शनिवार, 7 अप्रैल 2018

Tolstoy and His Wife - 4.2




2.



बेशक, इस जोडे के लिए भी, विवाह के फ़रिश्ते ने सिर्फ गुलाब ही नहीं बिछाए थे. अपने-अपने मूड्स थे. झगड़े थे. एक दूसरे को समझ नहीं पाते थे. और सिर्फ जवान पत्नी ही नहीं रोती थी. चौंतीस साल का टॉल्स्टॉय भी रोता था, दुख से ये सोचते हुए, कि उनके यहाँ भी – “सब वैसा ही है, जैसा औरों के यहाँ होता है”. वह इन “बेवजह” की खरोंचों से घबराता था, जो पत्नी के प्रति उसकी भावनाओं का अपमान करती थीं और, शायद, उनके सुख के नाज़ुक वस्त्र पर भद्दे निशान छोड़ जाती थीं. उस समय भी वह, “आन्ना कारेनिना” में लेविन के समान, हार मानना, इंतज़ार करना, अपनी बात सही साबित करने की इच्छा को दबाना सीख गया था...किसलिए? अजीब लगता था अपने आप पर गुस्सा करना, - आख़िर वे, उसे लगता था कि हमेशा के लिए एक ही व्यक्ति(प्राणी) हो चुके हैं...

उसकी गर्भावस्था के दौरान ये मनमुटाव और लड़ाई-झगड़े कुछ ज़्यादा ही होते थे. इन बढ़ते हुए पारिवारिक मनमुटावों की जड में जो ख़ास शारीरिक वजह थी,  उसे अपनी असाधारण अंतर्दृष्टि के बावजूद, वह काफ़ी समय तक समझ नहीं पाया. बाद में “क्रोइज़र सॉनेट” में उसने इस प्रश्न पर निर्मम यथार्थवाद से विचार किया. शादी के आरंभिक वर्षों में वह हर बात में अपनी जवान बीबी पर दोषारोपण करने के लिए तैयार था...

मगर ये सब गर्म नीले आसमान में हल्के छितरे बादलों के समान पिघल गया.

मगर ईर्ष्या के अक्सर पड़ने वाले दौरे उनके सुख के लिए अधिकाधिक ख़तरनाक होते जा रहे थे. वे दोनों ही ईर्ष्या करते थे. बिना किसी कारण के और इतनी अजीब सी तल्खी से ईर्ष्या करते थे, जिसे सिर्फ उनके स्वभाव की जुनूनियत ही समझा सकती थी. ईर्ष्या के ये विस्फोट उन्हें अंधा बना रहे थे, एक दूसरे के प्रति अन्यायपूर्ण बना रहे थे, गहरा दुख पहुँचा रहे थे.                           

इस तरह के झगड़े बहुत जल्दी शुरू हो गए. काउन्टेस अलेक्सान्द्रा टॉल्स्टॉया को ख़त लिखना था और उसे अपना परिचय देना था – फिलहाल ख़त के ज़रिये. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना का मन नहीं था. उसे ईर्ष्या हो रही थी. पहली अक्टूबर को ल्येव निकोलायेविच अपनी डायरी में लिखते हैं: “वह राजमहल की बुआओं को लिखना नहीं चाहती – बस सोचती रहती है”. सिर्फ चार दिन बाद ही उसे मनाना संभव होता है. मगर उसका ठण्डा, किसी स्कूली बच्चे जैसा, आदरयुक्त, फ्रेंच में लिखा हुआ ख़त – टॉल्स्टॉय के मन में दुख और चिड़चिड़ाहट पैदा करता है.

मॉस्को में लोगों से मिलना होता है. वह विरोध करती है. ख़ास तौर से राजकुमारी ए.ए. अबलोन्स्काया के यहाँ जाना अच्छा नहीं लगता, जिसकी ओर टॉल्स्टॉय कभी आकर्षित हुए थे. फिर भी, वे जाते हैं, और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना, जिसका हर तरफ़ प्यार और गर्मजोशी से स्वागत होता है, अपनी डायरी में कटु शब्द लिखने से स्वयम् को न रोक सकी: “हम राजकुमारी ए.ए.अबलोन्स्काया, एम.ए.सुखातीनाया और ए.ए. झेम्चुझ्निकोवा के यहाँ भी गए. पहली दो बहनों ने अपने पुराने प्रशंसक और मेहमान ल्येव टॉल्स्टॉय की जवान और बेवकूफ़ बीबी के प्रति काफ़ी उदासीनता दिखाई”.

जब वह शाम को अकेला ही कहीं चला जाता, तो वह शांति से नियत समय तक इंतज़ार करती. थोड़ी सी भी देर उसे आपे से बाहर कर देती. जलन भरे जुमलों का अंत ही नहीं था. उनमें अक्सर ज़िक्र होता टॉल्स्टॉय के उसी पुराने आकर्षण – राजकुमारी ए.ए.अबलोन्स्काया का. एक बार वह अक्साकोव के घर गया, जहाँ डिसेम्बर क्रांतिकारी ज़वालीशिन से मिला (उस समय टॉल्स्टॉय डिसेम्बर क्रांतिकारियों के कालखण्ड पर उपन्यास लिखने की तैयारी कर रहे थे). वह बातों में खो गया और 12 बजे के बदले डेढ़ बजे घर वापस लौटा. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना जलन से अधमरी हो रही थी और उसने आँसुओं की अविरत धार से उसका स्वागत किया...

ऐसा लग सकता है, कि गाँव के उस एकांत में उसे ईर्ष्या करने के लिए कोई मिला ही नहीं. मगर उसकी ममेरी बहन ओल्गा इस्लेन्येवा ने, जो यास्नाया पल्याना आई थी, ल्येव निकोलायेविच के साथ पियानो बजाते हुए संगीत के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखाई, और सोफ्या अन्द्रेयेव्ना को उससे जलन होने लगी, वह उससे नफ़रत करने लगी... पति की मृत्य के बाद उसने वी.एफ. बुल्गाकोव को बताया, कि कैसे वह आरंभिक वर्षों में स्थानीय किसान कन्याओं को लेकर टॉल्स्टॉय से ईर्ष्या करती थी. उसने ये भी बताया, कि वह किसानों जैसी पोषाक पहन लेती और घंटों पार्क और निकट के वन में घूमती रहती, ये सोचकर कि टॉल्स्टोय उसे अपनी प्रियतमा समझकर नाम से बुलायेगा, जिसे जानने की वह इतनी कोशिश कर रही थी...

पति को और भी ज़्यादा ईर्ष्या होती थी. जनवरी 1863 में पलिवानव की मॉस्को में उपस्थिति उसे “पसंद नहीं है”, हालाँकि वह “उससे अच्छी तरह पेश आने” की कोशिश करता है. अपनी डायरी में वह लिखता है : “वह ईर्ष्या के बारे में बात करती है : इज़्ज़त करना चाहिए’, “आत्म विश्वासइत्यादि, और ये – सिर्फ जुमले हैं, मगर डर लगता रहता है, लगता रहता है...”

उसे यास्नाया पल्याना के शिक्षक से जलन होती है या यूँ कह लीजिए, कि करीब-करीब हर अनजान नौजवान मेहमान से ईर्ष्या होती है.

“अभी हाल ही में,” सोफ्या अन्द्रेयेव्ना बहन को बता रही थी, “चाय पीते हुए हम किसी बात पर एर्लेन्वेयन से गर्मजोशी से बहस कर रहे थे, याद नहीं किस बारे में – कोई ख़ास ज़रूरी बात नहीं थी, बस, वह मुझसे खार खाने लगा.

“क्या, शिक्षक से? , गॉड! इसकी मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी! वे तो काफ़ी संजीदा किस्म के होते हैं.

मुझे फ़ौरन तो उसकी जलन समझ में नहीं आई, समझ नहीं पाई और मैंने अपने आप से पूछा: ये मुझसे खार क्यों खाता है? अचानक मेरे प्रति ठण्डा क्यों हो गया है? और मैं रो रही थी और मुझे जवाब नहीं मिला...”

टॉल्स्टॉय की डायरी में ये छोटा सा प्रसंग असाधारण रूप से बड़ा हो जाता है. ल्येव निकोलायेविच को दुख होता है, अपने विवाहित जीवन को वह कठघरे में खड़ा करता है, निष्पक्ष होने की कोशिश करता है. पत्नी से मुख़ातिब होते हुए वह कहता है : “मैं तुम्हें अनचाहे ही किसी तरह अपमानित करने का मौका ढूंढ़ता हूँ. ये ओछापन है और गुज़र जाएगा, मगर गुस्सा न करो : तुमसे प्यार न करूं, ये मुझसे नहीं होगा...” “आज उसे ख़ुशी से एर्लेन्वेयन से बतियाते और अपनी ओर उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश ने मुझे अचानक सत्य और शक्ति की पहले वाली ऊँचाई पर पहुँचा दिया. इसे समझना चाहिए और कहना चाहिए : हाँ, जानता हूँ – ईर्ष्या! और ऊपर से मुझे सांत्वना देना और कुछ और करना, जिससे मुझे सांत्वना मिले, ताकि मुझे फिर से जीवन के उसी घिनौने वातावरण में धकेल दिया जाए जिससे मैं युवावस्था से नफ़रत करता आया हूँ. और ये ज़िंदगी मैं नौ महीनों से जी रहा हूँ. भयानक! मैं जुआरी और शराबी. मैं घर-गृहस्थी में डूबा हुआ हूँ और मैंने नौ महीने नष्ट कर दिये, जो बेहतर हो सकते थे, मगर जिन्हें मैंने ज़िंदगी के सबसे बुरे महीने बना दिया. मुझे क्या चाहिए? सुख से जीना, मतलब उसका और स्वयम् का भी प्यार पाना, मगर इस दौर के लिए मैं अपने आप से नफ़रत करता हूँ... ये ख़याल कि उसे कोई दूसरा – और वो भी सबसे निकृष्ट आदमी – अच्छा लग सकता है – मुझे समझ में आता है और मुझे ये अन्यायपूर्ण नहीं लगना चाहिए, चाहे कितना ही असहनीय क्यों न हो, - क्योंकि इन नौ महीनों में मैं सबसे निकृष्ट, कमज़ोर, अविचारी और नीच इन्सान बन गया हूँ...”

बेकार की बातों से कितना तांडव! ये शोले जैसा व्यक्तित्व कितना उफ़नता है, खदखदाता है, उत्तेजित हो जाता है! वह अपने आप को, और अपने सुख को बद्दुआ देने के लिए तैयार है उन कुछ ज़िंदादिल लब्ज़ों की ख़ातिर, जो उसकी बीबी द्वारा शिक्षक से कहे गए थे!...                             
“आन्ना कारेनिना” में टॉल्स्टॉय ने ईर्ष्या का जिस हास्य-शोकात्मक दृश्य में वर्णन किया है वो भी समझ में आता है. सोफ्या अन्द्रेयेव्ना की बहन ने उस घटना का वर्णन इस प्रकार किया है:
“एक बार यास्नाया पल्याना में हम सब का परिचित नौजवान आदमी – पीसरेव, आया. बेहद मिलनसार, प्यारा, मगर अति साधारण. हमारे यहाँ वह कभी-कभार आता था. सोन्या, समोवार के पास बैठकर प्यालों में चाय डाल रही थी. पीसरेव उसके पास बैठा था. मेरे ख़याल से, यही उसका एकमेव अपराध था. पीसरेव चाय के प्याले देने में और अन्य छोटे-मोटे कामों में सोन्या की मदद कर रहा था. वह प्रसन्नता से मज़ाक कर रहा था, हंस रहा था, उससे कुछ कहने के लिए कभी कभी उसकी ओर झुक रहा था.

मैं ल्येव निकोलायेविच की ओर देख रही थी. विवर्ण, चेहरे पर चिड़चिड़ाहट का भाव लिए वह मेज़ से उठकर चला गया, फिर वापस आया और अनचाहे ही अपने मन की खलबली मुझे दे दी. सोन्या भी भाँप गई और समझ नहीं पाई, कि उसे क्या करना चाहिए.

इस सबका अंत इस तरह हुआ, कि अगली सुबह, ल्येव टॉल्स्टॉय के निर्देशानुसार घोडा-गाड़ी तैयार कर दी गई, और सेवक ने नौजवान आदमी को सूचित किया कि उसके लिए घोड़ा-गाड़ी तैयार है...”
“वे दोनों बेहद ईर्ष्यालु थे,” सोफ्या अन्द्रेयेव्ना की बहन लिखती है, “और इसी बात ने अपने बेहतरीन, हार्दिक संबंधों को बिगाड़ कर उनके जीवन में ज़हर घोल दिया”.

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