वह उनकी ज़िंदगी में ढेर सारी हँसी
और ख़ुशी लाए. उन्हें सबमें जान डालना और निराशाजनक ‘मूड’ को दूर करना आता था. इसके लिए, अन्य बातों के अलावा, वह
अक्सर “न्युमिडिक घुडदौड़” खेलते. कभी-कभी
ऐसा होता, कि उकताऊ मेहमानों के जाने के बाद, बहस के बाद, बच्चों
के रोने-धोने के बाद,
ग़लतफ़हमियों के बाद सब
हॉल में बैठे हैं. सब गुमसुम हैं. और अचानक ल्येव निकोलायेविच झटके से अपनी कुर्सी
से उठता है, एक हाथ ऊपर उठाता है और, सिर के
ऊपर उसकी कलाई हिलाते हुए तीर की तरह उछलते हुए सरपट चाल से मेज़ के चारों ओर दौड़ता
है. सब उसके पीछे लपकते हैं,
उसकी पूरी-पूरी नकल करते
हुए. कमरे के चारों ओर कई बार चक्कर लगाकर और हांफ कर, सब
अपनी-अपनी जगह पर बैठ जाते हैं – एकदम दूसरे ‘मूड’ में,
सब ज़िंदादिल और ख़ुश हैं. बहस, उकताहट
और आँसुओं के बारे में भूल गए हैं.
बच्चों
की कल्पना में,
माँ घर में सबसे प्रमुख
थी, सब कुछ उसी पर निर्भर करता था. वह रसोइए को खाने के
बारे में निर्देश देती,
बच्चों को घूमने के लिए
छोड़ती, बच्चों की पोषाकें और उनके अंतर्वस्त्र सीती; वह हमेशा किसी न किसी नन्हे को सीने से चिपटाकर दूध
पिलाती और पूरे दिन तेज़-तेज़ कदमों से घर में भागती रहती. उसके साथ ज़िद कर सकते थे, हालाँकि कभी कभी वह गुस्सा करती और सज़ा भी देती थी.
पापा
के सामने ज़िद करना संभव नहीं था. जब वह सीधे आँखों में देखते, तो सब कुछ जान जाते, और
इसलिए उनसे झूठ बोलना असंभव था. और उनसे किसी ने भी, कभी भी
झूठ नहीं बोला. पापा ने कभी भी,
किसी को भी सज़ा नहीं दी
और बच्चों को कोई काम करने पर,
करीब-करीब कभी भी मजबूर
नहीं किया, और ऐसा लगता कि सब, जैसे
अपनी मर्ज़ी से और पहल से,
सब कुछ वैसा ही करते, जैसा वो चाहते थे.
“मम्मा
अक्सर हमें डाँटती और सज़ा देती थी,”
ईल्या ल्वोविच कहता है, “मगर पापा,
जब उन्हें कुछ करने के
लिए हमें मजबूर करना होता,
तो सिर्फ एकटक हमारी आँखों में देखते, और उनकी
नज़र समझ में आ जाती और किसी भी सज़ा से ज़्यादा प्रभाव डालती. ये है पापा और मम्मा की
शिक्षा में अंतर : कभी ऐसा होता,
कि किसी चीज़ के लिए बीस
के सिक्के की ज़रूरत पड़ती. अगर मम्मा के पास जाओ, तो वह
तफ़सील से पूछना शुरू करेगी,
कि किसलिए पैसे चाहिए, फ़ालतू में ढेर सारे ताने देगी और कभी कभी मना भी कर
देगी. अगर पापा के पास जाओ,
तो वह कुछ भी नहीं
पूछेंगे, - सिर्फ आँखों में देखेंगे और कहेंगे : “मेज़ से ले लो”.
और, चाहे इस बीस के सिक्के की कितनी ही ज़रूरत क्यों न हो, मैं उसके लिए पापा के पास कभी नहीं गया, बल्कि मम्मा से मांगना ही बेहतर समझता. पापा की महान
शक्ति, एक शिक्षक के रूप में, इसमें
निहित थी, कि उनसे कुछ भी छुपा नहीं सकते थे, जैसे अपनी अंतरात्मा से छुपाना असंभव होता है.
मगर
ये उनके प्रभाव डालने के अलग-अलग तरीके थे. शिक्षा के निकट उद्देश्यों के बारे में
पहले पंद्रह सालों तक मम्मा और पापा में कोई ख़ास मतभेद नहीं थे : उनके बच्चों का
पालन “सभी के जैसा”,
अर्थात उनके परिवेश के
सब बच्चों जैसा होना चाहिए था. सम्पन्न रूसी कुलीन परिवार की पितृसत्तात्मक परंपराएँ
यास्नाया पल्याना में दृढ़ता से जमी थीं, और
टॉल्स्टॉय परिवार के छोटे बच्चों की किशोरावस्था के वर्ष कई बातों में उनसे भी
ज़्यादा ख़ूबसूरत और सुखी थे,
जिनका, इतने जोश से “बचपन” और “किशोरावस्था” में ल्येव
निकोलायेविच ने वर्णन किया है. महान पिता अपने पूरे अस्तित्व से परिवार के जीवन
में ख़ुशनुमा बहादुरी,
प्यार और नर्म नाज़ुक
मानवीय भावनाएँ भरना चाहते थे. मगर शिक्षा के मामले में वह अपने विचारों, मान्यताओं,
अपने अनुभव को व्यवहारिक
रूप में स्वीकार करने पर ज़ोर नहीं देते थे. उस दूर-दराज़ के ज़माने में टॉल्स्टॉय
धर्म के प्रति उदासीन था. मगर फिर भी,
हर शाम और हर सुबह
बच्चों को पिता के लिए,
माँ के लिए, भाइयों के लिए, बहनों
के लिए और सभी आर्थोडॉक्स ईसाइयों के लिए प्रार्थना करना पड़ती थी. बड़े त्यौहारों
की पूर्व संध्या को एस्टेट में प्रीस्ट आकर पूरी रात सामूहिक प्रार्थना करवाता था.
‘द ग्रेट लेन्ट’ के
दौरान, पहले और अंतिम सप्ताह में पूरा परिवार उपवास रखता था.
टॉल्स्टॉय
ज़ोर-शोर से लोगों के लिए ‘मुक्त विद्यालय’ की
सिफारिश करता था. उसकी मान्यता थी,
कि बालक को सिर्फ वही
पढ़ना चाहिए, जिसमें उसकी दिलचस्पी हो. मगर उसके अपने बच्चे एक
शिक्षक से दूसरे शिक्षक के पास जाते और टाइम टेबल के अनुसार, समान मात्रा में वे ही विषय पढ़ते, जो शासकीय शिक्षा संस्थाओं के पाठ्यक्रम में दर्शाए
जाते थे. ये न्यूनतम था,
जिससे दूर नहीं हट सकते
थे; इन सीमाओं में अपनी पसंद से चुनाव करने की इजाज़त नहीं
थी.
टॉल्स्टॉय
की बड़ी बेटी (तात्याना ल्वोव्ना) कहती है : “ घर में कम से कम पाँच ट्यूटर्स और शिक्षक
रहते थे और इतने ही बाहर से पढ़ाने के लिए आते थे (जिनमें प्रीस्ट भी शामिल था). हम
पढ़ते थे – लड़के छह,
और मैं पांच भाषाएँ, संगीत,
ड्राइंग, इतिहास,
भूगोल, गणित और ख़ुदा के नियम.
सन्
1861 में टॉल्स्टॉय ने किसानों के बच्चों के बारे में लिखा : “कहना मुश्किल है, कि ये कैसे बच्चे हैं – उन्हें देखना चाहिए. हमारे
प्यारे स्तर के बच्चों में मैंने इस तरह की कोई बात नहीं देखी”. मगर, अपने बच्चों को उसने एक संकुचित दायरे में पढ़ाया, - उसी तरह से, जो
उसके “प्यारे स्तर” में अपनाया जाता था.
“हम असली “मालिकों” की तरह बड़े हुए,” उसका बेटा पुष्टि करता है, “अपनी ‘मालिकपन’ के गर्व में और बाहरी दुनिया से बिल्कुल अनजान रहे. वो सब, जो ‘हम’ नहीं था, हमसे नीचा था और इसलिए अनुकरणीय नहीं था. गाँव के बच्चों को भी हम तिरस्कार से ही देखते थे. मुझे उनमें दिलचस्पी तब होने लगी, जब उनसे कुछ बातें जानना शुरू किया, जिनके बारे में पहले नहीं जानता था, और जिनके बारे में जानने की मुझे इजाज़त नहीं थी. तब मैं करीब दस साल का था. हम गाँव गए थे बेंचों पर पहाड़ियों से स्केटिंग करने और हमने गाँव को बच्चों से दोस्ती कर ली, मगर पापा ने फ़ौरन हमारी दिलचस्पी को ताड लिया और उसे रोक दिया. तो, हम इस तरह बड़े हो रहे थे, चारों ओर से अंग्रेज़ी गवर्नेसों और शिक्षकों की पत्थरों की दीवार से घिरे हुए, और इस परिस्थिति में माँ-बाप के लिए हमारे हर कदम पर नज़र रखना और अपने हिसाब से हमारी ज़िंदगी को मोड़ना संभव था, ऊपर से, हमारी शिक्षा के प्रति उन दोनों का रवैया एक सा ही था और इसमें कोई भी मतभेद नहीं था”.
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