गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

Tolstoy and His Wife - 4.4




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टॉल्स्टॉय की उद्दाम, सक्रिय, बहुमुखी प्रकृति, बेशक, सिर्फ खेती-बाड़ी के काम से संतुष्ट नहीं रह सकती थी. स्कूल और शिक्षा के क्षेत्र से अपने लगाव से शांत होकर और मुक्ति पाकर, वह पूरे जोश से रचना कार्य में लग गया. अब वह स्वयम् को “किसी सेब के पेड़ की तरह समझ रहा था, जो धरती से टहनियों के रूप में निकल कर सभी दिशाओं में फैल गया हो, जिसे अब जीवन ने काट-छाट करके बांध कर सीधा खड़ा कर दिया हो, जिससे वह दूसरों के रास्ते में न आए और ख़ुद ही जड़ पकड़ कर एक तने के रूप में विकसित होने लगे”.

ये “तना” था - काव्यात्मक रचनात्मकता.

सन् 1861 के मध्य में ही टॉल्स्टॉय के मित्र (उदाहरण के लिए, कला आलोचक बोत्किन) सोच रहे थे, कि ल्येव निकोलायेविच “लिख नहीं सकते”, क्योंकि उनका दिमाग़ विचारों के किसी बवण्डर में फंसा है”; वे बेचैनी से उस पल का इंतज़ार कर रहे थे, जब “उसकी आत्मा किसी बात से कुछ शांत हो जाएगी”.

ये गलत था: टॉल्स्टॉय ने लिखना कभी भी बंद नहीं किया था. मगर जनता की ओर से वो उदासीन हो गया था. रचनात्मकता का झरना सूखा नहीं था और उसकी तूफ़ानी ज़िंदगी की ऊपरी सतह के नीचे हौले-हौले बह रहा था. टॉल्स्टॉय बस छपता नहीं था : इन वर्षो की रचनाओं की (कज़ाकी’, ‘पलिकूश्का’, ‘खोल्स्तोमेर’) बस आरंभिक रूपरेखा ही बन पाई थी. जैसे इन रचनाओं को पूरा करने के लिए उचित प्रकार का उत्साहवर्धन, आंतरिक शक्ति, प्रेरणा नहीं मिल पाई थी.

ये उत्साह उसे दिया सुखी प्यार और शादी ने. इस समय उसका जीवन केंद्रित था परिवार, पत्नी और बच्चों पर और फलस्वरूप जीवन-यापन के साधनों को बेहतर बनाने की चिंता पर. विवाह के बाद रचनात्मक गतिविधियों में हुई तेज़ी को “कन्फेशन्स”(1879) में वह इस तरह समझाता है. वह आगे लिखता है : “मैंने लेखन कार्य के सभी प्रलोभनों को चख लिया, छोटे से काम के लिए काफ़ी बड़े वित्तीय पुरस्कार और तालियों की गड़गड़ाहट के प्रलोभन को महसूस किया और उसके लिए स्वयम् को समर्पित कर दिया, अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के एक माध्यम के रूप में और अपने तथा सामान्य रूप में जीवन के अर्थ के बारे अपनी आत्मा में उठते हुए अनेक प्रश्नों का गला घोंटने के साधन के रूप में. मैं लिख रहा था, उसकी शिक्षा देते हुए, जो मेरे लिए एकमात्र सत्य था, कि जीना इस तरह चाहिए, जो अपने और परिवार के लिए काफ़ी बेहतर हो”.

ऐसी कठोर टिप्पणियाँ अपने पश्चात्ताप की सरलता में शायद ही उचित कहीं जाएँ. साहित्यिक कार्य के दौरान टॉल्स्टॉय ने उसे बड़ा महत्व दिया, उसके कारण तड़पते रहे और मानवता के सामने खड़े महान मानवतावादी प्रश्नों को लगभग कभी भी अनदेखा नहीं किया. मगर, बेशक, इस दौरान परिवार उन पर पूरी तरह हावी था, और पारिवारिक सुख, पारिवारिक मूल्य उसके महान उपन्यास (“युद्ध और शांति”) में प्रमुख स्थान ग्रहण करते हैं. उसकी युवा पत्नी पारिवारिक मूल्यों से परिपूर्ण है. मगर इसके अलावा उसे समृद्धि, प्रसिद्धि, कलात्मक रचनात्मकता भी पसंद है. और इसमें कोई संदेह नहीं, कि इन प्राथमिकताओं में उनकी राय बिल्कुल एक है. चौंतीस साल के प्रतिभाशाली टॉल्स्टॉय ने अठारह साल की पत्नी पर ज़बर्दस्त प्रभाव डाला था. और अगर वह जंगली तरह से बढ़ती हुई टहनियों से कटाई-छटाई किए गए, बांधे गए सेब के पेड़ में परिवर्तित हो गया था, तो ये बेशक, उसकी युवा पत्नी ने नहीं किया था. अपनी प्रिय महिला की मूल प्राथमिकताओं की ओर, बेशक, उसकी सहानुभूति है. मगर उसने ख़ुद ही (संवारी गई ज़िंदगी के रूप में) उस समय, इस कार्य में प्रसिद्धि और समृद्धि के अवसर को देखते हुए, भावुकता और जुनून से स्वयम् को कलात्मक रचनात्मकता को समर्पित कर दिया.

अब वह लालायित है लिखने के लिए और लोगों के लिए लिखना चाहता है. अभी कुछ ही समय पहले वह लिखता था और प्रकाशित नहीं करता था; अब वह अपनी भावी रचना को पहले ही बेचना चाहता है. शादी से कोई डेढ़ महीने बाद उसके दिल में उपन्यास लिखने की इच्छा हुई. इस बारे में वह पत्रिका “रूस्की वेस्त्निक” (रूसी हेराल्ड – अनु.) के सम्पादक कत्कोव को सूचित करता है और बेसब्री से उसके जवाब का इंतज़ार करता है : “ये जवाब इस कार्य के लिए निर्णायक होने वाला है”.
पता नहीं, कि कत्कोव ने क्या जवाब दिया. हो सकता है उसने उस पेशगी की याद दिलाई, जो “कज़ाकी” पूरा करके चुकानी थी. कम से कम, पूर्व नियोजित उपन्यास के स्थान पर टॉल्स्टॉय फ़ौरन इस लघु उपन्यास को पूरा करने में जुट गया, जिसे वह सन् 1852 से लिख रहा था. 19 दिसम्बर 1862 को वह उसे कत्कोव को दे देता है. “कज़ाकी” पूरा करने के बाद टॉल्स्टॉय ने लघु उपन्यास “पलिकूश्का” पूरा करके उसका विमोचन भी कर दिया. लिखने की इच्छा इतनी तीव्र थी, कि यास्नाया पल्याना में आये हुए नौजवानों के आग्रह पर उसने तीन दिनों में “निहिलिस्ट” नाटक पूरा कर लिया, जिसके घरेलू-थियेटर के शोमें सोफ्या अन्द्रेयेव्ना, उसकी बहन तानेच्का और अन्य रिश्तेदारों ने हिस्सा लिया. वह प्रहसन - “संक्रमित परिवार” (“निहिलिस्टों” के ही विषय पर) लिखता है, उसे मॉस्को ले जाता है, और नाटकों के उसी मौसम में उसे इम्पीरियल थियेटर में प्रस्तुत करने के लिए बेताब है. आख़िरकार सन् 1863 की पतझड में वह “सन् 1820-1830 के कालखण्ड पर आधारित उपन्यास” में पूरी तरह व्यस्त हो जाता है. इस संदर्भ में वह काउन्टेस ए.ए.टॉल्स्टाया को सूचित करता है : “अब मैं पूरी आत्मा से लेखक हूँ और सोचता रहता हूँ, जैसा मैं कभी भी लिखता और सोचता नहीं था”. बात हो रही है “डिसेम्ब्रिस्ट्स” (डिसेम्बर क्रांतिकारी – अनु. ) के बारे में.                                                      

टॉल्स्टॉय को 14 दिसम्बर 1825 की फ़ौजी क्रांति के इतिहास की ओर किसने धकेला? हो सकता है, लेखक के हाथ कुछ संस्मरण लगे हों; परिवार में कुछ किंवदंतियाँ सहेज कर रखी हों, क्योंकि दिसम्बर क्रांतिकारी राजकुमार सिर्गेइ ग्रिगोरेविच वल्कोन्स्की ल्येव निकोलायेविच के दूर के मामा लगते थे. मगर इस विषय पर आने के बाद 19वीं सदी की इस सामाजिक क्रांति के कारणों पर विचार करना आवश्यक था. दिसम्बर क्रांतिकारी उसे काफ़ी फ्रेंचप्रतीत हुए. इस तरह वह नेपोलियन के युद्धों के काल खण्ड तक पहुंचा, और इस समय की घटनाओं से उन दो परिवारों की काफ़ी सजीव यादें जुडी हुई हैं, जिनसे उसका संबंध था – राजकुमार वल्कोन्स्की और काउन्ट टॉल्स्टॉय के परिवार.
बचपन में ल्येव निकोलायेविच के इर्द गिर्द जो लोग रहते थे, उनमें कई सारे लोग फ्रांसीसी आक्रमण के गवाह थे : दादी, ख़ुद पिता, बुआएँ, नौकर-चाकर. बाद में, पचास के दशक में, उसकी अपनी दूर की मौसी, राजकुमारी वल्कोन्स्काया से मुलाकात हुई, जो युवावस्था में काफ़ी समय जनरल-इन-चीफ राजकुमार वल्कोन्स्की और उसकी शर्मीली बेटी मारिया के साथ यास्नाया पल्याना में रही थी. अपने रिश्तेदारों के पत्र और उनकी डायरियाँ पढ़ते हुए ल्येव निकोलायेविच आत्मीय पारिवारिक यादों से सराबोर हो गया. मगर साथ ही वह फिर से युद्ध के प्रश्न से टकराया, जिस पर पहले उसने काफ़ी ध्यान दिया था, शक्ति खर्च की थी. इस तरह महान लेखक धीरे-धीरे रूस के नैपोलियन से युद्ध के इतिहास से संबंधित पूर्व नियोजित विषय से दूर हटता गया. हो सकता है कि दिसम्बर-क्रांति के इतिहास से संबंधित सामग्री पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने के कारण ( अभिलेखागार प्रतिबंधित थे) उसे फिलहाल पहले शुरू की गई योजनाओं को रोक देना पड़ा. इस तरह से शानदार महान रचना “युद्ध और शांति” का जन्म हुआ. इसने टॉल्स्टॉय के असाधारण, अत्यधिक तनावपूर्ण, अक्सर कष्टदायक काम के पांच साल (1864 – 1868) ले लिए. अनेक बार वह निराश हो जाता और उसे छोड़ देने का विचार करता. सफ़लतापूर्वक पूर्ण होने पर उसने टॉल्स्टॉय को प्रसिद्धि और धन दिया. हो सकता है, कि एक भी रूसी साहित्यिक रचना ने सार्वभौमिक महत्व के इतने सारे प्रश्नों को न छुआ हो. मगर इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि “युद्ध और शांति” में देशभक्ति, परिवार, ज़मींदारों के जीवन और “औसत सामान्य ज्ञान” का गुणगान किया गया है. अपने वैवाहिक जीवन के आरंभिक वर्षों में टॉल्स्टॉय इन आदर्शों से परिपूर्ण था, जो उसे बाद के वर्षों की अपनी खोज में अपरिचित और शत्रुतापूर्ण प्रतीत होते हैं. और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना भी उसके उस समय के विचारों और प्राथमिकताओं से सहमत थी. ये, निःसंदेह, उनके सामान्य आदर्श थे.

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